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कहां रहते हैं भगवान

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अध्यात्म। भगवान कहां रहता है, भगवान के पास हम किस तरीके से जायेंगे, भगवान में किस तरीके से लय होंगे। भगवान विभु है और व्यापक है, सभी में समाया हुआ है। भगवान का दृष्टिकोण बड़ा विशाल है, स्वयं के लिये कुछ चाहता है कि नहीं। हमसे और आपसे भगवान क्या चाह सकता है और आप और हम भगवान को क्या दे सकते हैं। हम तो एक जर्रा हैं, कण हैं और वह तो ब्रह्मांड के बराबर विस्तृत है। हम भगवान को कुछ नहीं दे सकते। फिर क्या दे सकते हैं। हमको अपने आप को, अपनी हस्ती को भगवान को प्रदान करना पड़ेगा। अपनी हस्ती को क्यों। अपनी हस्ती, जो कि पानी का एक बबूला है, जो अपने चारों ओर हवा का एक घेरा बना करके बैठा है। उसके अंदर हवा भर दी गई है। हवा के भर जाने के कारण पानी का जो बबूला था, उसने अपना घेरा अलग बना लिया, अपना दायरा अलग बना लिया। लोगों ने उसका मजाक उड़ाया कि देखो, वो बबूला चल रहा है। अब बबूला समाप्त हो गया। जब कोई अलग हो जाता है तो पानी का बबूला हो जाता है। क्षण भर में मजाक की चीज बन जाती है। कभी उसकी सम्पदायें बनती हैं और कभी उसकी सम्पदा बिगड़ती है, नष्ट हो जाती है। ये सम्पदायें क्या हैं। यह हमारा मैं का एक छोटा ...

अब 2059 में सरोवर से निकाली जाएगी भगवान वरदराज की प्रतिमा, 40 साल के जलवास पर

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अध्यात्म : सबसे पुराने शहरों में से एक तमिलनाडु का कांचीपुरम। वैसे तो कांची में कोई 125 बड़े मंदिर हैं, जिनका अपना-अपना इतिहास है, लेकिन ऐसा लगता है कि पिछले डेढ़ महीने से इस शहर के सारे रास्ते एक ही मंदिर की ओर मोड़ दिए गए हैं। 1 जुलाई से अब तक करीब 90 लाख लोग इस शहर में आ चुके हैं। इस समय अगर दक्षिण भारत में कहीं आस्था की लहरें हिलोरे ले रही हैं तो वह जगह है कांचीपुरम। कारण भी खास है। 40 साल बाद अत्ति वरदराज की प्रतिमा आनंद सरस सरोवर से निकाली गई है। ये “वन्स इन ए लाइफटाइम” जैसा है। भगवान विष्णु के अवतार अत्ति वरदराज की प्रतिमा सरोवर से हर 40 साल में एक बार निकाली जाती है। 48 दिन तक दर्शन के लिए मंदिर में रखी जाती है। फिर अगले 40 साल के लिए दोबारा सरोवर में रख दी जाती है। अब 2059 में यह प्रतिमा 48 दिनों के लिए फिर निकाली जाएगी। 17 अगस्त यानि कि आज की रात इस प्रतिमा को पवित्र सरोवर में जलवास दिया जाएगा। पिछली सदी में प्रतिमा 1939 और 1979 में निकाली गई थी। अंजीर की लकड़ी से बनी यह प्रतिमा 9 फीट ऊंची है। इस साल 28 जून को वैदिक ऋचाओं के गान के साथ प्रतिमा को वेदपाठी पंडितों ने अपनी पी...

