क्यों विवाह करना चाहते थे नारद मुनि

कथा : कई बार भगवान को अच्छे कार्य करने पर भी शापित होना पड़ा है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भगवान ने अनेक कष्ट सहकर भी स्वयं को मिले इन शाप को सहा है ताकि ये शाप देनेवाले व्यक्तियों का मान बना रहे। ऐसी ही एक घटना नारद मुनि से जुड़ी है। नारद मुनि भगवान विष्णु की भक्ति में साधना करने बैठ गए। ज्ञानी-ध्यानी नारद मुनि को तप करते देख देवराज इंद्र को लगा कि कहीं नारद मुनि अपने तप के बल पर स्वर्ग की प्राप्ति तो नहीं करना चाहते! इस पर उन्होंने कामदेव को स्वर्ग की अप्सराओं के साथ नारद मुनि का तप भंग करने के लिए भेजा। लेकिन नारद मुनि पर कामदेव की माया का कोई प्रभाव नहीं हुआ। तब डरे हुए कामदेव ने नारद जी से क्षमा मांगी और स्वर्ग को लौट गए। कामदेव की माया से मुक्त रहने पर नारद मुनि को इस बात का अहंकार हो गया कि उन्होंने कामदेव पर विजय प्राप्त कर ली है। ऐसे में वह अपनी विजय का बखान करने श्रीहरि के पास बैकुंठ पहुंचे और उन्हें पूरी घटना बताने लगे कि कैसे उन्होंने कामदेव को जीत लिया। श्रीहरि विष्णु नारद जी के मन में आ चुके अहंकार को जान गए और उन्होंने अपने परम प्रिय नादर मुनि को अहंकार से मुक्त करने का निश्चय किया। जब नारद जी बैकुंठ से लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक बहुत सुंदर और समृद्ध नगर दिखा, जिसमें बहुत बड़ा राजमहल था। यह नगर श्रीहरि ने अपनी योगमाया से निर्मित किया था। नारद मुनि अपनी धुन में होने के कारण कुछ समझ नहीं पाए और इस नगर के राजमहल में पहुंचे। राजा ने उनका भव्य स्वागत किया और अपनी पुत्री को बुलाकर नारद मुनि से कहा कि मुझे अपनी राजकुमारी का स्वयंवर करना है। आप इसका हाथ देखकर इसके भविष्य के बारे में कुछ बताइए। राजकुमारी के रूप को देखकर नारद जी मोहित हो गए। जब नारद जी ने उसका हाथ देखा तो हथेली की रेखाएं देखते ही रह गए। उसकी रेखाओं के अनुसार, उसका पति विश्व विजेता रहेगा और समस्त संसार उसके चरणों में नतमस्तक होगा। नारद जी ने यह बात राजा को न बताकर दूसरी अच्छी बातें कहीं और वहां से चले गए। राजकुमारी का रूप और उसके हाथ की रेखाएं देखकर नारद जी वैराग्य को भूल चुके थे। विवाह की कामना लेकर नारद जी वापस बैकुंठ गए और विष्णुजी से खुद को रूपवान बनाने की विनती की। इस पर श्रीहरि ने कहा ‘मुनिवर हम वही करेंगे, जो आपके हित में होगा।’ नारद जी ने उनकी बात के मर्म को नहीं समझा और विवाह के विचार में खोए हुए बैकुंठ से लौटकर, राजकुमारी के स्वयंवर में चले गए। उन्हें लग रहा था कि अब तो वह बेहद रूपवान हो गए हैं और राजकुमारी अब उनके ही गले में वरमाला डालेगी। लेकिन राजकुमारी ने एक अन्य राजकुमार के गले में वरमाला डाल दी और नारद मुनि की तरफ देखा तक नहीं। नारद जी को लगा श्रीहरि ने मुझे रूपवान बनाया, फिर राजकुमारी ने मुझे देखा भी नहीं, इन विचारों के साथ उन्होंने जल में अपना चेहरा देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। उनका चेहरा बंदर के समान था। नारद जी बहुत क्रोधित हुए और क्रोध में भरकर ही वे बैकुंठ पहुंचे। जहां श्रीहरि विष्णु के साथ उन्होंने राजकुमारी को भी देखा। इस पर उन्होंने श्रीहरि को बहुत भला-बुरा कहा और शाप दिया कि आपने बंदर का मुख देकर मेरा उपहास कराया है, मैं आपको शाप देता हूं कि आप पृथ्वी पर जन्म लेंगे और इन्हीं बंदरों की सहायता आपको लेनी होगी। आपने मुझे स्त्री वियोग दिया है, आपको भी स्त्री वियोग सहना होगा।श्रीहरि ने भी उनकी वाणी का मान रखा और श्रीराम के रूप में अवतार लिया।

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