जिम्मेदारी का बोझ

बोधकथा : खाने के लिए एक आदमी अपने सिर पर अपने अनाज की गठरी लेकर जा रहा था। दूसरे आदमी के सिर पर उससे चार गुनी बड़ी गठरी था। लेकिन पहला आदमी गठरी के बोझ से दबा जा रहा था, जबकि दूसरा मस्ती से गीत गाता जा रहा था। पहले ने दूसरे से पूछा, "क्योंजी! क्या तुम्हें बोझ नहीं लगता? दूसरा बोला, तुम्हारे सिर पर अपने खाने का बोझ है, मेरे सिर पर परिवार को खिलाकर खाने का। स्वार्थ के बोझ से जिम्मेदारी का बोझ हल्का होता है।

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