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ज्ञान और चरित्र की गरिमा

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प्रेरक कथा। महर्षि अत्रि की एक पुत्री थी, नाम था अपाला। अपाला कुछ बड़ी हुईं तो उनके शरीर पर कुष्ठ रोग हो गया। बहुत उपचार करने पर भी अच्छा न हुआ, बल्कि बढ़ता गया। पुत्री विवाह-योग्य हुई तो वर खोजा गया। उस विदुषी के ज्ञान की प्रशंसा सुनकर अनेक वर आये, लेकिन श्वेत दाग देखकर वापस लौट जाते। ऋषि शिष्य वृताश्व ने बिना कुछ पूछताछ किये ही भावावेश में पाणिग्रहण कर लिया। बाद में वृताश्व ने जब चर्म दोष देखा तो वह उदास हो गये और कभी ऋषि को, कभी अपाला को, कभी अपने आप को दोष देने लगे। किसी पर भार बनने की अपेक्षा अपाला अपने पिता के घर वापस चली आईं। उसने अपना समस्त ध्यान अध्ययन और तप में लगाया, अपाला की प्रवीणता ने उसकी गणना वरिष्ठ ऋषियों में कराई। चर्म दोष की अपेक्षा ज्ञान और चरित्र की गरिमा भारी पड़ी। बता दें कि अपाला अत्यंत ही मेधाविनी कन्या थीं। ऋषि अपने शिष्यों को जो कुछ भी पढ़ाते थे, एक बार सुनकर ही अपाला वह सब स्मरण कर लेती थीं। अत्यन्त कुशाग्रबुद्धि होने पर भी अपाला अत्रि की चिन्ता का कारण थीं, क्योंकि अपाला को चर्म रोग था।

महाराजा दिलीप ने की नंदिनी की सेवा व सुरक्षा

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प्रेरक कथा। वानप्रस्थ ग्रहण करने के बाद महाराजा दिलीप पत्नी सहित ब्रहृम​ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचे। वशिष्ठ ने नंदिनी गाय की सेवा के लिए नियुक्त किया। नंदिनी जब चरने के लिये जंगल में जाती, तो महाराज दिलीप धनुष-बाण लेकर उसकी रक्षार्थ साथ जाते। पत्नी भी साथ होती। एक दिन एक सिंह नंदिनी पर आक्रमण करने के लिए लपका। दिलीप ने धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ाया, सिंह रुका और बोला दिलीप! तुम जिसे सिंह समझ रहे वह मैं नहीं, मैं भगवान शंकर का वाहन हूं। तुम्हारे शस्त्रों का प्रभाव मुझ पर न होगा। दिलीप ने कहा कि आप जो भी हों वनराज, मैं नंदिनी पर किसी भी प्रकार का प्रहार नहीं करने दूंगा। वनराज ने कहा क मैं मार जाऊंगा यदि तुम नंदिनी के बदले में अपना शरीर देकर मेरी भूख मिटाओ। सहर्ष प्रस्तुत हूं, दिलीप ने कहकर धनुष-बाण समेटे। उन्होंने सिर झुकाया, लेकिर काफी समय तक कोई हलचल नहीं हुई, तो उस स्थान की ओर देखा, जहां सिंह खड़ा था, लेकिन वहां सिंह नहीं था, वहां मुस्कुरा रहे थे ब्रहृमऋषि वशिष्ठ। तुम्हारी साधना-तपश्चर्या पूरी हुई वत्स, अब तुम तत्वज्ञान के अधिकारी हो गये हो।

नारियल और पत्थर

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प्रेरक कथा। पेड़ की ऊंची डाली पर लटके नारियल ने नीचे नदी में पड़े पत्थर को देखकर घृणापूर्वक कहा कि घिस-घिसकर मर जाओगे, लेकिन नदी के पैर न छोड़ोगे, अपमान की भी कोई हद होती है। मुझे देखो, स्वाभिमानपूर्वक कैसे उन्नत स्थि​ति में मौज कर रहा हूं। पत्थर ने चुपचाप नारियल की बात सुन ली, कोई उत्तर न दिया। कुछ समय बाद पूजा की थाली में रखे उसी नारियल ने देखा कि नदी का वही पत्थर शालिग्राम के रूप में पूजा-पीठ पर प्रतिष्ठित है, जिसकी पूजा के लिये उसे नैवेद्य के रूप में लाया गया है। नारियल ने महसूस किया कि घिस-घिसकर परिमार्जित होने का परिणाम क्या होता है और अभिमान के मद में मतवाले रहने वालों की गति क्या हुआ करती है।

