सभी के लिए है महामारी

बोधकथा : एक बार पुणे में कोई घर ऐसा न बचा था, जहां से महामारी में कोई-न-कोई मरा न हो। चहुंओर हाहाकार मचा हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक का बड़ा लड़का बीमार हुआ और कुछ ही दिनों की बीमारी के बाद चल बसा। लोग मातमपुरसी के लिए आए, लेकिन लोकमान्य निश्चित होकर लोगों से बातें करते रहे। लोगों को आश्चर्य हुआ। बड़ा लड़का चला गया और तिलक को कोई दु:ख नहीं! तब एक महाशय ने कहा, इतना बड़ा हादसा हो गया, बड़ा लड़का चला गया, और आप हैं कि इतने धीरज से बातें कर रहे हैं। गजब की सहनशक्ति है आपकी! लोकमान्य तिलक सहजभाव से बोले कि अरे भाई! इसमें धीरज और सहज की क्या बात है। जब होली आती है तो लोग हर घर से उसमें एक-एक लकड़ी डालते हैं न? अपने पूना में महामारी की होली ही तो आई है। सबके घर से लकड़ी दी गई तो मेरा घर क्यों खाली रहता? यहां से भी एक लकड़ी जानी चाहिए थी सो चली गई।

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