महासती हैं माता पार्वती

आस्था : माता सती और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। सर्वविदित है कि भगवान शिव की पत्नी सती हैं। माता सती के पिता का नाम दक्ष प्रजापति था। दक्ष शिव से बैर भाव रखता था और एक बड़े यज्ञ में दक्ष ने शिव को आमंत्रित ही नहीं किया। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में, अपने पति का अपमान न सह पाने से, स्वयं को हवन यज्ञ में भस्म कर दिया। उसी समय तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा। भगवान शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। सभी देवता देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा कि हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा। भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने पर वन में खूब तपस्या की। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। 
सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी, भंगेड़ी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रही। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी भी अपने सती रूप का स्मरण है। सप्तऋषियों ने शिव और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। निश्चित दिन शिवजी बारात ले कर हिमालय के घर आए। वे बैल पर सवार थे। उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त दैत्य और देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी थे। सारे बाराती नाच-गा रहे थे। यह बारात अत्यंत ही मनोहारी और विचित्र थी। इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव और पार्वती का विवाह हो गया और पार्वती को साथ लेकर शिवजी अपने धाम कैलाश पर्वत चले गए।

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