जगदम्बा की सच्ची उपासना

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प्रेरक कथा। गौरी मां श्रीरामकृष्ण देव की शिष्या थीं। उच्च कोटि की साधिका होने के कारण ठाकुर के शिष्यों में उनका बड़ा सम्मान था। एक बार वह अपने आश्रम में बालिकाओं को पढ़ा रही थीं। कोई व्यवधान न डाले, इसलिए दरवाजे पर रहने वाले सेवक को कहला दिया कि कोई मुझसे मिलने आए तो कहा देना, गौरी मां जगदम्बा की उपासना कर रही हैं। संयोग से थोड़ी देर बाद स्वामी विवेकानंद उनसे मिलने के लिये आ गये। सेवक ने उन्हें भी वही रटा रटाया जवाब दिया, लेकिन वह गौरी मां से मिलने अंदर चले गये, अंदर जाकर उन्होंने देखा, गौरी मां पूर्ण तन्मयता से कन्याओं को पढ़ा रही हैं। वह काफी देर तक यों ही खड़े रहे। बाद में जब गौरी मां की नजर उन पर पड़ी, तो विवेकानंद ने कहा, उस सेवक ने मुझे ठीक ही बताया था, यही जगदम्बा की सच्ची उपासना है।

साधु और बालक

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प्रेरक कथा। एक साधु के दर्शन के लिये गांव की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग आते, साधु चरणों पर भेंट चढ़ाते और उनके वचनामृत का पान करने के लिए बैठ जाते। साधु कह रहे थे कि सांसारिक प्रेम मिथ्या है, स्त्री, पुत्र सब लौकिक नेह और नाते छोड़कर मनुष्य को आत्मकल्याण की बात सोचनी चाहिए। भगवान का प्रेम ही सच्चा प्रेम है। एक छोटा सा बालक साधु की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। उसने छोटा सा प्रश्न किया, महात्मन् मैं कौन हूं, आत्मा—साधु ने संक्षिप्त उत्तर दिया। महाराज! मेरे पिता, मेरी माता दिन भर मेरे कल्याण की बात सोचते हैं, क्या वह आत्मकल्याण न हुआ। सर्वत्र फैली हुई विश्वात्मा से प्रेम क्या ईश्वर—प्रेम नहीं, जो उसके लिए संसार का परित्याग किया जाये, साधु चुप थे,उनसे कोई उत्तर देते न बन पड़ा।

दुनिया की अनोखी खूबसूरती है भगवद्भक्ति

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प्रेरक कथा। भक्तिमयी मीराबाई अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रेम में सदा भागवमग्न रहती थीं। एक दिन पूर्णिमा की रात को जब चंद्रमा की चांदनी चारों ओर छिटक रही थी, वह अपने कक्ष के अंदर किसी दूसरी ही दिव्य सृष्टि की ज्योत्स्ना का आनंद लूट रही थीं। इतने में महल की किसी दासी ने आकर ध्यानमग्न मीरा को बाहर से पुकारा, बाई सा! बाहर आकर देखो, कैसी खूबसूरत रात है। कई बार पुकारने पर वह बोलीं, इस समय मैं जिस परम सौंदर्य में डूबी हूं, जगत का समस्त सौंदर्य मिलकर भी उसकी एक बूंद के बराबर नहीं है। उन्होंने कहा कि तुम एक बार मेरे दिल के अंदर घुसकर देखो, भगवद्भभक्ति में दुनिया के परे की कैसी अनोखी खूबसूरती है।

