संदेश

धर्म लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अक्‍टूबर में दशहरा, करवा चौथ, धनतेरस और दीपावली के चलते रहेगा उल्लास

चित्र
धर्म। धार्मिक दृष्टिकोण से अक्टूबर 2022 का महीना बहुत ही खास माना जाता है। इस साल अक्टूबर में सुहागिन महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखेंगी, जबकि दशहरा व दीपावली जैसे बड़े पर्व भी इसी महीने में पड़ेंगे। अक्टूबर 2022 में कई बड़े त्‍योहार पड़ने से महीने भर हर्ष व प्रसन्नता का माहौल रहेगा। शारदीय नवरात्रि के दौरान महीने की शुरुआत होगी। 3 अक्‍टूबर को महाअष्‍टमी, 4 अक्टूबर को महानवमी, 5 अक्‍टूबर को दशहरा, 6 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी व्रत सबका, 7 अक्टूबर को प्रदोष व्रत, 9 अक्टूबर को व्रतादि की आश्विनी पूर्णिमा/शरद पूर्णिमा, 11 अक्टूबर को अशून्य शयन द्वितीया व्रत। 13 अक्‍टूबर को करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी व्रत, 15 को स्कन्द षष्ठी व्रत, 17 अक्टूबर को अहोई अष्टमी व्रत, 21 अक्टूबर को रम्भा एकादशी व्रत। 23 अक्‍टूबर को धनतेरस/धन्वन्तरि जयन्ती, 24 अक्‍टूबर को दीपावली/नरक चतुर्दशी व्रत, 25 अक्‍टूबर को गोवर्धन पूजा/श्राद्धादि की अमावस्या और 26 अक्‍टूबर को भाई दूज मनाई जाएगी। 28 को वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत, 29 को सौभाग्य पंचमी व्रत, 30 अक्टूबर को सूर्य षष्ठी व्रत।

शिवलिंग और ज्योर्तिलिंग

चित्र
धर्म। शास्त्रों में भागवान शंकर को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। भगवान शंकर ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिवलिंग की पूजा की जाती है। वहीं दूसरी ओर भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। ज्योतिर्लिंग हमेशा अपने आप प्रकट होते हैं, लेकिन शिवलिंग मानव द्वारा बनाए और स्वयंभू दोनों हो सकते हैं। शिवलिंग प्राकृतिक रूप से स्वयंभू व अधिकतर शिव मंदिरों में स्थापित किया जाता है। सनातन धर्म में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं- - सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात - मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्रप्रदेश - महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, उज्जैन - ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग,खंडवा - केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड - भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र - बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तरप्रदेश - त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र - वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड - नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात - रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु - घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

सनातन धर्म करेगा विश्व का कल्याण

चित्र
धर्म। सनातन धर्म में हाथ जोड़कर प्रणाम करना, माथे पर तिलक लगाना, पूजा में शंख बजाना और बड़े-बुजुर्गों के चरण स्पर्श करना, दीन-दु:खी की सेवा करना, सभी के सुख की कामना करने की विशेष परम्परा रही है। आधुनिक युग में इसके वैज्ञानिक महत्व भी हैं। भारतीय जीवनशैली में जमीन पर बैठकर खाना खाने की परम्परा सदियों पुरानी है। जमीन पर पालथी मारकर बैठकर खाना खाने से भोजन अच्छे से पचता है और शरीर में जठर रस का सही उपयोग होता है। जमीन पर पालथी मारकर बैठकर भोजन करने से खूब आनंद आता है, बशर्ते भोजन परिवार के साथ हो। वहीं तिलक लगाना भारतीय परम्परा का हिस्सा है, महिला, पुरुष, बच्चे और वृद्ध सभी के माथे पर तिलक लगाया जाता है। दोनों आंखों के बीच आज्ञा चक्र होती है, इसलिए इस स्थान पर तिलक लगाने से एकाग्रता बढ़ती है, साथ ही तिलक लगाते समय उंगली का दबाव माथे पर पड़ता है, इससे नसों का रक्त संचार भी शुद्ध होता है। बता दें कि पूजा-पाठ में शंख बजाने का विधान है। शंख बजाने से कई बीमारियां दूर होती हैं, इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और फेफड़ों का संक्रमण समाप्त होता है। पंडित कामता प्रसाद मिश्र बताते हैं कि हम अक्सर अप...

