हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते

सुभाषित शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे-गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने-वने। यानि हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते साधु सर्वत्र नहीं होते, हर एक वन में चंदन नहीं होता। उसी तरह दुनिया में भली चीजें या लोग बहुतायत में सभी जगह नहीं मिलते। ऋत्विक्पुरोहिताचार्यैर्मातुलातिथिसंश्रितैः। बालवृद्धातुरैर्वैधैर्ज्ञातिसम्बन्धिबांन्धवैः।। मातापितृभ्यां यामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया। दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्। यानि यज्ञ करने वाले ब्राह्मण, पुरोहित, शिक्षा देने वाले आचार्य, अतिथि, माता-पिता, मामा आदि सगे संबंधी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, पत्नी, पुत्रवधू, दामाद, गृह सेवक यानि नौकर से कभी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।