वेश्या को स्वर्ग, संन्यासी को नरक

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प्रेरक कथा। एक संन्यासी की जिस दिन मौत हुई, उसी दिन एक वेश्या की भी मौत हो गयी, दोनों ही आमने-सामने रहते थे। देवदूत लेने आए, तो संन्यासी को नरक की तरफ ले जाने लगे और वेश्या को स्वर्ग की तरफ। संन्यासी ने देवदूतों से कहा, रुकिये, लगता है कुछ भूल हो गई मालूम होती है, मुझ संन्यासी को नरक की तरफ, वेश्या को स्वर्ग की तरफ, क्यों ? जरूर आपके संदेश में कहीं कोई भूल हो गई है। शक तो उन देवदूतों को भी हुआ। उन्होंने कहा, भूल कभी हुई तो नहीं, लेकिन मामला तो साफ दिखता है कि यह वेश्या है और तुम संन्यासी हो। वे गए लेकिन फिर ऊपर से खबर आई कि कोई भूल-चूक नहीं है, जो होना था, वही हुआ है। वेश्या को स्वर्ग में ले आओ, संन्यासी को नरक में डाल दो और अगर ज्यादा ही जिद करे, तो उसे कारण समझा देना। संन्यासी ने जिद की, तो देवदूतों यह कारण बताना पड़ा—संन्यासी रहता तो मंदिर में था, लेकिन सोचता सदा वेश्या की था, भगवान की पूजा तो करता था, आरती भी उतारता था, लेकिन मन में प्रतिमा वेश्या की होती थी और जब वेश्या के घर में रात राग-रंग होता, बाजे बजते, नाच होता, कहकहे उठते, नशे में डूब कर लोग उन्मत्त होते, तो संन्यासी को ऐस...

सभी सहनशील बनें

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प्रेरक कथा। छत्रपति शिवाजी महाराज जंगल में शिकार करने के लिये जंगल में कुछ दूर ही आगे बढे थे कि एक पत्थर आकर उनके सिर पे लगा। शिवाजी क्रोधित हो उठे और इधर-उधर देखने लगे, लेकिन उन्हें कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था, तभी शिवाजी को पेड़ों के पीछे से एक बुढ़िया सामने आती दिखी उसने कहा, कि ये पत्थर मैंने फेंका था। शिवाजी महाराज ने पूछा क्यों। बुढ़िया बोली-क्षमा कीजियेगा महाराज, मैं तो आम के इस पेड़ से कुछ आम तोड़ना चाहती थी, लेकिन बूढ़ी होने के कारण मैं इस पर चढ़ नहीं सकती इसलिए पत्थर मारकर फल तोड़ रही थी और गलती से वो पत्थर आपको जा लगा। निश्चित ही वह औरत सजा की हकदार थी कोई सामान्य व्यक्ति ऐसी गलती से क्रोधित हो उठता और गलती करने वाले को सजा देता, लेकिन शिवाजी ने सोचा कि यदि यह साधारण सा एक पेड़ इतना सहनशील और दयालु हो सकता है जो की मारने वाले को भी मीठे फल देता हो तो भला मैं एक राजा हो कर सहनशील और दयालु क्यों नहीं हो सकता और ऐसा सोचते हुए उन्होंने बुढ़िया को कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर दीं। मालूम हो कि सहनशीलता और दया कमजोरों की नहीं, बल्कि वीरों के गुण हैं। आज जबकि छोटी-छोटी बातों पर लोगों का क्रो...

ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए

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प्रेरक कथा। स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे, एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े  कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बन्दूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था, तब उन्होंने ने एक लड़के से बन्दूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा, फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे, ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा कि भला आप ये कैसे कर लेते हैं? स्वामी विवेकानंद बोले कि तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ, अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तुम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए, तब तुम कभी चूकोगे नहीं, अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो, मेरे देश में बच्चों को ये करना सिखाया जाता है।

