'ज्ञानी इन्सान ही सुखी है'



सुभाषित—
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत्। नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
भावार्थ : विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं और विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं। 

ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति। ज्ञानवानेव बलवान् तस्मात् ज्ञानमयो भव॥
भावार्थ : ज्ञानी इन्सान ही सुखी है और ज्ञानी ही सही अर्थ में जीता है, जो ज्ञानी है वही बलवान है, इस लिए तूं ज्ञानी बन।


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