पितृपक्ष 11 सितम्बर से, पितृदेव से मांगें आशीर्वाद

चित्र
धर्म। आश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पितृगण अपने वंशजों के यहां धरती पर अवतरित होते हैं और आश्विन अमावस्या की शाम समस्त पितृगणों की वापसी उनके गंतव्य की ओर होने लगती है। इस वर्ष यानि 2022 में पितृपक्ष 11 सितम्बर, रविवार, प्रतिपदा से श्राद्ध का प्रारम्भ हो रहा है। पितृ पक्ष में श्राद्ध से केवल पितर ही नहीं प्रसन्न होते हैं, बल्कि इससे स्वयं का भी कल्याण होता है। श्राद्ध कर्म सिर्फ 3 पीढ़ी तक ही किया जाता है। पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन सायं के समय पितरों को भोग लगाकर घर के द्वार पर दीप जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि हे पितृदेव जो भी भूल हुई हो, उसे क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें। मान्यता है कि पितृगण सूर्य चंद्रमा की रश्मियों के कारण वापस चले जाते हैं। ऐसे में वंशजों द्वारा प्रज्ज्वलित दीपों से पितरों की वापसी की राह दिखाई देता है और वह आशीर्वाद के रूप में सुख-शांति देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की इच्छापूर्ति और उनका श्राद्ध कर कुंडली के पितृदोष को दूर किया जा सकता है। वहीं श्राद्ध के दौरान अरवा चावल का सेवन किया जाता है जिसे कच्चे चावल के नाम से भी ज...

बेहद चालाक होते हैं सुनहरे बाल वाले लोग

चित्र
धर्म। ज्योतिष शास्त्र की सूक्ष्म इकाई सामुद्रिक शास्त्र में कहा गया है कि पुरुष व महिला के अंगों को देखकर उसके स्वभाव, गुण व भविष्य के बारे में पता लगाया जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन लोगों के बाल काले होते हैं, वे अनुशासन के बहुत पक्के माने जाते हैं। ऐसे लोग एक बार जिस काम की जिम्मेदारी ले लें तो फिर उसे पूरा करते ही हैं। जीवन में खूबसूरती और ईमानदारी के प्रति आकर्षित होते हैं, दूसरे लोगों को काफी सम्मान करते हैं। वहीं सुनहरे बाल वाले लोगों को शांतिप्रिय और चालाक माना गया है। ऐसे लोग थोड़े मनमौजी स्वभाव के होते हैं लेकिन अपने परिवार को हमेशा पहले स्थान पर रखते हैं। कला और साहित्य में काफी रूचि रखते हैं, आत्मविश्वास की थोड़ी कमी होती है। जिन लोगों के बाल घुंघराले होते हैं, वे अपने काम को लेकर काफी गंभीर और रचनात्मक स्वभाव के माने जाते हैं, ऐसे लोग पूरी लगन और निष्ठा से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं, कठोर मेहनत करना उनकी खूबी होती है और इसी के बल पर वे अपनी पहचान बनाते हैं। वहीं चिकने और मुलायम बाल वाले लोगों के अंदर लीडरशिप क्वालिटीज कूट-कूटकर भरी होती हैं, ऐसे लोग अपने स्वभ...

बेहद शक्तिशाली होते हैं 'मंत्र'

चित्र
धर्म। मंत्रों का मंत्र महामंत्र है गायत्री मंत्र। यह प्रथम इसलिए कि विश्व का प्रथम वेद ऋग्वेद की शुरुआत ही इस मंत्र से होती है। माना जाता है कि भृगु ऋषि ने इस मंत्र की रचना की है। यह मंत्र इस प्रकार है- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् । वैसे मंत्र तों कई हैं, लेकिन मंत्रोच्चार निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं- - वाचिक जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है, अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए। - उपाशु जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता, तो वह उपांशु जप कहलाता है। शां‍‍‍ति और पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु रीति से मंत्र को जपना चाहिए। - मानस जप सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है और जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को और एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है तो, वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है, मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहि...