स्वयं ही दूर करनी होगी अपनी समस्याएं

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प्रेरक कथा। एक गरीब युवक था, युवक के ​माता-पिता बेहद ही गरीब थे। गरीबी की वजह से भोला अक्सर सोचा करता था कि जीवन कितना कठिन है। एक समस्या खत्म नहीं होती तो दूसरी शुरू हो जाती है। पूरा जीवन इन समस्याओं को हल करने में ही निकलता जा रहा है। युवक परेशान होकर एक दिन संत के पास पंहुचा और उन्हें सारी परेशानी बताई कि कैसे मैं अपनी जिंदगी की कठिनाइयों का सामना करूँ? एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है। संत ने हंसकर बोला कि तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारी परेशानी का हल बताता हूँ। संत युवक को लेकर एक नदी के किनारे पहुंचे और बोले कि मैं नदी के दूसरी पार जाकर तुमको परेशानी का हल बताऊंगा। यह कहकर साधु नदी के किनारे खड़े हो गए। नदी के किनारे खड़े-खड़े जब बहुत देर हो गयी, भोला बड़ा आश्चर्यचकित होकर बोला कि महाराज हमें तो नदी पार करनी है तो हम इतनी देर से किनारे पर क्यों खड़े हैं। संत ने कहा कि बेटा मैं इस नदी के पानी के सूखने का इंतजार कर रहा हूँ, जब ये सूख जायेगा फिर आराम से नदी पार कर लेंगे। युवक को साधु की बातें मूखर्तापूर्ण लगीं, वह बोला कि महाराज नदी का पानी कैसे सूख सकता है आप कैसी मूखर्ताप...

क्रोध त्यागने में ही भलाई

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प्रेरक कथा। एक बार एक संत ने अपने शिष्यों से पूछा- हम गुस्से में होते हैं, खिन्न होते हैं तो चिल्लाते क्यो हैं? शिष्यों ने कुछ समय विचार किया और उनमें से एक शिष्य ने कहा कि हम अपनी शांति खो देते हैं इसलिए चिल्लाते हैं। संत ने पूछा-लेकिन जब दूसरा व्यक्ति आपके पास ही खड़ा हो तो इतना चिल्लाना क्यों? क्या यह सम्भव नहीं कि हम उस व्यक्ति से विनम्र आवाज़ में बात करें? हम एक दूसरे पर क्यों चिल्लाते हैं जब हम क्रोधित होते हैं? शिष्यों ने कई जवाब दिए पर किसी भी जवाब से संत संतुष्ट न दिखाई दिये। अंत में उसने कहा, जब दो व्यक्ति एक दूसरे पर क्रोधित हों तो उनका हृदय बहुत दूर हों जाते हैं। इस दूरी को तय करने के लिए उन्हें चिल्लाना होता है ताकि वे एकदूसरे को सुन सकें। वे जितना अधिक क्रोधित होते हैं उन्हें अपने हृदय की दूरी तय करने के लिये उतना ही चिल्लाना पड़ता हैं फिर संत ने पूछा, क्या होता है जब दो लोग एक दूसरे से प्रेम करते हैं? वे एक दूसरे पर चिल्लाते नहीं बल्कि सौम्यता से बात करते हैं, क्योंकि उनका हृदय बहुत करीब होता है। उनके बीच की दूरी बहुत कम होती हैं। संत ने आगे कहा कि जब वे लोग एकदूसरे से औ...

अथक प्रयासों से ही चढ़ी जा सकती है सफलता की सीढ़ी

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प्रेरक कथा : एक व्यक्ति सकर्स में रस्सी से बंधे हुए एक हाथी को देखकर सोचने लगा कि जो हाथी जाली, मोटे चैन या कड़ी को भी तोड़ देने की शक्ति रखता है वह एक साधारण रस्सी से बंधे होने पर भी कुछ नहीं कर रहा है। उस शख्स ने तभी देखा कि हाथी के पास में एक ट्रेनर खड़ा था। यह देखकर उस व्यक्ति ने ट्रेनर से कहा कि यह हाथी अपनी जगह से इधर उधर क्यों नहीं भागता या रस्सी क्यों नहीं तोड़ता है? उसने जवाब दिया! जब यह हाथी छोटा था तब भी हम इसी रस्सी से इसे बांधते थे। जब यह हाथी छोटा था तब यह बार—बार इस रस्सी को तोड़ने की कोशिश करता था पर कभी तोड़ नहीं पाया और बार बार कोशिश करने के कारण हाथी को यह विश्वास हो गया कि रस्सी को तोड़ना असंभव है, जबकि आज वह रस्सी को तोड़ने की ताकत रखता है फिर भी वह यह सोच कर कोशिश भी नहीं कर रहा है कि पूरा जीवन में इस रस्सी को तोड़ नहीं पाया तो आब क्या तोड़ पाउँगा, यह सुनकर वह व्यक्ति दंग रह गया। यानि कि उस हाथी की तरह हममें से भी कई लोग ऐसे हैं,  जो अपने जिंदगी में कोशिश करना छोड़ चुके हैं क्योंकि बस वह पहले से ही बार-बार कोशिश करने पर असफलता प्राप्त कर चुके होते हैं। उन्हें बार बार को...

