हंसता और मुस्कुराता चेहरा सभी को पसंद

बोधकथा : अमर नाम का एक राजकुमार था, खूब ठाट-बाट की जिंदगी थी। एक बार जब वह लड़ाई में गया तो उसके रसोईघर के सामान को लेकर तीन सौ ऊंट भी उसके साथ गये। दुर्भाग्य से एक दिन वह खलीफा इस्माइल द्वारा बंदी बना लिया गया। लेकिन दुर्भाग्य भूख को तो नहीं टाल सकता। उसने पास खड़े अपने मुख्य रसोइये से, जो एक भला आदमी था, कहा कि भाई, कुछ खाने को तो तैयार कर दे। उस बेचारे के पास केवल एक मांस का टुकड़ा बचा था। उसने ही देगची में उबलने को रख दिया और भोजन को कुछ अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए स्वयं किसी साग-सब्जी की खोज में निकला। इतने में एक कुत्ता वहां से गुजरा। मांस की सुगंध से आकर्षित हो उसने अपना मुंह देगची में डाल दिया। पर भाप की गर्मी पर वह तेजी से और कुछ ऐसे बेढंगे तरीके से पीछे हटा कि देगीची उसके गले में अटक गई। अब तो घबराकर वह देगची के साथ ही वहां से भागा। अमर ने जब यह देखा तो जोर से हँस पड़ा। उसके अफसर ने, जो उसकी चौकसी पर नियुक्त था, उससे पूछा, यह हँसी कैसी? इस दु:ख के समय भी आप हँस रहे हो। अमर ने तेजी से भागते हुए कुत्ते की ओर इशारा करते हुए कहा, मुझे यह सोचकर हँसी आ रही है कि आज प्रात:काल तक मेरी रसोई का सामान ले जाने के लिए तीन सौ ऊंटों की आवश्यकता पड़ती थी और अब उसके लिए एक कुत्ता ही काफी है। 
अमर को प्रसन्न रहने में एक स्वाद मिलता था। यद्यपि दूसरों को प्रसन्न रखने के लिए वह उतना प्रयत्नशील नहीं था, फिर भी उसके विनोदी स्वभाव की प्रशंसा किये बिना हम नहीं रह सकते। यदि वह इतनी गम्भीर विपत्ति में भी प्रसन्न रह सकता था तो क्या हम मामूली चिंता में मुंह पर एक मुस्कराहट भी नहीं ला सकते? हंसता और मुस्कुराता चेहरा सभी को पसंद है।

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