टीका लगाने से मिलती है अद्भुत ऊर्जा

चित्र
आस्था। सामान्य पूजन या वैदिक पूजन में टीका या तिलक लगाना बेहद जरूरी और अहम माना गया है। कोई शुभ या मांगलिक कार्य में माथे पर तिलक लगाने की परम्परा है। तिलक हमेशा मस्तिष्क के केंद्र पर लगाया जाता है। मानव शरीर में सात छोटे ऊर्जा केंद्र होते हैं। मस्तिष्क के बीच में आज्ञाचक्र होता है, जिसे गुरुचक्र भी कहते हैं, यह जगह मनुष्य के शरीर का केंद्र स्थान है। गुरुचक्र को बृहस्पति ग्रह का केंद्र माना जाता है, बृहस्पति सभी देवों का गुरु होता है, इसीलिए इसे गुरुचक्र कहा जाता है। तिलक लगाने से मन को शांति मिलती है, माथे पर तिलक लगाने के पीछे मनोवैज्ञानिक कराण यह है कि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में खूब इजाफा होता है। माथे के बीच पर जब भी आप तिलक लगाते हैंं उससे लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं, यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से भी हमें बचाता है। अनामिका उंगली से तिलक लगाने से तेजस्वी और प्रतिष्ठा मिलती है और मान-सम्मान के लिए अंगूठे से तिलक लगाया जाता है, अंगूठे से तिलक लगाने से ज्ञान और आभूषण की प्राप्ति होती है और विजय के लिए तर्जनी उंगली से तिलक लगाने का रिवाज है। टीका लगाने से अद्भु...

बारिश की भविष्यवाणी करने वाला मंदिर

चित्र
लखनऊ। कानपुर स्थित बेहटा गांव में भगवान जगन्नाथ का मंदिर भीतरगांव विकासखंड से सिर्फ 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर बारिश की भविष्यवाणी पहले ही कर देता है। बारिश होने के 6 से 7 दिन पहले से ही इस मंदिर की छत से पानी की बूंदें टपकने लगती हैं। लोग बताते हैं कि जिस साइज की बूंद होती है, उसी तरह की बारिश होती है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करते आते हैं। जैसे-जैसे बारिश खत्म होती जाती है, वैसे-वैसे मंदिर की छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है, मंदिर के अंदर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है। इस मूर्ति में विष्णु भगवान के 24 अवतार देखे जा सकते हैं, इन 24 अवतारों में कलियुग में अवतार लेने वाले कल्कि भगवान की भी मूर्ति मंदिर में मौजूद है। इस मंदिर के गुम्बद पर एक चक्र लगा हुआ है जिसकी वजह से आज तक मंदिर और इसके आसपास आकाशीय बिजली नहीं गिरी है। बता दें कि इस मंदिर के बारे में जानकारी नहीं है कि कब और किसने बनवाया, लेकिन मंदिर में कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि यह मंदिर सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। हालाँकि इसके अलावा मंदिर में उपस्थित अयागपट्ट के आधार पर कई इ...

श्रीमद्भगवद्गीता

चित्र
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते। न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतोयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे। जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते, क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जाता है। यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भ यह नहीं मारा जाता। वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्। कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम्। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि। तथा शरीरराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही। हे पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये ...

श्रीमद्भभगवद्गीता

चित्र
गुरुनहत्वा हि महानुभावांछ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरुनिहैव भुंजीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान्। इसलिये इन महानुभाव गुरुजनों को न मारकर मैं इस लोक में भिक्षा का अन्न भी खाना कल्याणकारक समझता हूं, क्योंकि गुरुजनों को मारकर भी इस लोक में रुधिर से सने हुए अर्थ और कामरूप भोगों को ही तो भोगूंगा। न चैतद्विद्म: कतरन्नो करीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु:। यानेन हत्वा न जिजीविषामस्तेवस्थिता: प्रमुखे धार्ताराष्ट्रा:। हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिये युद्ध करना और न करना—इन दोनों में से कौन—सा श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या हमको वे जीतेंगे। और जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं। कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता:। यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेअहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्। इसलिये कायरतारूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहितचित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूं कि जो साधन निश्चित कल्याणकारक हो, वह मेरे लिये कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य ...

श्रीमद्भभगवद्गीता

चित्र
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय:। धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्। संजय उवाच एवमुक्त्वार्जुन: सड़्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस:। ।।ऊं तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगश्स्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेअर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोअध्याय:।। यदि मुझे शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिये अधिक कल्याणकारक होगा। संजय बोले— रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाणसहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये। ऊं श्री परमात्मने नम: अथ द्वितीयोअध्याय: संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्। विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन:। श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वग्र्यमकीर्तिकरमर्जुन संजय बोले— उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आंसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् मधुसूदन ने यह वचन कहा। श्री भगवान बोले— हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप...

