श्रीमद्भभगवद्गीता
तत: श्वेतैहैयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ। माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतु:।पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनन्जया:। पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।
इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन भी अलौकिक शंख बजाये। श्रीकृष्ण महाराज ने पांचजन्यनामक, अर्जुनने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:। नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।
काश्यश्च परमेश्वास: शिखंडी च महारथ:। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित:।
कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजयनामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पकनामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखंडी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि।
दुप्रदो द्रौपदेश्याश्च सर्वश: पृथवीपते। सौभद्रश्च महाबाहु: शंखान्दध्मु: पृथक्।
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।
राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु—इन सभी ने, हे राजन! सब ओर से अलग—अलग शंख बजाये और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात् आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिये।
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज:। प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव:।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।
हे राजन! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांधकर डटे हुए धृतराष्ट्र को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा— हे अच्युत! मेरे रथ को देानों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये।
क्रमश:
इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन भी अलौकिक शंख बजाये। श्रीकृष्ण महाराज ने पांचजन्यनामक, अर्जुनने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:। नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।
काश्यश्च परमेश्वास: शिखंडी च महारथ:। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित:।
कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजयनामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पकनामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखंडी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि।
दुप्रदो द्रौपदेश्याश्च सर्वश: पृथवीपते। सौभद्रश्च महाबाहु: शंखान्दध्मु: पृथक्।
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।
राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु—इन सभी ने, हे राजन! सब ओर से अलग—अलग शंख बजाये और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात् आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिये।
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज:। प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव:।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।
हे राजन! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांधकर डटे हुए धृतराष्ट्र को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा— हे अच्युत! मेरे रथ को देानों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये।
क्रमश:
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