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आपस में न करें बैर

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बोधकथा। एक बार की बात है कि गुरु के दो शिष्य हमेशा एक-दूसरे को नीचा दिखने की कोशिश में लगे रहते थे। एक दिन गुरु ने दोनों शिष्यों को कथा सुनाई-एक बार एक जंगल में बैल और घोड़े में लड़ाई हो गई। बैल ने सींग मार-मारकर घोड़े को अधमरा कर दिया। घोड़ा जब समझ गया कि वह बैल से जीत नहीं सकता तब वह वहां से भागा। वह एक मनुष्य के पास पहुंचा, घोड़े ने मनुष्य से अपनी सहायता की गुहार लगाई। मनुष्य ने कहा कि बैल की बड़ी-बड़ी सींगें हैं, वह बहुत बलवान है, मैं उससे कैसे जीत सकूंगा? घोड़े ने मनुष्य को समझाया कि मेरी पीठ पर बैठ जाओ, एक मोटा डंडा ले लो। मैं जल्दी-जल्दी दौड़ता रहूंगा। तुम डंडे से मार-मारकर बैल को अधमरा कर देना और फिर रस्सी से बांध देना। मनुष्य ने कहा कि मैं उसे बांधकर भला क्या करुंगा? घोड़े ने बताया कि बैल बड़े काम के होते हैं-बैल से गाड़ी खींच सकते हो, खेती कर सकते हो और तो और जब आप उसे नहीं रखना चाहो तो उसे व्यापारी के हाथ बेंच सकते हो और बेंचने पर तुम्हें मोटी रकम मिलेगी। मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली। बेचारा बैल जब पिटते-पिटते जमीन पर गिर पड़ा, तब मनुष्य ने उसे बांध लिया। घोड़े ने काम समाप्...

वृक्ष की उम्र

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बोधकथा। एक बार वृद्ध वैज्ञानिक ने युवा वैज्ञानिक से कहा कि चाहे विज्ञान कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले, लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया, जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके।' युवा वैज्ञानिक मुस्कराते हुए कि आप भी कैसी बातें करते हैं, अरे चिंता तो मामूली सी बात है। भला उसके लिए उपकरण ढूंढने में समय क्यों नष्ट किया जाए? वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा कि चिंता बहुत भयानक होती है। यह व्यक्ति का नाश कर देती है, लेकिन युवा वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हुआ। वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपने साथ घने जंगलों की ओर ले गया। एक बड़े वृक्ष के आगे वे दोनों खड़े हो गए, युवा वैज्ञानिक ने पूछा कि आप मुझे यहां क्यों लाए हैं? वृद्ध वैज्ञानिक ने उत्तर देते हुये कहा कि जानते हो, इस वृक्ष की उम्र चार सौ वर्ष बताई गई है। युवा वैज्ञानिक बोला, अवश्य होगी। वृद्ध वैज्ञानिक ने समझाते हुए कहा कि इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियां गिरीं। चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया। अब युवा वैज्ञानिक ने झुंझला कर कहा कि आप साबित क्या करना चाहते हैं? वृद्ध वैज्ञनिक ने कहा कि धैर्य रखो, यहां आओ और देखो कि इसकी जड़ में दीमक...