5 अगस्त 2019 को है नागपंचमी

चित्र
आस्था : पांच अगस्त 2019 को सावन की नागपंचमी मनायी जाएगी। मान्यता के अनुसार नागपंचमी के दिन लोग नागदेवता के मंदिर में जाकर विधिवत पूजा करते हैं और सांपों को दूध पिलाते हैं। सावन की पंचमी के दिन नागदेवता की पूजा और दूध पिलाने के बारे में बताया गया है। माना जाता है कि अगर श्रावण माह में अगर नाग देवता की पूजा और नाग पंचमी के दिन सापों को दूध पिलाया जाए तो नाग देवता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे नागदंश का भय भी समाप्त होता है।  शास्त्रों में तो यह तक बताया गया है कि नागदेवता की पूजा से मां अन्नापूर्णा प्रसन्ने होती हैं और घर में अन्न के भंडार कभी खाली नहीं होने देती। नागपंचमी के दिन सपेरे गली-गली घूमते हैं और सापों के दर्शन करवाते हैं और दान लेते हैं। इस दिन भक्त सापों को दूध पिलाते हैं और सपेरे को अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देते हैं। नागपंचमी के दिन धान का लावा अर्पित करने को भी महत्व दिया जाता है।

श्रावण माह में मायके क्यों जाती है नवविवाहित महिलाएं

चित्र
धर्म : पवित्र माह सावन आते ही त्योहार शुरू हो जाते हैं। सावन में होने वाले पर्व त्योहार कजरी तीज, हरियाली तीज, मधुश्रावणी, नाग पंचमी जैसे त्योहार मनाए जाते हैं। नव विवाहिताएं इस महीने में अपने पीहर चली जाती है। मान्यता है कि श्रावण माह में नवविवाहिता स्त्रियों को अपने मायके भेज दिया जाता है। धार्मिक और लोकमान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पति की आयु लम्बी होती है और दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है। आयुर्वेद भी स्वीकार करता है लेकिन इसका अपना वैज्ञानिक मत है।  आयुर्वेद के अनुसार सावन के महीने में मनुष्य के अंदर रस का संचार अधिक होता है जिससे काम की भावना बढ़ जाती है। मौसम भी इसके लिए अनुकूल होता है जिससे नवविवाहितों के बीच अधिक सेक्स सम्बन्ध से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ सकता है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि सावन के महीने में पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शुक्राणुओं का संरक्षण करना चाहिए।  आयुर्वेद में लिखा है कि इस महीने में गर्भ ठहरने से होने वाली संतान शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो सकती है। इसलिए ही भारतीय संस्कृति में पर्व त्योहार की ऐसी परम्परा बनाई गई है ताक...

श्रीमद्भगवद्गीता

चित्र
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस:। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्। कथं न ज्ञेयस्माभि: पापादस्मान्निवर्तितुम्। कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन। यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते तो भी हे जर्नादन! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिए।  कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना:। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत। अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय:। स्त्रीषु दुष्टासु वाष्र्णेय! जायते वर्णसंकर:। कुल के नाश से सनातन कुल—धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है। हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वाष्र्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्ण संकर उत्पन्न होता है। संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया:। दोषैरेतै: कुलध्नानां वर्णसंकरकारकै:। उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता:। वर्णस...

श्रीमद्भगवद्गीता

चित्र
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदहृयते। न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च में मन:। निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानिक केशव। न च श्रेयोनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे। हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित सा हो रहा है, इसलिये मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूं। हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं तथा युद्ध में स्वजन—समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता। न काड़ंक्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च। किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा। योषामर्थे काड्ंक्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च। त इमेवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च। हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूं और न राज्य तथा सुखों को ही। हे गोविन्द! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है। हमें जिनके लिये राज्य, भोग सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्ध में खड़े हैं। आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्यामला: सम्बन्धिनस्तथा। एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नोतो​अपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो...

