दुष्यंत और शकुंतला की अद्भुत प्रेम कहानी

कथा : महाभारत से पहले हस्तिनापुर के राजा थे दुष्यंत। एक बार की बात है कि राजकुमार दुष्यंत वन में आखेट के लिए गये| जिस वन में वह आखेट खेलने गये थे उसी घने वन में एक महान ऋषि कण्व का भी आश्रम था| राजा दुष्यंत को जब ऋषि कण्व के उस वन में होने का पता चला तो वो ऋषि कण्व के दर्शन करने के लिए उनके आश्रम में पहुंचे| जब उन्होंने आश्रम में ऋषि कण्व को आवाज लगायी तो एक सुंदर कन्या आश्रम से आयी और उसने बताया कि ऋषि तो तीर्थ यात्रा पर गये हुए हैं| राजा दुष्यंत ने जब उस कन्या का परिचय पूछा तो उसने अपना नाम ऋषि पुत्री शकुंतला बताया| राजा दुष्यंत को ये सुनकर आश्चर्य हुआ कि ऋषि कण्व तो ब्रह्मचारी हैं तो शकुंतला का जन्म कैसे हुआ तो शकुंतला ने बताया कि मैं कण्व की गोद ली हुई पुत्री हूं, मेरे माता, पिता तो मेनका-विश्वामित्र हैं, जो मेरे जन्म होते ही उन्हें जंगल में छोड़ आये तब एक शकुन्त नाम के पक्षी ने मेरी रक्षा की थी इसलिए कण्व ऋषि ने मेरा नाम शकुंतला रख दिया। शकुंतला की सुन्दरता और बातों पर मोहित होकर राजा दुष्यंत ने शकुंतला से विवाह का प्रस्ताव रखा| शकुंतला भी राजी हो गईं और उन दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया और वन में ही रहने लगे | कई दिनों बाद राजकुमार दुष्यंत ने शकुंतला से अपने राज्य को सम्भालने के लिए वापस जाने की बात कही। इसके बाद राजकुमार दुष्यंत ने शकुंतला से इजाजत मांगी और निशानी के रूप में अंगूठी देकर चले गये| एक दिन शकुंतला के आश्रम में ऋषि दुर्वासा आये, उस समय शकुंतला राजकुमार दुष्यंत के ख्यालों में खोई हुयी थीं जिससे ऋषि का उचित आदर सत्कार नहीं कर पायी और ऋषि ऋषि दुर्वासा ने शकुंतला को श्राप दिया कि तुम्हारा प्रेमी जिसे तुम याद कर रही है वह तुम्हें भूल जाएगा| शकुंतला ने ऋषि से अपने किये की माफी माँगी जिससे ऋषि ने उपाय में बताया कि तुम जब अपने प्रेमी को प्रेम की निशानी अंगूठी दिखाओगी तो तुम्हारे प्रेमी को स​बकुछ याद आ जाएगा। उस समय तक शकुंतला गर्भवती हो चुकी थीं| जब ऋषि कण्व वापस तीर्थ यात्रा से लौटे तो उनको पूरी कहानी शकुंतला ने बताई| ऋषि ने शकुंतला को अपने पति के पास जाने को कहा क्योंकि विवाहित कन्या को पिता के घर रहना वो उचित नहीं मानते थे| शकुंतला सफर के लिए निकल पड़ीं, लेकिन मार्ग में एक सरोवर में पानी पीते वक्त उनकी अंगूठी तालाब में गिर गयी जिसे एक मछली ने निगल लिया| शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास पहुंचे तो ऋषि कण्व के शिष्यों ने शकुंतला का परिचय दिया तो राजकुमार दुष्यंत ने शकुंतला को पत्नी मानने से अस्वीकार कर दिया क्योंकि वो ऋषि के श्राप से सब भूल चुके थे| दुष्यंत द्वारा शकुंतला के अपमान के चलते आकाश में बिजली चमकी और शकुंतला की माँ मेनका उन्हें ले गईं और जंगल में किसी सुरक्षित जगह छोड़ आईं। उधर दूसरी तरफ वह मछली, जिसने अंगूठी निगली थी, एक मछुवारे के जाल में फंस चुकी थी, मछुवारे ने वह अंगूठी राजा दुष्यंत को भेंट दी तब राजा दुष्यंत को शकुंतला के बारे में सब याद आ गया| महाराज ने तुरंत शकुंतला की खोज करने के लिए सैनिकों को भेजा, लेकिन बहुत ढूंढने के बावजूद शकुंतला का कहीं पता नहीं चला| कुछ समय बाद इंद्रदेव के निमन्त्रण पर देवों के साथ युद्ध करने के लिए राजा दुष्यंत इंद्र नगरी अमरावती गये| संग्राम में विजय के बाद आकाश मार्ग से वापस लौट रहे थे तब उन्होंने रास्ते में कश्यप ऋषि के आश्रम में एक सुंदर बालक खेलते देखा| मेनका ने शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में छोड़ा हुआ था| वो बालक शकुंतला का पुत्र ही था। जब उस बालक को राजा दुष्यंत ने देखा तो उसे देखकर उनके मन में प्रेम उमड़ आया वो जैसे ही उस बालक को गोद में उठाने के लिए खड़े हुए तो शकुंतला की सखी ने बताया कि अगर वह इस बालक को छुऐंगे तो इसके भुजा में बंधा काला डोर सांप बनकर आपको डंस लेगा| राजा दुष्यंत ने उस बात का ध्यान नहीं दिया और बालक को गोद में उठा लिया और बालक को गोद उठाते ही भुजा में बंधा काला डोर टूट गया जो उसके पिता की निशानी थी| शकुंतला की सहेली ने सारी बात शकुंतला को बताई तो वो दौड़ती हुयी राजा दुष्यंत के पास आयी| राजा दुष्यंत ने ने भी शकुंतला को पहचान लिया और अपने किये की क्षमा माँगी और उन दोनों को अपने राज्य ले गये| महाराज दुष्यंत और शकुंतला ने उस बालक का नाम भरत रखा जो आगर चलकर एक महान प्रतापी सम्राट बना| इसीलिये देश का नाम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा।

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