शरारती बच्चे और अनुभवी वृद्ध

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  बोधकथा। एक बार की बात है दो किशोर शरारती बच्चों ने तय किया कि एक वृद्ध की परीक्षा ली जाये और उसे हर हाल में गलत साबित करना है, यानि कि बच्चों ने तय किया कि हम लोग वृद्ध से ऐसा प्रश्न पूछेंगे कि वह बता न पाये। काफी सोच-विचार के बाद दोनों बच्चों ने तीन सवाल चुने। दोनों किशोर बच्चों ने तय किया कि हम एक छोटी चिड़िया को पीठ के पीछे पकड़कर वृद्ध से पूछेंगे कि हमारे हाथ में क्या है? वह बूढ़ा आदमी जवाब देगा, पक्षी है, लेकिन यह कोई मुश्किल सवाल नहीं हुआ, किशोर लड़के एकदूसरे से बोले। इसके बाद दूसरा प्रश्न हम लोग यह पूछेंगे कि हमारे हाथ में कौन सा पक्षी है? वृद्ध कहेगा, चिड़िया है, लेकिन यह भी आसान सवाल है’ वे दोनों फिर एकदूसरे से बोले, लेकिन इसके बाद का तीसरा सवाल निश्चित हुआ मुश्किल वाला। बच्चों ने तय कि कि सबसे बाद में हम पूछेंगे, यह चिड़िया जीवित है या मरी हुई है? अब अगर वृद्ध ने जवाब दिया कि मरी हुई है तो जवाब गलत होगा, क्योंकि चिड़िया तो जीवित रहेगी और यदि वृद्ध ने कहा कि जीवित है तो फिर जवाब गलत होगा, क्योंकि तब हम उस चिड़िया को वहीं के वहीं दबा कर मार डालेंगे। दोनों बच्चे बहुत प्रस...

ऐरावत हाथी और किसान

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  बोधकथा । एक किसान गन्ने की खेती करता था। इंद्र का हाथी ऐरावत गन्ने की फसल देख स्वर्ग से नीचे आ गया और फसल का कुछ हिस्सा खाकर चला गया। साथियों के साथ किसान ने रखवाली शुरू की। फिर ऐरावत आया तो सभी किसान ऐरावत को भगाने दौड़े। ऐरावत स्वर्ग जाने लगे तो किसान ने पूंछ पकड़ी, बाकी साथी उसे पकड़कर लटक गए। ऐरावत ने किसान से पूछा कि कितनी फसल होती है। किसान ने कहा कि बहुत। ऐरावत ने फिर पूछा–कितनी फसल। अधिक फसल बताने के लिए किसान ने हाथ फैलाया और किसान के हाथ से पूंछ छूट गई, जिससे किसान साथियों संग नीचे गिर पड़े।

पंडित जी के फटे और गंदे कपड़े

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बोधकथा। एक पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था लेकिन वह बहुत ग़रीब थे। एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे और भिक्षा मांगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवनयापन करते थे। एक बार पंडित जी एक गांव में भिक्षा मांगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफी जगह से फट भी गये थे। पंडित जी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घ्रणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया, बोला-पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है। पंडित जी दुखी मन से वापस चले आये। पंडित जी जब अपने घर वापस लौट रहा थे तो किसी अमीर आदमी की नजर पंडित जी के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दिये। अगले दिन पंडित फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा माँगने गया। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अंदर बुलाया और बड़े आदर के साथ थाली में बहुत सारे व्यंजन खाने को दिए। पंडित जी ने एक भी टुकड़ा अपने मुंह में नहीं डाला और सारा खाना धीरे धीरे अपने कपड़ों पर डालने लगे औ...

दूसरों का भला करें

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बोधकथा। एक बार की बात है-राजा ने कैदी को मौत की सजा सुनाई। सजा सुनकर कैदी राजा को गालियां देने लगा। कैदी दरबार के आखिरी कोने में खड़ा था। इसलिए उसकी गालियां बादशाह को सुनाई नहीं पड़ रहीं थीं। इसलिए राजा ने अपने सलाहकार से पूछा कि वह क्या कह रहा है? इस पर सलाहकार ने बताया कि महाराज कैदी कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं जो अपने क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं। यह सुनकर बादशाह को दया आ गई और उसने कैदी को माफ कर दिया, लेकिन दरबारियों में एक व्यक्ति था जो सलाहकार से जलता था। उसने कहा कि महाराज, वजीर ने आपको गलत बताया है, यह व्यक्ति आपको गंदी-गंदी गालियां दे रहा है, आप इसको माफ मत करिए, उसकी बात सुनकर बादशाह गुस्सा हो गये और दरबारी से बोला- मुझे सलाहकार की बात ही सही लगी। क्योंकि इसने झूठ भी बोला है तो किसी की भलाई के लिए। सलाहकार के अंदर भलाई करने की हिम्मत तो है। जबकि तुम दरबार में रहने के योग्य नहीं हो, तुम्हें तुरंत बेदखल किया जाता है। यानि कि जो दूसरों की भलाई के लिये सोचता है, उसका अपने आप भला हो जाता है।