सज गई धर्मनगरी हरिद्वार, जल भरकर घर लौट रहे कांवड़ यात्री

चित्र
धर्म : बारह महीनों में सबसे पवित्र महीना सावन का बताया गया है। चहुंओर बम-बम भोले के जयकारे गूंज रहे हैं। हरिद्वार में शिवालयों की साज सज्जा देखते ही बन रही है। दक्षनगरी में भी तैयारियों जोरों पर है। मान्यता के अनुसार भोले शंकर श्रावण मास में अपनी ससुराल दक्षनगरी कनखल में विराजते हैं, इसलिए हरिद्वार में सावन का महत्व और बढ़ जाता है।  दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भी श्रावण के पहले सोमवार पर जलाभिषेक को विशेष तैयारियां की गई थीं, जिससे कई लोग महादेव को जल अर्पित कर पाये। वहीं दूसरी ओर हरकी पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड से कांवड़ यात्री जल भरकर अपने घरों को लौट रहे हैं। अब तक 25 लाख कांवड़ यात्री जल लेकर जा चुके हैं।

श्रीमद्भगवद्गगीता

चित्र
यावदेतान्निरीक्षेहं योद्धुकामानवस्थितान् । कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे। योत्स्यमानानवेक्षेहं य एतेत्र समागता: । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव:। और जब तक कि मैं युद्धक्षेत्रे में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं कि इस युद्धरूप व्यापार में मुझे किन—किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिये। दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो—जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूंगा। एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत। सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्। भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीखिताम्। उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान्कुरुनिति। संजय बोले—हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देखो। तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृनथ पितामहान् । आचार्यन्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रानसखींस्तथा। श्वशुर...

तमाम झंझावतों के बाद अग्रसर है सनातन धर्म

चित्र
धर्म : सनातन धर्म की जितना बखान किया जाये कम है, भारत का न आदि है न अंत है। धर्म पर तमाम झंझावत आये लेकिन निहायत ही ताकतवर धर्म पर हमला करने वाले स्वयं चखनाचूार हो गये। सबसे प्राचीन देश और धर्म सनातन और भारत। एक मात्र ग्रंथ है वेद। वेदों के सार को ही उपनिषद कहते हैं। इसे ही वेदांत कहा गया है। धर्म में ब्रह्म को ही सत्य माना गया है जो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त होकर भी जगत से अलग है। सनातन धर्म में रहस्य को महत्व दिया गया है। जीवन में यदि रहस्य नहीं है तो रोमांच और उत्साह भी नहीं रहेगा। हर वक्त किसी बात की खोज करना ही रोमांच है। इसीलिए हिन्दू धर्म एक रहस्यवादी धर्म है। जीवन, आत्मा, पुनर्जन्म, परमात्मा और यह ब्रह्मांड एक रहस्य ही है। इस रहस्य को जानने का रोमांच मनुष्‍य में आदि काल से ही रहा है। जिस मनुष्य की इस रहस्य को जानने में रुचि नहीं है वह पशुवत समान ही है। जीवन समझो व्यर्थ ही गया। हिन्दू धर्म मानता है कि मनुष्य का जन्म खुद को जानने के लिए ही हुआ है। सनातन धर्म में प्रत्येक त्योहार या पर्व सेहत, उत्सव, रिश्तों और प्रकृति से जुड़े हैं। हिन्दू धर्म मानता है कि ईश्वर ने मनुष्य को ...

श्रीमद्भभगवद्गीता

चित्र
तत: श्वेतैहैयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ। माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतु:। पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनन्जया:। पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:। इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन भी अलौकिक शंख बजाये। श्रीकृष्ण महाराज ने पांचजन्यनामक, अर्जुनने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:। नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ। काश्यश्च परमेश्वास: शिखंडी च महारथ:। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित:। कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजयनामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पकनामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखंडी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि। दुप्रदो द्रौपदेश्याश्च सर्वश: पृथवीपते। सौभद्रश्च महाबाहु: शंखान्दध्मु: पृथक्। स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्। राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु—इन सभी ने, हे राजन! सब ओर स...

श्रीमद्भगवद्गीता

चित्र
युधामन्युश्च विक्रांत उत्तमौजाश्ज वीर्यवान्। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा:। अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते। पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र—ये सभी महारथी हैं। हे ब्राहृमणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में जो भी प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के जो—जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूं। भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजय:। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च। अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:। नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा:। आप—द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा और भी मेरे लिये जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और सबके सब युद्ध में चतुर हैं। अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्। पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरिक्षितम्। अयनेषु च सर्वेषु यथाभागम​वस्थिता: भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि। भी...