किसी को भी फुसरत नहीं

बोधकथा : बुढ़िया पटरी पर खड़ी थी और एक लड़की का गट्ठर उसके पास पड़ा था। हर आते-जाते आदमी से वह कहती, बेटा, तेरी बड़ी उमर हो, यह गट्ठा जरा मेरे सिर पर रख दे। लेकिन किसी को भी फुसरत नहीं थी कि बुढ़िया की इतनी-सी मदद कर देता। लोग सुनी-अनसुनी करके चलते रहते। बुढ़िया की आंखों में अधीरता थी और समय बीतता जा रहा था। वह बाजार उठ जायगा। लकड़ी न बिकी तो उस दिन के खाने-पीने का क्या होगा? उसकी आंखों में आंसू छलछला आये। इतने में एक वृद्ध सज्जन उधर से आते दिखाई दिये। सिर पर पगड़ी, बड़ी-बड़ी मूंछे, कंधे पर अंगोछा, पांव में चप्पल, एक हाथ में बेंत। वह जरा पास आये तो बुढ़िया ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला, बेटा, यह बोझ मेरे सिर के ऊपर उठा कर रख देख, बड़ा उपकार होगा तेरा। वह सज्जन जरा रुके। बुढ़िया को नीचे से ऊपर तक देखा, झुककर गट्ठर उठाया और उसके सिर पर रख दिया। बुढ़िया आशीर्वाद देती चली गई। ये सज्जन थे न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानडे-महाराष्ट्र के न्यायधीश और अनेक नेताओं के गुरु।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वृष राशि वालों के लिए बेहद शुभ है नवम्बर 2020

26 नवम्बर 2020 को है देवउठनी एकादशी, शुरू होंगे शुभ कार्य

15 मई से सूर्य मेष से वृषभ राशि में जाएंगे, जानें किन राशियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा