सभी से मधुर बोलें, सभी को अपना बनायें
बोधकथा : एक स्त्री थी, जो शहद बेचती थी। उसकी बोलचाल का ढंग इतना आकर्षक था कि उसकी दुकान के चारों ओर ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। यदि वह शहद की जगह विष भी बेचती तो भी लोग उसे शहर समझकर ही उससे खरीद लेते। एक ओछी प्रकृति वाले मनुष्य ने जब देखा कि वह स्त्री इस व्यवसाय से बहुत लाभ उठा रही है तो उसने भी इसी धंधे को अपनाने का निश्चय किया। दुकान तो उसने खोल ली, लेकिन शहद के सजे-सजाये बर्तनों के पीछे उसकी अपनी आकृति कठोर ही बनी रही। ग्राहकों का स्वागत वह सदा अपनी कुटिल भृकुटि से करता था। इसलिए सब उसकी चीज छोड़ आगे बढ़ जाते थे। एक मक्खी भी उसके शहद के पास फटकने का साहस नहीं करती थी। शाम हो जाती, लेकिन उसके हाथ खाली-के-खाली ही रहते। एक दिन एक स्त्री उसे देखकर अपने पति से बोली, "कड़ुआ मुख शहद को भी कड़ुआ बना देता हैं"। संसार में हमारा कार्य केवल बेचना और खरीदना ही नहीं है, हमें यहां एक-दूसरे का मित्र बनकर रहना है। स्त्री से शहद लोग इसलिये खरीदते थे कि सबसे मधुर शब्द बोलती थी और बड़े लगन से शहद का व्यवसाय करती थी।
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