कर्मों के फल भुगतने के लिए ही होता है पुनर्जन्म

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अध्यात्म : सनातन धर्म के लोग पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं, यही आत्मा की ऊर्जा है। आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। जन्म और मत्यु का यह चक्र तब तक चलता है, जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती। मोक्ष प्राप्ति का रास्ता कठिन है। यह मौत से पहले मरकर देखने की प्रक्रिया है। वेद और उपनिषद कहते हैं कि शरीर छोड़ने के बाद भी तुम्हारे वे सारे कर्मों के क्रम जारी रहेंगे, जो तुम यहां रहते हुए करते रहे हों और जब अगला शरीर मिलेगा तो यदि तुमने दु:ख, चिंता, क्रोध और उत्तेजना को संचित किया है तो अगले जन्म में भी तुम्हें वही मिलेगा, क्यों‍कि यह आदत तुम्हारा स्वभाव बन गई है। पुराणों के अनुसार व्यक्ति की आत्मा प्रारंभ में अधोगति होकर पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, पशु-पक्षी योनियों में विचरण कर ऊपर उठती जाती है और अंत में वह मनुष्य वर्ग में प्रवेश करती है। मनुष्य अपने प्रयासों से देव या दैत्य वर्ग में स्थान प्राप्त कर सकता है। वहां से पतन होने के बाद वह फिर से मनुष्य वर्ग में गिर जाता है। यदि आपने अपने कर्मों...

वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि धारण किये हुए भगवान् विष्णु को नमन

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अर्थ सहित मंत्र—   शंखचक्रं सकिरीटकंडलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्। सहारवक्ष:स्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।। भावार्थ : शंख, चक्र, किरीट, कुण्डल पीताम्बर गले में हार, वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि धारण किये हुए भगवान् विष्णु को मेरा नमन। गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।। भावार्थ : गजानन, भूतगणों से सेवित, कपित्थ, जम्बू जिसका प्रिय भोजन है, पार्वती पुत्र, शोक विनाशक गणेशजी को मेरा नमन। कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।। भावार्थ : गौर वर्ण, गले में सांप, परम कारुणिक, विश्व के मूल कारण, हृदय में सदा विराजमान पार्वती—शिव को मेरा प्रणाम। लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:। एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।। भावार्थ : हे सरस्वति! लक्ष्मी मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति—इन आठ स्वरूपों से मेरी रक्षा करो। नीलाम्बुजश्यामलकोमलांगम् सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम।। भावार्...

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन में सोमवार का व्रत रखती हैं कुंवारी युवतियां

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अध्यात्म : श्रावण माह में कई महत्वपूर्ण पर्व मनाये जाते हैं, जिसमें 'हरियाली तीज', 'रक्षा बन्धन', 'नाग पंचमी' समेत कई त्योहार प्रमुण हैं। भगवान शिव की आराधना का इस माह में विशेष महत्त्व है। सावन माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं और सुंदर और स्वस्थ वर की कामना करती हैं। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात् शिवलिंग, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है। श्रावण मास के प्रथम सोमवार से इस व्रत को शुरू किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को गणेशजी, शिवजी, पार्वतीजी की पूजा की जाती है। इस सोमवार व्रत से पुत्रहीन पुत्रवान और निर्धन धर्मवान होते हैं। स्त्री अगर यह व्रत करती है, तो उसके पति की शिवजी रक्षा करते हैं।

सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ही मनु स्‍मृति के रचयिता हैं

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अध्यात्म : आज यानि 9 जुलाई 2019 को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी मनाई जा रही है। इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है। सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु की मूल कथा—मत्स्य पुराण में उल्ले‍ख है कि सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में जल से तर्पण कर रहे थे। उस समय उनकी अंजुलि में एक छोटी सी मछली आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी में डाल दिया तो मछली ने कहा कि इस जल में बड़े जीव जंतु मुझे खा जाएंगे। यह सुनकर राजा ने मछली को फिर जल से निकाल लिया और अपने कमंडल में रख लिया और आश्रम ले आए। रात भर में वह मछली बढ़ गई। तब राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया। मटके में भी वह बढ़ गई तो उसे तालाब में डाल दिया अंत में सत्यव्रत ने जान लिया कि यह कोई मामूली मछली नहीं जरूर इसमें कुछ बात है तब उन्होंने ले जाकर समुद्र में डाल दिया। समुद्र में डालते समय मछली ने कहा कि समुद्र में मगर रहते हैं वहां मत छोड़िए, लेकिन राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे कोई मामूली मछली नहीं जान पड़ती हैं, आपका आकार तो अप्रत्याशित तेजी से बढ़ रहा है बताएं कि आप कौन हैं। तब मछली रूप में भगवान...

