सौरव गांगुली : बीसीसीआई के निर्विरोध अध्यक्ष


विचार : टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अगले अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। इस तरह पहली बार भारतीय क्रिकेट का प्रबंधन एक खिलाड़ी के हाथ में होगा। अब तक राजनेता या उद्योगपति ही दुनिया के इस सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के कर्ता-धर्ता बनते आए हैं जबकि विशेषज्ञों ने बार-बार दोहराया है कि खेल संगठनों का दायित्व कोई पूर्व खिलाड़ी ही संभाले क्योंकि मैदान और उसके बाहर की चुनौतियों को वह बेहतर समझ सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दादा के आने से भारतीय क्रिकेट प्रशासन का ढर्रा भी बदलेगा। पूर्व क्रिकेटर सौरभ गांगुली ने सोमवार को अपना नामांकन दाखिल किया जो एक औपचारिकता ही है क्योंकि उनके अलावा किसी अन्य सदस्य ने नामांकन नहीं भरा। उनके निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा 23 अक्टूबर को होगी और वह 10 महीने यानी सितंबर 2020 तक बोर्ड के अध्यक्ष होंगे। उन्होंने कहा कि 'नियुक्ति से मैं खुश हूं क्योंकि यह वह समय है जब बीसीसीआई की छवि खराब हुई है और कुछ करने का यह मेरे लिए अच्छा मौका है। आज की तारीख में भारतीय क्रिकेट का डंका भले ही पूरी दुनिया में बज रहा हो पर बीसीसीआई की साख पिछले कुछ समय से खतरे में है। आईपीएल-2013 में कुछ क्रिकेटर्स पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगने के बाद यह जाहिर हुआ कि एक खास तबका बोर्ड पर काबिज है और क्रिकेट की आड़ में अपना धंधा करते हुए वह बोर्ड का इस्तेमाल दुधारू गाय की तरह कर रहा है। फिक्सिंग का मामला सामने आते ही तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन शक के घेरे में आ गए, क्योंकि उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन भी सट्टेबाजी के आरोप से घिर गए थे। उनके साथ अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति और मशहूर बिजनेसमैन राज कुंद्रा पर भी फिक्सिंग का आरोप लगा। विवाद तब और बढ़ गया जब खिलाडिय़ों पर तो गाज गिरा दी गई, लेकिन बाकी आरोपी बच निकले। इस पर देश भर में आक्रोश फैला और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया।
अदालत ने बीसीसीआई में सुधार के लिए लोढ़ा कमिटी का गठन किया और उसकी सिफारिशों को लागू कराने के लिए अपनी निगरानी में एक प्रशासनिक समिति बनाई। इस समिति की देखरेख में बीसीसीआई का नया संविधान लागू हुआ और अभी बोर्ड में जड़ जमा चुकी बीमारियों को दूर करने की प्रक्रिया जारी है। कई लोग मानते हैं कि गड़बडिय़ां अभी दूर नहीं हो पाई हैं। लोढ़ा समिति ने कहा था कि इसमें नए चेहरों को मौका दिया जाए। कहा जा रहा है कि बोर्ड पर काबिज रहे लोगों ने नए चेहरों के नाम पर अपने ही रिश्तेदारों को विभिन्न इकाइयों में बिठा दिया है। दरअसल क्रिकेट से जुड़ा ग्लैमर, पैसा और पावर ताकतवर लोगों को आकर्षित करता है। ऐेसे में दादा की सबसे बड़ी चुनौती जेनुइन लोगों को बढ़ावा देने और बोर्ड के कामकाज को पारदर्शी व प्रफेशनल बनाने की है।

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