आखिर कैसे पता चले कि न्यायाधीश पर लगाये गये यौन उत्पीड़न का आरोप फर्जी है!
विचार : मुख्य न्यायाधीश पर लगे महिला यौन शोषण का मामला बड़ी ही गम्भीर मसला है। वास्तविकता क्या है, यह जांच के बाद पता चलेगा। लेकिन इस मामले में जांच होगी कि नहीं, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन यह सत्य है कि महिला ने प्रधान न्यायाधीश पर आरोप लगाया है। मामले में जांच के लिए प्रदर्शन भी किया गया। महिला द्वारा न्यायाधीश पर आरोप के बाद बात यह निकलकर सामने आयी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से सम्बिन्धत कुछ मामलों को सुनवाई को लेकर फंसाने की बात कही जा रही थी, फिर यह बात निकल कर सामने आयी कि दिवालिया घोषित हो चुकी जेट एयरवेज कम्पनी के मुखिया नरेश गोयल ने मुख्य न्यायाधीश को फंसाया है। लेकिन सच्चाई तभी निकलकर सामने आएगी जब इस मामले की जांच हो, लेकिन क्या जांच होगी! मुख्य न्यायाधीश पर कोर्ट की ही बर्खास्त महिला कर्मचारी द्वारा लगाये गये यौन उत्पीडऩ के आरोपों से देश स्तब्ध है। लोग स्तब्ध हैं कि देश की सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर ऐसे आरोप लगे हैं। सवाल उन पर लगने वाले आरोपों की प्रकृति का भी है। दरअसल, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पहले ऐसे न्यायाधीश नहीं हैं, जिन पर ऐसे आरोप लगे हैं। ?इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए.के. गांगुली पर भी आरोप लगे थे। इन आरोपों के चलते उन्हें वर्ष 2014 में पश्चिम बंगाल के मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन पर कानून की एक प्रशिक्षु ने यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाये थे। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश पर वर्ष 2011 में एक कानून की प्रशिक्षु द्वारा यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाये गये। पूर्व न्यायाधीश को इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के जरिये मीडिया पर मामले में संयम बरतने के लिये आदेश लेने पड़े थे। इसी तरह मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज एस.के. गंगेले पर वर्ष 2015 में महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाये गये थे। इस मामले में निष्कासन की कार्रवाई शुरू की गई थी। लेकिन इस मामले में राज्यसभा द्वारा वर्ष 2017 में गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने पाया कि आरोप सिद्ध नहीं हो पाये। जस्टिस गोगोई ने इन आरोपों को अविश्वसनीय बताया है। शनिवार को हुई एक असामान्य सुनवाई में उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक गंभीर चुनौती का सामना कर रही है क्योंकि सीजेआई कार्यालय को निष्क्रिय बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने अपने दो दशक के कार्यकाल का हवाला दिया और कहा कि उन्होंने इस दौरान क्या अर्जित किया है। उन्होंने कहा में अपनी कुर्सी पर बैठकर निर्भय होकर अपने न्यायिक दायित्वों का निर्वहन करूंगा। बहरहाल, इसके बावजूद न्यायपालिका को इस तरह के आक्षेपों का निराकरण करना चाहिए क्योंकि संस्था की साख दांव पर लगी है। इसके बावजूद दशकों से अर्जित प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयासों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए। वर्ष 1991 में के. वीरस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सीजेआई के परामर्श के बिना सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। ऐसे में कानून की उचित प्रक्रिया, सत्यनिष्ठा के सिद्धांत के अनुरूप मुख्य न्यायाधीश को अपने मामले में शामिल न होने की प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। लेकिन यदि आरोप झूठे पाये जाते हैं तो सीजेआई को बदनाम करने की कोशिश करने वालों से सख्ती से निपटा जाये। अहम सवाल यह है कि सम्मानित पदों पर आसीन न्यायाधीशों पर क्यों महिला उत्पीड़न का आरोप लगता है, कहीं न कहीं सच्चाइ जरूर होगी। यहां न्यायाधीश के गरिमा की बात नहीं, यहां देश की गरिमा का भी सवाल है। ऐसे कृत्यों से एक बार जनता के मन में यह बात जरूर आती होगी कि जब न्याय देने वाले ही दलदल में फंसे हों तो वह क्या न्याय देंगे। इसलिए जरूरी है कि न्यायाधीशों को अपनी गरिमा बनाकर रखना चाहिए, जिससे देश में, समाज में नकरात्मक विचार न फैले।
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