सबसे प्रसिद्ध है मन्नाारशाला का स्नेक टेम्पल

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अध्यात्म : भारत की संस्कृति अद्भुत रही है, यहां के लोग अपने पूर्वजों को पूजते ही हैं साथ में पर्यावरण प्रेमी हैं और सर्वे भवंतु सुखिन: के मार्ग पर चलते पर यकीन ही नहीं विश्वास करते हैं। ऐसा ही केरल में एक स्थान है मन्नाारशाला सर्प मंदिर, यह एक अनूठा मंदिर है। देश में सांपों को समर्पित कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें सबसे प्रसिद्ध है मन्नाारशाला का स्नेक टेम्पल। यह मंदिर अपनी बनावट में आपको चकित कर देगा। केरल के अलेप्पी के पास है यह मंदिर मन्नाारशाला, अलेप्पी से मात्र 37 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर नागराज और उनकी संगिनी नागयक्षी को समर्पित है। 16 एकड़ भू - भाग पर फैले इस मंदिर में जहां नजर दौड़ाएंगे वहां सांपों की प्रतिमा दिखाई देगी। बताया जाता है कि इस मंदिर में सांपों की 30 हजार से ज्यादा मूर्तियां हैं। पांडवों से जुड़ती है इसकी कथा इसकी कथा महाभारत से जुड़ती है। कौरवों ने खांडववन में पांडवों को राज्य देकर उनके रहने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया। बाद में जब पांडव वहां रहने लगे थे, तब उसे जला दिया गया था। कहा जाता है कि वह खांडववन नामक प्रदेश यही था। मान्यता है कि इस दुर्घटना में वन क...

सूर्य 14 अप्रैल से करेंगे अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश, जानें किसे मिलेगी प्रसन्नता

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सूर्य के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए— -250 ग्राम गुड़ रविवार को बहते जल में प्रवाहित करें। -प्रतिदिन कुमकुम मिश्रित जल से सूर्यदेव को अर्घ्य दें। -प्रति रविवार आठ बादाम मन्दिर में चढाएं। -प्रति रविवार सूर्यास्त से पूर्व बिना नमक वाला भोजन करें। -सवत्सा लाल गाय का दान करें। -लाल वस्त्र ना पहनें। अध्यात्म : 14 अप्रैल 2019 से सूर्य अपनी राशि परिवर्तन कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। मेष राशि में सूर्य उच्चराशिस्थ होंगे। सूर्य का अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश समस्त 12 राशियों को भी प्रभावित करेगा। जानते हैं सूर्य के मेष राशि में प्रवेश का आपकी राशि पर क्या प्रभाव पड़ेगा- मेष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार धन हानि के योग हैं। सम्मान व प्रतिष्ठा में कमी होगी। नेत्रों में पीड़ा के कारण कष्ट होने की संभावना है। उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को अपने कर्मक्षेत्र में बाधाएं आने के योग हैं। वृष राशि वाले जातकों को सूर्य के गोचर अनुसार स्थान परिवर्तन का योग बन रहा है। कार्यक्षेत्र में परेशानियां रहेंगी। गुप्त शत्रुओं के कारण हानि का योग है। प्रतिष्ठा धूमिल होने के संकेत हैं। मिथुन राशि वाले ...

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूजन करने से मनवांछित फल देते हैं भगवान गणेश

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अध्यात्म : पुराणों में वर्णन है कि प्रथम पूजा पार्वती नंदन गणेश की होती है, लेकिन प्रभु गणेश की इच्छा है कि गणेश पूजन से पहले माता पार्वती का वंदन ​किया जाये। इसीलिये कोई भी पूजन शुरू होने से पहले ऊं सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्ध साधिके शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमस्तुते का मंत्र पढ़ा जाता है। इस वर्ष 24 मार्च को है गणेश चतुर्थी, मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर उपवास और पूजन करने से मनवांछित फल मिलते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान श्रीगणेश को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं। पूजा का धागा अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर से भगवान श्रीगणेश की आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद अन्य भक्तों को बांट दें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले व्यक्ति को शाम को चंद्र दर्शन करना चाहिए, पूजा करनी चाहिए। इसके बाद ही भोजन कर...