'चातुर्य नारी का आभूषण है'

 सुभाषित—
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद गजभूषणम्।
चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणम्॥

भावार्थ : तेज चाल घोड़े का आभूषण है, मत्त चाल हाथी का आभूषण है, चातुर्य नारी का आभूषण है और उद्योग में लगे रहना नर का आभूषण है।
अतीव  बलहीनं  हि  लङ्घनं  नैव  कारयेत्  |
ये गुणा: लङ्घने प्रोक्तास्ते गुणा: लघुभोजने||

भावार्थ – अत्यन्त दुर्बल व्यक्तियों को उपवास कभी नहीं करना चाहिये| उपवास में जो गुण हैं वे सभी गुण कम और सुपाच्य भोजन करने में भी होते हैं|

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