कर्म पर विश्वास

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  बोधकथा। एक व्यक्ति के पास धान, सब्जी की खेती, बगीचा और फैक्टरी थी, उसका निधन हो गया। इकलौते बेटे ने काम संभाला तो नुकसान होने लगा। तंत्र–मंत्र किया, लेकिन हालात नहीं सुधरे। एक दिन गांव में एक महात्मा आए, बेटे ने दुखड़ा सुनाया। महात्मा ने दिनचर्या पूछी। फिर एक पोटली देते हुए महात्मा ने कहा कि इसमें रखे सामान को देखे बगैर सूर्योदय से पहले सब जगह छींटना, पुत्र ने यही किया। दो-चार माह बाद उसे खेती और व्यापार में फायदा हुआ। आठ महीने बाद महात्मा गांव आए तो बेटे ने बताया कि पहले वह सुबह आठ बजे सोकर उठता था, आलस से नुकसान हो रहा था। बाद में पता चला कि पोटली में सिर्फ मिट्टी थी, आलस खत्म करने के लिये महात्मा ने बेटे को दिया था।

झगड़ा और विवाद से बचें

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बोधकथा। एक आदमी टैक्सी से कार्यालय से घर जा रहा था। टैक्सी चालक बड़े ही सावधानी से टैक्सी चला रहा था। सामने से एक दूसरी टैक्सी बहुत ही तेज गति से आती है और उस टैक्सी से टकराते-टकराते बाल-बाल बचती है। तेज गति से चलाने वाला टैक्सी चालक की गलती होने के बावजूद वह दूसरे टैक्सी ड्राइवर से ऊंची आवाज में बात करता है और उस पर चिल्लाता है। वह टैक्सी चालक मंद मुस्कुराता है और कोई भी प्रतिक्रिया दिये बिना चला जाता है। टैक्सी में बैठा हुआ व्यक्ति आश्चर्यचकित हो जाता है, वह टैक्सी वाले को कहता है आपको कितना बुरा भला कहा आपने कुछ क्यों नहीं कहा? उल्टा आपको सुनाना चाहिए था, आपने कुछ भी नहीं कहा और मुस्कुराते हुए उसे जाने क्यों दिया? टैक्सी चालक कहता है इस जीवन के भागदौड़ में सभी लोग उलझे हुए हैं। कोई आर्थिक संकट से जूझ रहा है, कोई व्यक्ति कुटुंब में चल रहे वाद विवाद के कारण मानसिक तनाव से परेशान है, उन्हें सही, गलत से कोई मतलब नहीं, बस वे सिर्फ अपना अपना गुस्सा निकालने का मौका ढूंढते हैं। मैं उनकी परेशानी में पड़ना नहीं चाहता, इसलिए मैं मुसकुरा देता हूं, जिससे मेरा दिमाग ठंडा रहता है, सामने वाले को उ...

बादशाह ने दी सज्जन को नौकरी

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बोधकथा। बादशाह को एक नौकर की आवश्यकता थी, इसके लिये तीन उम्मीदवार बादशाह के सामने पेश किए गए। बादशाह ने उन तीनों उम्मीदवारों से पूछा कि यदि मेरी और तुम्हारी दाढ़ी में साथ-साथ आग लगे तो पहले किसकी बुझाओगे? पहले उम्मीदवार ने कहा कि मैं पहले आपकी दाढ़ी बुझाऊँगा। दूसरे ने कहा कि पहले मैं अपनी दाढ़ी बुझाऊँगा। तीसरे ने कहा कि एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से आपकी बुझाऊँगा। बादशाह ने तीसरे आदमी को नौकरी दे दी। बादशाह ने दरबारियों से कहा कि जो अपनी उपेक्षा करके दूसरों का भला करता है वह अव्यावहारिक है। जो स्वार्थ को ही सर्वोपरि समझता है वह नीच है और जो अपनी और दूसरों की भलाई का समान रूप से ध्यान रखता है उसे ही सज्जन कहना चाहिए। बादशाह ने कहा कि मुझे सज्जन व्यक्ति की जरूरत थी इसलिये तीसरे आदमी को नौकरी पर रखा गया।