स्वावलम्बी बनें देश के युवा

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प्रेरक कथा : रेलवे स्टेशन पर उतरते ही नौजवान ने ‘कुली-कुली’ की आवाज लगानी शुरू कर दी। वह एक छोटा सा रेल स्टेशन था, जहाँ पर रेल यात्रियों का आवागमन कम था, इसलिए उस रेल स्टेशन पर कुली नहीं थे। स्टेशन पर कोई कुली न देख कर नौजवान परेशान हो गया। नौजवान के पास सामान के नाम पर एक छोटा-सा संदूक ही था। इतने में एक अधेड़ उम्र का आदमी धोती-कुर्ता पहने हुए उसके पास से गुजरा। लडक़े ने उसे ही कुली समझा और उससे सन्दूक उठाने के लिए कहा। धोती-कुर्ता पहने हुए आदमी ने भी चुपचाप सन्दूक उठाया और उस नौजवान के पीछे चल पड़ा। घर पहुँचकर नौजवान ने कुली को पैसे देने चाहे। पर कुली ने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और नौजवान से कहा कि धन्यवाद! पैसों की मुझे जरूरत नहीं है, फिर भी अगर तुम देना चाहते हो, तो एक वचन दो कि आगे से तुम अपने सारे काम अपने हाथों ही करोगे। अपना काम अपने आप करने पर ही हम स्वावलम्बी बनेंगे। जिस देश का नौजवान स्वावलम्बी नहीं हो, वह देश कभी सुखी और समृद्धिशाली नहीं हो सकता। धोती-कुर्ता पहने यह व्यक्ति स्वयं उस समय के महान समाजसेवी और प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर थे।

वर्षा और चट्टान का मुकाबला

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प्रेरक कथा : एक बार वर्षा, पृथ्वी और हवा बड़ी चट्टान से बातें कर रहे थे। चट्टान ने कहा कि तुम सब एक साथ मिल जाओ, तब भी तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकते। पृथ्वी और हवा दोनों इस बात पर सहमत थीं कि चट्टान बहुत मजबूत है, लेकिन वर्षा इस बात पर सहमत नहीं थी कि वह चट्टान का मुकाबला नहीं कर सकती। उसने कहा कि यकीनन, तुम बहुत मजबूत हो। यह मैं जानती भी हूँ और मानती भी हूं, लेकिन तुम्हारा यह मानना सही नहीं है कि मैं कमजोर हूं। वर्षा की बात सुनकर पृथ्वी, हवा और चट्टान सब के सब हँसने लगीं। तब वर्षा ने कहा कि मेरी हंसी उड़ाने वालों अभी देखो, मैं क्या कर सकती हूँ। यह कहकर वह खासी तेज गति से बरसने लगी। लेकिन उसके कई दिन बरसने के बावजूद चट्टान को कुछ नहीं हुआ। कुछ समय बाद पृथ्वी और हवा मिलीं तो इस बात को लेकर फिर से हँसने लगीं। उनकी तीर सी चुभने वाली हंसी के प्रतिउत्तर में वर्षा ने कहा कि अभी से इतना मत इतराओ। थोड़ा धैर्य रखो बहनों और देखती जाओ। फिर तो वर्षा उस चट्टान पर लगातार दो वर्षों तक बरसती रही। कुछ समय बाद हवा व पृथ्वी चट्टान से मिलने पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि चट्टान बीच से कट गयी है। वे उससे सहान...

