शांति का परिचय
बोधकथा : सिकन्दर की सेना अपने सामने आये सभी क्षेत्रों को विजित करती जा रही थी। अंत में वह पर्शिया को जीतते हुए भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में आ धमकी। भारत की प्राचीन संस्कृति और समृद्धि का सिकन्दर के मस्तिष्क पटल पर विशेष प्रभाव था। एक साधु विशाल चट्टान पर लेटा हुआ था। सिकन्दर के समीप आने पर भी वह निश्चल ही लेटा रहा। उसने साधु से पूछा-मुझे और मेरी सेना को देखकर क्या तुम्हें तनिक भी भय नहीं लगता मैंने सारे जगत को जीत लिया है। साधु ने कहा-एक लुटेरे से उसे क्यों भय लगेगा, मेरा तुम कुछ नहीं छीन सकते। किन्तु यह तुम बताओं कि इतनी बड़ी संख्या में निरीह लोगों का वध करके इतना धन, दौलत एकत्र करके क्या करोगे, पूरा जीवन सुख, सुविधा व निश्चिंतता से व्यतीत करूंगा-सिकन्दर ने बड़े गर्व से उत्तर दिया। साधु बोला-परन्तु मैं तो बिना किसी का वध किये तथा बिना कुछ धन संचय किये अभी भी विश्रान्ति से जीवनयापन कर रहा हूं। साधु ने सिकन्दर से विमुख होकर शान्ति की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं। सिकन्दर का भारत की संस्कृति से प्रथम परिचय हो चुका था। और फिर बाद में सिंकदर को मुंह की खानी पड़ी थी।
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