वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि धारण किये हुए भगवान् विष्णु को नमन
अर्थ सहित मंत्र—
शंखचक्रं सकिरीटकंडलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्ष:स्थलकौस्तुभश्रियं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।
भावार्थ : शंख, चक्र, किरीट, कुण्डल पीताम्बर गले में हार, वक्ष:स्थल पर कौस्तुभमणि धारण किये हुए भगवान् विष्णु को मेरा नमन।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
भावार्थ : गजानन, भूतगणों से सेवित, कपित्थ, जम्बू जिसका प्रिय भोजन है, पार्वती पुत्र, शोक विनाशक गणेशजी को मेरा नमन।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
भावार्थ : गौर वर्ण, गले में सांप, परम कारुणिक, विश्व के मूल कारण, हृदय में सदा विराजमान पार्वती—शिव को मेरा प्रणाम।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।
एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।।
भावार्थ : हे सरस्वति! लक्ष्मी मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति—इन आठ स्वरूपों से मेरी रक्षा करो।
नीलाम्बुजश्यामलकोमलांगम् सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम।।
भावार्थ : नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, सीताजी वामभाग में विराजमान हैं और हाथों में अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूं।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।
भावार्थ : मन जैसी स्फूर्ति और वायु जैसे वेग वाले, परम बुद्धिमान, इंद्रियनिग्रही, वानरपति, वायुपुत्र हनुमान की शरण लेता हूं।
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुंदरमुखादरविन्दनेत्रात् कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने।।
भावार्थ : हाथ में वंशी, घनश्याम—शरीर पर पीताम्बर, बिम्बरा—जैसे लाल होंठ, पूर्णचन्द्र—जैसे मुख, कमलनेत्र—ऐसे कृष्ण के अतिरिक्त और कोई तत्व मैं नहीं जानता।
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