विनम्रता से करें समाज की सेवा

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बोधकथा। शिष्यों की शिक्षा पूरी होने के बाद संत ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा कि प्यारे शिष्यों समय आ गया है अब तुम सबको समाज के कठोर नियमों का पालन करते हुए विनम्रता से समाज की सेवा करनी होगी। एक शिष्य ने कहा, गुरुदेव हर समय विनम्रता से काम नहीं चलता! थोड़ी देर चुप रहने के बाद संत बोले-ज़रा मेरे मुँह के अंदर झाँक कर देख के बताओ अब कितने दाँत बचे हैं। बारी-बारी से शिष्यों ने संत का मुँह देखा और एक साथ बोले-आपके सभी दाँत टूट चुके हैं। संत ने कहा जीभ है कि नहीं? जीभ जन्म से मृत्यु तक साथ रहती हैं। जीभ इसलिए नहीं टूटती क्योंकि उसमें लोच है, वह विनम्र होकर अंदर पड़ी रहती हैं, उसमें किसी तरह का अहंकार नहीं है उसमें विनम्रता से सब कुछ सहने की शक्ति है, इसलिए वह हमारा साथ देती है जबकि दाँत बहुत कठोर होते हैं, उन्हें अपनी कठोरता पे अभिमान होता है, वह जानते हैं उनके वजह से ही इंसान की खूबसूरती बढ़ती है, इसलिए वह बहुत कठोर होते हैं, उनका ये अहंकार और कठोरता उनकी बर्बादी का कारण बनती हैं, इसलिए तुम्हें अगर समाज की सेवा अच्छे से करनी हैं, जीभ की तरह बनो। बता दें विनम्रता एक भाव है और भाव का सम्बन्ध ...

सकारात्मक सोच

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बोधकथा। एक गरीब आदमी बड़ी मेहनत से एक एक-एक रूपया जोड़ कर मकान बनवाता है। उस मकान को बनवाने के लिए वह पिछले 20 वर्षों से एक-एक पैसा बचत करता है ताकि उसका परिवार छोटे से झोपड़े से निकलकर पक्के मकान में सुखी रह सके। आखिरकार एक दिन मकान बन कर तैयार हो जाता है। तत्पश्चात पंडित से पूछ कर गृहप्रवेश के लिए शुभ दिन निश्चित की जाती है। लेकिन गृहप्रवेश के 2 दिन पहले ही भूकंप आता है और उसका मकान पूरी तरह ध्वस्त हो जाता है। यह खबर जब उस आदमी को पता चलती है तो वह दौड़ा दौड़ा बाजार जाता है और मिठाई खरीद कर ले आता है। मिठाई लेकर वह घटनास्थल पर पहुंचता है जहां पर काफी लोग इकट्ठे होकर उसके के मकान गिरने पर अफसोस जाहिर कर रहे थे। ओह बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ, कितनी मुश्किल से एक-एक पैसा जोड़कर मकान बनवाया था। इसी प्रकार लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह आदमी वहां पहुंचता है और झोले से मिठाई निकाल कर सबको बांटने लगता है। यह देखकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं। तभी उसका एक मित्र उससे कहता है, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए हो, तुम्हारा घर गिर गया, तुम्हारी जीवन भर की कमाई बर्बाद हो गई और तुम खुश होकर ...

