गुरु की निंदा का विरोध करना चाहिए
सुभाषित—
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
भावार्थ : प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सच बताने वाले, रास्ता दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले, और बोध कराने वाले – ये सब गुरु समान हैं।
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् । शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
भावार्थ : विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं।
गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते । कर्णौ तत्र विधातव्यो गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः ॥
भावार्थ : जहाँ गुरु की निंदा होती है वहाँ उसका विरोध करना चाहिए । यदि यह सम्भव न हो तो कान बंद करके बैठना चाहिए और यदि वह भी शक्य न हो तो वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए।
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
भावार्थ : प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सच बताने वाले, रास्ता दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले, और बोध कराने वाले – ये सब गुरु समान हैं।
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् । शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
भावार्थ : विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं।
गुरोर्यत्र परीवादो निंदा वापिप्रवर्तते । कर्णौ तत्र विधातव्यो गन्तव्यं वा ततोऽन्यतः ॥
भावार्थ : जहाँ गुरु की निंदा होती है वहाँ उसका विरोध करना चाहिए । यदि यह सम्भव न हो तो कान बंद करके बैठना चाहिए और यदि वह भी शक्य न हो तो वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें