श्रीमद्भगवद्गीता

युधामन्युश्च विक्रांत उत्तमौजाश्ज वीर्यवान्। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा:।
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।
पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र—ये सभी महारथी हैं। हे ब्राहृमणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में जो भी प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के जो—जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूं।
भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजय:। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:। नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा:।

आप—द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और सबके सब युद्ध में चतुर हैं।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्। पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरिक्षितम्।
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागम​वस्थिता: भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि।

भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है। इसलिये सब मोर्चों पर अपनी—अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग इसी नि:संदेह भीष्मपितामह की ही सब ओर से रक्षा करें।
तस्य संजनयन् हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह:। सिंहनादं विनद्योच्चै: शंख दध्मौ प्रतापवान्।
तत: शखांश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा:। सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोभवत्।

कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।
क्रमश:

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