आत्मीयता का भाव

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बोधकथा। एक खेत में कुछ मजदूर काम कर रहे थे और थोड़ी देर बाद वे बैठकर आपस में गप्पे मारने लगे। यह देखकर खेत के मालिक ने उनसे कुछ नहीं कहा, उसने खुरपी उठायी और खुद काम में जुट गया। मालिक को काम करता देख मजदूर शर्म के मारे तुरंत काम में जुट गये। खेत के मालिक ने दोपहर में मजदूरों के पास जाकर बोला, भाइयों! अब काम बंद कर दो। भोजन करके आराम कर लो। काम बाद में होगा। इसके बाद मजदूर खाना खाने चले गए और थोड़ा आराम करके वे लोग जल्द ही फिर काम पर लौट आये। शाम को छुट्टी के समय पड़ोसी खेत वाले ने उस खेत के मालिक से पूछा कि भाई! तुम मजदूरों को छुट्टी भी देते हो। उन्हें डांटते भी नहीं हो। फिर भी तुम्हारे खेत का काम मेरे खेत से दोगुना कैसे हो जाता है, जबकि मैं लगातार अपने मजदूरों पर नजर रखता हूँ, डांट भी लगाता हूँ और छुट्टी भी नहीं देता। तब खेत के मालिक ने बताया कि मैं काम लेने के लिए सख्ती से नहीं बल्कि अधिक स्नेह और सहानुभूति का सूत्र अपनाता हूं इसलिए मजदूर पूरा मन लगाकर काम करते हैं, इससे काम अधिक व अच्छा होता है। और यह बात सही भी है कि आत्मीयता के भाव से किसी पर भी विजय पायी जा सकती है।

आत्मबल और शारीरिक बल

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बोधकथा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य गुरुजी काशी में पढ़ते समय एक महीने के विशेष अध्ययन के लिए प्रयागराज गये थे। इस बारे में उस समय का एक अनुभव वे सुनाते थे। प्रयागराज विश्वविद्यालय में उस समय एक पहलवान छात्र भी पढ़ रहा था। उसने कुश्ती में अनेक पदक पाये थे। वहीं एक दुबला-पतला, पर बहुत चुस्त फुर्तीला बंगाली युवक भी था। वह प्रायः शांत भाव से अपने अध्ययन में लगा रहता था। एक बार उन दोनों में किसी बात पर झगड़ा हो गया। अपने स्वभाव के अनुरूप पहले तो वह बंगाली युवक शांत ही रहा, लेकिन जब बात बहुत आगे बढ़ गयी, तो उससे नहीं रहा गया। उसने पहलवान के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। केवल इतने पर ही वह नहीं रुका। उसने पहलवान पर घूसों की बरसात भी कर दी। पहलवान युवक भौचक रह गया। उसके पास शरीर-बल तो था, लेकिन मनोबल नहीं। बंगाली युवक ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और उसके सीने पर चढ़ बैठा। पहलवान के पाँव उखड़ गये, उसने जैसे-तैसे स्वयं को छुड़ाया और मैदान छोड़कर भाग गया। यानि कि शारीरिक बल के साथ मनोबल का होना भी बहुत आवश्यक है, बिना मनोबल के शारीरिक बल का क...

वाणी से पता चलता है व्यक्ति का व्यवहार

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बोधकथा। एक बार की बात है-एक राजा वन-विहार के लिए निकले, रास्ते में उन्हें तेज प्यास लगी, नजर दौड़ाई एक अन्धे की झोपड़ी दिखी, उसमें जल भरा घड़ा दूर से ही दिख रहा था। राजा ने सिपाही को भेजा और एक लोटा जल माँग लाने के लिए कहा। सिपाही वहाँ पहुँचा और बोला-ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे, अन्धा अकड़ू था। उसने तुरन्त कहा-चल-चल तेरे जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। पानी तुझे नहीं दूँगा। सिपाही निराश लौट पड़ा। इसके बाद सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा गया। सेनापति ने समीप जाकर कहा-अन्धे! पैसा मिलेगा पानी दे। अन्धा फिर अकड़ पड़ा। सेनापति को भी खाली हाथ लौटता देखकर राजा स्वयं चल पड़े। समीप पहुँचकर वृद्ध जन को सर्वप्रथम नमस्कार किया और कहा-‘प्यास से गला सूख रहा है। एक लोटा जल दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।’ अंधे ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बैठाया और कहा- ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों का राजा जैसा आदर है। जल तो क्या मेरा शरीर भी स्वागत में हाजिर है। कोई और भी सेवा हो तो बतायें। राजा ने प्यास बुझाई और अंधे का आभार जताया। अन्धे ने कहा-वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है। वहीं यह भी कहा गय...

