आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा : वेदों और महाभारत की रचना करने वाले वेदव्यास का जन्म


आस्था : गुरु पुर्णिमा के दिन ही व्यास पूजा भी होता है। इस बार गुरु पुर्णिमा पर चंद्र ग्रहण की छाया है, इसलिए गुरु पूजन का शुभारंभ कई जगहों पर आज शाम से ही होने लगेगा। 16 जुलाई की रात्रि में लगने वाले चंद्र ग्रहण का सूतक मंगलवार को शाम 4:30 से लग जाएगा, इसलिए इससे पूर्व ही गुरु का पूजन करना उचित है। सनातन संस्कृति में गुरु को माता-पिता और ईश्वर से भी बड़ा स्थान प्राप्त है। वह व्यक्ति के जीवन का पथ प्रदर्शक हैं, वह हमें ज्ञान से प्रकाशित करते हैं, इसलिए उनको ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तुल्य माना गया है। आषाढ़ की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा, गुरु की आराधना का दिन होता है। गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे यह कारण है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास को हम कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जानते है। महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों और महाभारत की रचना की थी। हिन्दू धर्म में वेदव्यास को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इस दिन वेदव्यास का जन्म होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। 

गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और मुड़िया पूनो के नाम से जाना जाता है। यह एक पर्व है जिसे लोग त्योहार की तरह मनाते हैं। यह संधिकाल होता है, क्योंकि इस समय के बाद से बारिश में तेजी आ जाती है। पुरातन काल में ऋषि, साधु, संत एक स्थान से दूसरे स्थान यात्रा करते थे। चौमासा या बारिश के समय वे 4 माह के लिए किसी एक स्थान पर रुक जाते थे। आषाढ़ की पूर्णिमा से 4 माह तक रुकते थे, यही कारण है कि इन्हीं 4 महीनों में प्रमुख व्रत त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोग वेदव्यास की भक्तिभाव से आराधना व अपने मंगलमय जीवन की कामना करते हैं। इस दिन हलवा प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। बंगाल के साधु इस दिन सिर मुंडाकर परिक्रमा पर जाते हैं। ब्रज क्षेत्र में इस पर्व को मुड़िया पूनो के नाम से मनाते हैं और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। कोई इस दिन ब्रह्मा की पूजा करता है तो कोई अपने दीक्षा गुरु की। इस दिन लोग गुरु को साक्षात भगवान मानकर पूजन करते हैं। इस दिन को मंदिरों, आश्रमों और गुरु की समाधियों पर धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी जगह गुरुमय हो जाती है। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में धूनी वाले बाबा की समाधि पर यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन प्रदेश के साथ-साथ देश और विदेश से भी लोग आते हैं। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों मनाया जाता है? आषाढ़ की पूर्णिमा को यह पर्व मनाने का उद्देश्य है कि जब तेज बारिश के समय काले बादल छा जाते हैं और अंधेरा हो जाता है, तब गुरु उस चंद्र के समान है, जो काले बादलों के बीच से धरती को प्रकाशमान करते हैं। 'गुरु' शब्द का अर्थ ही होता है कि तम का अंत करना।

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