सुखी वही है जो खुश है

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प्रेरक कथा : एक गरीब ने राजा से निवेदन किया कि वह बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं और उसे मदद चाहिए। राजा दयालु था। उसने पूछा कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं, गरीब ने कहा कि छोटा-सा भूखंड चाहिये मदद कर दीजिये। राजा ने कहा कि कल सूर्योदय के समय तुम यहां आना और दौडऩा, जितनी दूर तक दौड़ पाओगे, वो पूरा भूखंड तुम्हारा। लेकिन ध्यान रहे, जहां से तुम दौडऩा शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा। अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। गरीब खुश हो गया। सुबह हुई और सूर्योदय के साथ दौडऩे लगा। सूरज सिर पर चढ़ आया फिर भी उसका दौडऩा नहीं रुका। थोड़ा थकने लगा, तब भी नहीं रुका। शाम होने लगी तो उसको याद आया कि सूर्यास्त तक लौटना भी है, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा। गरीब आदमी ने वापस दौडऩा शुरू किया, लेकिन काफी दूर चला गया था और सूरज पश्चिम की तरफ हो चुका था। उसने पूरा दम लगा दिया लेकिन समय तेजी से बीत रहा था और थकान के चलते वह तेजी से दौड़ नहीं पा रहा था। अंतत: हांफते-हांफते वह थक कर गिर पड़ा और गरीब आदमी की वहीं मौत हो गयी। राजा यह सब देख रहा था, राजा सहयोगियों के साथ वहां गया और राजा ने उस मृत शरीर को गौर स...

सरदार वल्लभ भाई पटेल से अंग्रेज ने मांगी माफी

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प्रेरक कथा : असेंबली के कार्य निपटाने के बाद वे घर के लिए निकल रहे थे सरदार वल्लभ भाई पटेल कि एक अंग्रेज दम्पति, भारत भ्रमण के लिए आया था, वहां आ पंहुचा। उस दम्पति ने पटेल की सादी वेशभूषा और बढ़ी हुई दाढ़ी देखी तो उन्हें वहां का चपरासी समझ लिया और उनसे असेंबली घुमाने के लिए कहा। विनम्रता से उनका आग्रह स्वीकार करते हुए सरदार पटेल ने दम्पति को पूरी असेंबली का भ्रमण कराया। दम्पत्ति उनसे खुश होकर लौटते वक्त उन्हें एक रुपया बख्शीश में देना चाहा, लेकिन सरदार पटेल ने विनम्रतापूर्वक बख्शीश लेने से मना कर दिया। अंग्रेज दम्पति उस वक्त तो वहाँ से चला गया। लेकिन दूसरे दिन फिर असेंबली में आया तो सभापति की कुर्सी पर बढ़ी हुई दाढ़ी तथा सादे वस्त्रों वाले व्यक्ति को देखकर हैरान रह गया। मन ही मन उसने अपनी भूल का पश्चाताप किया और अपनी शर्मिंदगी की बाबत सरदार को भी बताया। क्षमा मांगी कि जिसे वह चपरासी समझ रहा थे वह लेजिस्लेटिव ऐसेंबली का अध्यक्ष निकला।

विनोबा भावे को कड़े प्रयासों से मिली सफलता

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प्रेरक कथा : आचार्य विनोबा भावे अपने सद्विचारों के कारण समाज के हर वर्ग में बडे ही लोकप्रिय थे। प्रत्येक विषय पर विनोबा भावे के विचार इतने सरल और स्पष्ट होते कि वे सुनने वाले के हृदय में सीधे उतर जाते थे। विनोबा भावे गांव—गांव घूमकर भूदान यज्ञ के लिये भूमि इकट्ठा कर रहे थे। उनके पास न धन था और न कोई बाहरी सत्ता, लेकिन सेवा के साहस से उन्होंने करोड़ों लोगों के दिलों में अपना घर बना लिया। उन्हें 40 लाख एकड़ से अधिक जमीन मिली। एक बार की बात है कि गांव का एक जमींदार विनोबा भावे से मिलना टालता रहा। शुभचिंतकों ने जमींदार से पूछा कि आप श्री भावे से क्यों नहीं मिल लेते। जमींदार ने कहा कि भावे से मिलूंगा तो वे ज़मीन मांगेंगे और मुझे देनी पड़ेगी। जमींदार से पूछा गया कि ऐसा क्यों? आप अपनी जमीन नहीं देना चाहते हो तो मत देना। कह देना कि नहीं दे सकता। इसमें कोई जबरदस्ती थोड़ी है। विनोबा केवल प्रेम से ही तो जमीन मांगते हैं। ज़मींदार बोला कि वे प्रेम से मांगते हैं और उनकी बात सही है इसलिये उनको टाला नहीं जा सकेगा। विनोबा भावे ने जब यह बात सुनी तो उन्होंने हर्ष से कहा कि बस उस जमींदार की जमीन मुझको मिल...