हंस और कौआ

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बोधकथा। एक बार एक शिकारी शिकार करने गया, शिकार नहीं मिला, थकान हुई और एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया। पवन का वेग अधिक था, तो वृक्ष की छाया कभी कम-ज्यादा हो रही थी, डालियों के यहाँ-वहाँ हिलने के कारण। वहीं से एक अतिसुन्दर हंस उड़कर जा रहा था, उस हंस ने देखा की वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा है, धूप उसके मुँह पर आ रही है तो ठीक से सो नहीं पा रहा हैं, तो वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सोये। जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठा, इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर वहाँ से उड़ गया। तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा और उसकी नज़र हंस पर पड़ी और उसने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया। हंस नीचे गिरा और मरते-मरते हंस ने कहा- मैं तो आपकी सेवा कर रहा था, मैं तो आपको छाँव दे रहा था, आपने मुझे ही मार दिया? इसमें मेरा क्या दोष? शिकारी ने कहा-यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ, आपकी सोच आपके तन की तरह ही सुंदर हैं, आपके संस्कार शुद्ध हैं, यहाँ तक की आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डा...

तीन चालाक भाई और बुद्धिमान किसान

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बोध कथा। एक बार की बात है-एक गांव से तीन भाई धन कमाने के लिए बड़े शहर रवाना हुए। रास्ते में उन्हें उन्हीं की तरह यात्रा पर निकला किसान मिला, जिसके पास कुछ धन था। सभी भाइयों के मन में किसान को ठगने का विचार आया। उन्होंने उसे यात्रा में साथ ले लिया। रात को वे एक मंदिर में रुके तो तीनों भाइयों ने किसान को खाना लेने भेजा। जब वह खाना लेकर आया तो उसे किसी काम में उलझाकर अधिकांश खाना तीनों ने खा लिया। किसान बेचारा अधपेटा ही रह गया। वह आगे के लिए सावधान हो गया। अगले दिन जब किसान को उन्होंने लड्डू लाने के लिए भेजा तो किसान ने अपना हिस्सा पहले ही खा लिया। कम लड्डू देखकर तीनों ने कहा, ‘तुमने हमारे बिना लड्डू कैसे खा लिए?’ किसान ने एक और लड्डू मुंह में उठाकर रखा और कहा, ‘ऐसे।’ तीनों मन मसोसकर रह गए और बाद में किसान से बदला लेने का निश्चय किया।शहर से धन कमाकर लौटने से पहले तीनों ने किसान से रात को खीर बनवाई और कहा​ कि जिसे सबसे अच्छा सपना आएगा, वही इस खीर को सुबह खाएगा। चतुर किसान ने उनके सोने के बाद सारी खीर खा ली। सुबह तीनों भाइयों ने सपने सुनाने शुरू किए। एक ने कहा कि मैंने सपने में देखा कि मैं...

जीवन में साहसी होना जरूरी

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बोधकथा। बिल्ली के भय से परेशान चूहे ने एक दिन विधाता से प्रार्थना की कि मुझे बिल्ली बना दो। विधाता ने दया करके उसे बिल्ली बना दिया। लेकिन अब उसे कुत्ते का डर लगने लगा। फिर प्रार्थना की तो कुत्ता, कुत्ते से लकड़बग्घा बना दिया, इसी तरह फिर विधाता ने चूहे को शेर तक बना दिया। किंतु अपने डरपोक मन से तू शेर के शरीर में भी चूहा ही रहा। जा फिर से चूहा हो जा। साहस के अभाव में मनुष्य की आधी शक्ति, प्रतिभा, बल चले जाते हैं और आधे उपयोग के अभाव में नष्ट हो जाते हैं।

