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ईर्ष्या का फल

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सुविचार। ईर्ष्या का फल ईर्ष्या करने वाले को ही भोगना पड़ता है। ईर्ष्या मृत्यु का ही रूप है। जिस प्रकार मृत्यु मन को मूर्छित कर देती है, सगे-सम्बन्धियों की पहचान का ज्ञान नहीं रहने देती, वैसे ही ईर्ष्या भी मन को मूर्छित कर देती है। जो ईर्ष्या रूपी रोग में फंसे रहते हैं वह अपने जीवन और आयु का हृास करते रहते हैं। उनकी विचारशक्ति नष्ट हो जाती है। मन का कार्य है विचार करना, विवेक द्वारा हिताहित और भले-बुरे की परख करना, आत्मबोध करना। जिस मन में ईर्ष्या में आसन लगा लिया है, उसे और क्या सूझेगा। ईर्ष्या के कारण उस विवेक बुद्धि का नाश हो जायेगा, जिसके कारण मनुष्य, मनुष्य कहलाता है। जब मनुष्य तत्व का आधार ही लुप्त हो गया, तब उसके मरने में संदेह ही क्या रहा। ईर्ष्या एक ऐसा शब्द है जो मानव के खुद के जीवन को तो तहस-नहस करता है औरों के जीवन में भी खलबली मचाता है। यदि आप किसी को सुख या खुशी नहीं दे सकते तो कम से कम दूसरों के सुख और खुशी देखकर जलिए मत। ईर्ष्यावश दूसरों पर क्रोध करते समय मन जिह्वा तथा मुख मलिन होते हैं।

'पृथ्वी पर ज्ञान ही स्वर्ग के समान है'

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सुविचार : कलयुग का अभी प्रथम चरण चल रहा है यानि कि अधर्म और अन्याय का बोलबाला। कलयुग में क्या—क्या होने वाला है और कितने वर्षों का रहेगा कलयुग, इन सबका आकलन बड़े ही सटीक पुराणों और शास्त्रों में है। वहीं धर्मग्रंथ महाभारत में ऐसी ज्ञान की हजारों बातें हैं, जो मानव के दैनिक जीवन में आवश्यक है। — झूठ बोलना या झूठ का साथ देना एक ऐसा अज्ञान है, जिसमें डूबे हुए लोग कभी भी सच्चे ज्ञान या सफलता को नहीं पा सकते। — धरती पर अच्छा ज्ञान या शिक्षा ही स्वर्ग है और बुरी आदतें या अज्ञान ही नरक। — जिस काम को करने के पुण्य की प्राप्ति हो या दूसरों का भला हो, उसे करने में देर नहीं करनी चाहिए। जिस पल वे काम करने का विचार मन में आए, उसी पल उसे शुरू कर देना चाहिए। — पुण्य कर्म जरूर करना चाहिए, लेकिन उनका दिखावा बिल्कुल भी न करें। जो मनुष्य लोगों के बीच तारीफ पाने के लिए या दिखावे के उद्देश्य से पुण्य कर्म करता है, उसे उसका शुभ फल कभी नहीं मिलता। — सभी लोगों के साथ एक सा व्यवहार करने वाला और दूसरे के प्रति मन में दया और प्रेम की भावना रखने वाला मनुष्य जीवन में सभी सुख पाता है। — अपने मन और इन्द्रियों क...