उठो, जागो और श्रेष्ठ बनो

सुभाषित—
हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् ।
समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥
भावार्थ : हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है, समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है।
गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा।
भावार्थ : हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ़ जाता है।
उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् ।
भावार्थ : उठो, जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर स्वयं को बुद्धिमान बनाओ।

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