कष्टों से नहीं डरते सच्चे मनुष्य

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  बोधकथा। स्वतंत्रता संग्राम में जूझते हुये महाराणा प्रताप वन, पर्वतों में अपने छोटे परिवार समेत मारे-मारे फिर रहे थे। एक दिन ऐसा अवसर आया कि खाने के लिये कुछ भी नहीं रहा। अनाज को पीसकर उनकी धर्मपत्नी ने जो भोजन बनाया था, उसे जंगली जानवर उठा ले गये। छोटी बच्ची भूख से व्याकुल होकर रोने लगी। महाराणा प्रताप का साहस टूटने लगा, वह इस प्रकार बच्चों को भूख से तड़पकर विहृवल होते देखकर विचलित होने लगे। एक बार महाराणा प्रताप के मन में आया कि शत्रु से संधि कर ली जाये और आरामपूर्वक जीवन बिताया जाये। उनकी मुख मुद्रा गम्भीर विचार में डूबी हुई ​थी। रानी को अपने पतिदेव महाराणा प्रताप की चिंत समझने में देर न लगी, उन्होंने प्रोत्साहन भरे शब्दों में कहा कि नाथ, कर्तव्यपालन मानव जीवन की सर्वोपरि सम्पदा है, इसे किसी भी मूल्य पर गंवाया नहीं जा सकता, सारे परिवार के भूखों या किसी भी प्रकार मरने के मूल्य पर भी नहीं। सच्चे मनुष्य न कष्टों से डरते हैं और न ही आघातों से, उन्हें तो कर्तव्य का ही ध्यान रहता है। आप दूसरी बात क्यों सोचने लगे। पत्नी की बात सुनकर महाराणा प्रताप का उतरा हुआ चेहरा फिर से चमकने लगा और...

आदर्शों की रक्षा के लिये चट्टान की तरह बितायें जीवन

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बोध कथा। जीवन के संघर्ष और आंधियों से दु:खी एक नाविक जहाज से उतरकर बाहर आया। समुद्र के मध्य अडिग और अविचलित चट्टान की स्वच्छता को देखकर उसको कुछ शांति मिली। वह थोड़ा आगे बढ़ा और एक टेकरी पर खड़े होकर चारों ओर देखने लगा। उसने देखा, समुद्र की उत्ताल तरंगें चारों ओर से उस चट्टान पर निरंतर आघात कर रही हैं, तो भी चट्टान के मन में न रोष है और ​न विद्वेष। संघर्षपूर्ण जीवन पाकर भी उसे कोई ऊब और उत्तेजना नहीं है। मरने की भी उसने इच्छा नहीं की। यह देखकर नाविक का हृदय श्रद्धा से भर गया। उसने चट्टान से पूछा, तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं, फिर भी तुम निराश नहीं हो चट्टान। तब चट्टान की आत्मा धीरे से बोली, तात् निराशा और मृत्यु दोनों एक ही वस्तु के उभयपृष्ठ हैं, हम निराश हो गये होते, तो एक क्षण ही सही दूर से आये अतिथियों को विश्राम देने, उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते, नाविक का मन एक चमकती हुई प्रेरणा से भर गया। जीवन में कितने संघर्ष आए, अब मैं चट्टान की तरह जीऊंगा ताकि हमारी न सही, भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा तो हो सके।

देशप्रेमी जापानी नागरिक

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संघ साहित्य : काफी समय पहले की बात है। उस समय जापान विकसित देशो में शामिल नहीं था, उस समय जापान में रेलगाड़ियों की हालत भी दयनीय थी। एक भारतीय भी उस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहा था। रेलगाड़ी की सीट टूटी हुई थी, एक जापानी नागरिक भी उस ट्रेन में सफर कर रहा था। जापानी नागरिक ने अपने बैग से सूई धागा निकाला और सीट की सिलाई करने लगा, भारतीय नागरिक ने पूछा क्या आप रेलवे के कर्मचारी हैं, उसने कहा नहीं मैं एक शिक्षक हूं। मैं इस रेलगाड़ी से हर रोज आता-जाता हूं। इस सीट की खस्ता हालत देख बाजार से सूई, धागा खरीद लाया हूं, सोचा हर रोज इस सीट को देखकर मुझे महसूस होता था कि अगर कोई विदेशी नागरिक इसे देखेगा तो मेरे देश की कितनी बेइज्जती होगी, ऐसा सोचकर सीट की सिलाई कर रहा हूं। सलाम उस देश के शिक्षक को, जो देश की इज्जत अपनी इज्जत समझता हो और थोड़ा सा काम करता हो। और वह ही जापान आज इतना विकसित हो गया है कि हम उससे बुलेट ट्रेन खरीद रहे हैं। वहीं अपने देश की बात करें तो लोकतंत्र और अधिकारों के नाम पर वाहनों, दुकानों, मकानों आदि को फूंक देना आम बात है।