शरीर को स्वस्थ रखना है तो नियम और स्वअनुशासन जरूरी
स्वास्थ्य : शरीर के अंदर देखरेख के अभाव में गंदगी तीन जगह पर इकट्ठा हो जाती है। पहला आहार नाल में और दूसरा पेट में और तीसरा आंतों में। गौरतलब है कि जो कुछ हम खाते हैं, शारीरिक प्रक्रिया के तहत उस भोज्य पदार्थ का शरीर के अंदर चक्रीय कार्य के तहत मल के रूप में बाहर निकल आता है। शरीर के इस चक्रीय पक्रिया को सुचारु रूप से रखने के लिए पहला आसान काम करना है कि पानी खूब पीना है, जितना पी सकते हैं। पानी पर्याप्त मात्रा में पीया गया है तो शरीर के किसी भी अंग को कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन पर्याप्त पानी न पीने की गलती ही शारीरिक कष्टों का कारक है। यदि गंदगी ज्यादा समय तक शरीर में बनी रही तो यह अन्य अंगों किडनी में, फेंफड़ों में और हृदय के आसपास भी जमने लगेगी। अंत में यह खून को गंदा कर देगी। अत: इस गंदगी को साफ करना जरूरी है। हम दो तरह के खाद्य पदार्थ खाते हैं पहला वह जो हमें सीधे प्रकृति से प्राप्त होता है और दूसरा वह जिसे मानव ने बनाया है। प्रकृति से प्राप्त फल और सब्जियां हैं। फल के पाचन में मात्र तीन घंटे और सब्जियों को पचने में 6 घंटे लगते हैं। मानव द्वारा उत्पादित किए गए खाद्य पदार्थों में-अनाज, दाल, चना, चावल, मैदा, सोयाबीन आदि और इन्हीं से बने अन्य खाद्य पदार्थ। जैसे ब्रेड, सेंडविच, चीज, बर्गर, चीप्स, पापड़, आदि। इन सभी पदार्थों को पचने में 18 घंटे लगते हैं।
शरीर में बीमारी का पहला कारण पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना है और दूसरा कारण है कि चाय, कॉफी, कोल्ड्रिंक, मैदा, बेसन, बैंगन, समोसे, कचोरी, पिज्जा, बर्गर आदि का सेवन। अत: सभी को ध्यान रखना चाहिए कि स्वस्थ शरीर ही सुंदर लगता है। बीमारी अपने आसपास नहीं बल्कि अपने अंदर न भटकने दें। स्वस्थ और सुंदर रहना है तो सनातन शैली अपनाना ही बेहतर हो सकता है। नियम और अनुशासन हर जगह लागू होते हैं, जिनके स्वास्थ्य में दिक्कत है उन्हें जरूरी नियम का पालन जरूर करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में उपावस का बहुत महत्व है। चातुर्मास में उपवास ही किए जाते हैं। हिन्दू धर्म में सम्पूर्ण वर्ष में कई प्रकार के उपवास आते हैं, जैसे वार के उपवास, माह में दूज, चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या या पूर्णिमा के उपवास। वर्ष में नवरात्रि, श्रावण माह या चातुर्मास के उपवास आदि। लेकिन अधिकतर लोग तो खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। यह उपावास या व्रत नहीं है। उपवास में कुछ भी खाया नहीं जाता। गौरतलब है कि भारत अद्भुत देश है, विविधताओं का देश है, अनेकता में एकता है, सभी का स्वस्थ रहने का अपना तरीका है। कोई सुबह गरम पानी पीता है, कोई व्यायाम के लिये निकल जाता है, कोई व्यायामशाला जाता है, कोई योग, आसन आदि तरीके अपनाते हैं। अध्यात्म, चिंतन, उपवास कई तरीके हैं शरीर को पवित्र और तेजवान रखने के लिए। लेकिन फिर वही बात, कोई भी प्रक्रिया कर लीजिये धरती का अमृत जल तो ग्रहण करना ही है और वह भी पर्याप्त मात्रा में।
शरीर में बीमारी का पहला कारण पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना है और दूसरा कारण है कि चाय, कॉफी, कोल्ड्रिंक, मैदा, बेसन, बैंगन, समोसे, कचोरी, पिज्जा, बर्गर आदि का सेवन। अत: सभी को ध्यान रखना चाहिए कि स्वस्थ शरीर ही सुंदर लगता है। बीमारी अपने आसपास नहीं बल्कि अपने अंदर न भटकने दें। स्वस्थ और सुंदर रहना है तो सनातन शैली अपनाना ही बेहतर हो सकता है। नियम और अनुशासन हर जगह लागू होते हैं, जिनके स्वास्थ्य में दिक्कत है उन्हें जरूरी नियम का पालन जरूर करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में उपावस का बहुत महत्व है। चातुर्मास में उपवास ही किए जाते हैं। हिन्दू धर्म में सम्पूर्ण वर्ष में कई प्रकार के उपवास आते हैं, जैसे वार के उपवास, माह में दूज, चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या या पूर्णिमा के उपवास। वर्ष में नवरात्रि, श्रावण माह या चातुर्मास के उपवास आदि। लेकिन अधिकतर लोग तो खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। यह उपावास या व्रत नहीं है। उपवास में कुछ भी खाया नहीं जाता। गौरतलब है कि भारत अद्भुत देश है, विविधताओं का देश है, अनेकता में एकता है, सभी का स्वस्थ रहने का अपना तरीका है। कोई सुबह गरम पानी पीता है, कोई व्यायाम के लिये निकल जाता है, कोई व्यायामशाला जाता है, कोई योग, आसन आदि तरीके अपनाते हैं। अध्यात्म, चिंतन, उपवास कई तरीके हैं शरीर को पवित्र और तेजवान रखने के लिए। लेकिन फिर वही बात, कोई भी प्रक्रिया कर लीजिये धरती का अमृत जल तो ग्रहण करना ही है और वह भी पर्याप्त मात्रा में।
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