तलवार की वजह से भंग हो गयी संत की साधना
बोधकथा : एक बार की बात है कि एक संत ने इतनी तपस्या की कि हिंसक हिंसा करना भूल गये। शेर और बकरी, सर्प और मेढ़क अपने जन्मजात बैर को भूल गये। उनकी तपस्या से इन्द्र का आसन डोलने लगा। इन्द्र ने अपने ज्ञान से देखा कि अब उसका पद टिक नहीं सकेगा। वह एक बटोही के रुप में संत के आश्रम में आये। वहां के वातावरण को देखकर वह और अधिक चिन्तित हो उठे। महात्मा की तपस्या की यही स्थिति रही तो निश्चय ही उनका आसान अधिक दिन टिक नहीं सकेगा। उसने एक चाल चली। महात्मा के पास आकर वह बोला, महाराज, मैं जरा शहर में जा रहा हूं, अपनी तलवार आपके पास छोड़े जा रहा हूं। यदि आप इसका ध्यान रख सकें तो बड़ी कृपा होगी।
संत ने सहज रूप ने इसे स्वीकार कर लिया। इन्द्र चले गये। संत ने घंटे दो घंटे तलवार का ध्यान रखा, पर इन्द्र नहीं आये। फिर तो दिन-पर-दिन और महीनों-पर-महीने बीतते चले गए। संत जहां भी जाते, तलवार को साथ ले जाते। आश्रम में भी आते तो उसका ध्यान रखते। उनकी साधना का क्रम भंग हो गया। जो मन भगवान में लीन रहता था, वह तलवार में लीन रहने लगा।
संत ने सहज रूप ने इसे स्वीकार कर लिया। इन्द्र चले गये। संत ने घंटे दो घंटे तलवार का ध्यान रखा, पर इन्द्र नहीं आये। फिर तो दिन-पर-दिन और महीनों-पर-महीने बीतते चले गए। संत जहां भी जाते, तलवार को साथ ले जाते। आश्रम में भी आते तो उसका ध्यान रखते। उनकी साधना का क्रम भंग हो गया। जो मन भगवान में लीन रहता था, वह तलवार में लीन रहने लगा।
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