लड़कों की मूर्खता

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प्रेरक कथा: एक बार की बात है दो लड़के कहीं जा रहे थे, दोनों लड़के चलते-चलते रास्ता भूल गए। अँधेरा बढ़ रहा था और वापस लौटने भर का समय बचा नहीं था इसलिये उन्हें एक सराय में रुकना पड़ा। वहां आधी रात को एकाएक उनकी नींद उचट गई। उन्होंने पास के कमरे से आती हुई एक आवाज सुनी कि कल सुबह एक हंडे में पानी खौला देना। मैं उन दोनों बच्चों का वध करना चाहता हूँ। यह सुनकर दोनों लड़कों ने फौरन वहाँ से भाग जाने का निर्णय लिया और कमरे की खिड़की से वे बाहर कूद गए, लेकिन बाहर पहुँचकर उन्होंने देखा कि बाहर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ है और अंत में दोनों लड़कों ने सराय के मालिक के सुअरों के बाड़े में छिपने का फैसला किया। जैसे—तैसे दोनों लड़कों ने जागते हुए रात बिताई। सुबह सराय का मालिक सुअरों के बाड़े में आया। उसने बड़ा-सा छुरा तेज किया और पुकारा, 'आ जाओ, मेरे प्यारे बच्चों, तुम्हारा आखिरी वक्त आ गया है। दोनों लड़के भय से काँपते हुए सराय के मालिक के पैरों पर गिर पड़े और गिड़गिड़ाते हुए अपनी जान की भीख मांगने लगे। सराय का मालिक उनका यह हाल देखकर चकित रह गया। उसकी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। अंतत: उसने प...

अच्छे कर्मों से आती है सुंदरता

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प्रेरक कथा : एक दिन यह कौआ सोचने लगा कि पंछियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूँ। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही मेरे पंख सुंदर हैं और मैं काला-कलूटा भी हूँ। ऐसा सोचने से उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उसे उदास देखा तो उसकी उदासी का कारण पूछा। कौवे ने कहा कि मैं रोज गौर करता हूं, तुम कितने सुंदर हो, गोरे-चिट्टे हो, मैं तो काला हूँ, मेरा तो जीना ही बेकार है। बगुले ने कहा कि दोस्त मैं कहाँ सुंदर हूँ। मैं जब तोते को देखता हूँ, तो यही सोचता हूँ कि मेरे पास उसके जैसे हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है। तोते के पास ये दोनों ही चीजें हैं। अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी। वह तोते के पास गया। बोला कि तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश रहते होगे? तोता ने कहा कि खुश तो वाकई बहुत रहता था मैं, लेकिन जब से मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूँ, क्योंकि वह बहुत सुन्दर है। अब कौआ मोर को ढूंढने लगा, लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोरों को चिडिय़ाघर वाले पकड़ कर ले गये हैं। कौआ चिडिय़ाघर गया और वहाँ एक पिंजरे में बं...

व्यर्थ है धन का अनावश्यक संग्रह

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प्रेरक कथा : बहुत बड़े विद्वान और धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकों के लेखक थे राज भोज। राजा भोज के समय में कवियों को राज्य से बड़ा आश्रय मिला हुआ था। उन्होंने 1000 से 1055 ई. तक राज्य किया। उनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली। राजा भोज को बहुत बड़ा वीर, प्रतापी, और गुणग्राही भी बताया जाता है। उन्होंने अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के ग्रन्थ जुटाये थे। अच्छे कवि और दार्शनिक के साथ वे ज्योतिषी भी थे। उनकी राजसभा सदा बड़े-बड़े पण्डितों से सुशोभित रहती थी। राजा भोज एक बार जंगल के रास्ते से कहीं जा रहे थे। साथ में उनके राजकवि पंडित धनपाल भी थे। रास्ते में एक विशाल बरगद के पेड़ में मधुमक्खियों का एक बहुत बड़ा छत्ता लगा था, जो शहद के भार से गिरने ही वाला था। राजा भोज ने ध्यान से देखा तो पाया कि मधुमक्खियां हाय-तौबा के अंदाज में उस छत्ते से अपने पैर घिस रही हैं। उन्होंने राजकवि से इसका कारण पूछा। राजकवि बोले, महाराज! यह शहद के अनावश्यक संचय का नतीजा है। इसी तरह से...