ढीठ होते जा रहे नेता
विचार : देश में बढ़ रही सियासत चिंता का विषय है। भारतीय सियासत में न प्रधानमंत्री की गरिमा है और न ही महिलाओं के प्रति मर्यादा। नेता इतने ढीठ हो गये हैं कि कार्रवाई की बात होती है तो बयान से पलट जाते हैं और मीडिया पर दोष मढ़ देते हैं कि मेरा बयान तोड़—मरोड़ कर दिखाया गया। सपा के कद्दावर मुस्लिम नेता का बयान हमेशा से सुर्खियों में रहा है, वह इसलिये कि उन्होंने हमेशा बेशर्म बोल ही बोले हैं। इसके बावजूद सपाइयों ने ऐसे नेता का पक्ष लिया और किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गयी। यह बात अलग है कि शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया है। सियासत की जमीं पर शेख साहब फिसलती जुबान पर कसीदे काढऩे वाले भी हिंदुस्तान की ही औलादे हैं और तौबा-तौबा के लफ्जों से अपना गुस्सा जाहिर करने वाले भी इसी हिंदुस्तान की पहचान का एक हिस्सा है। नजरियों का फर्क है, शेख साहब (आजम खां) की महारत देखिये कि वह मंच से खाकी रंग को देखकर जुबानी तरकश का पिटारा खोल देते हैं, वह भूल जाते हैं कि चुनावी शगल के बाद घर की डेहरी लांघेंगे तो सामने मां, बेटी, बहू भी उनसे रंगों का सवाल बेसाख्त पूछ सकती है। रंगों का तस्करा करने के लिए भी आजम खां जैसे बदनीयत चेहरे की जरूरत पड़ती है। तब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग के मठाधीशों के लब पर खामोशी का चादर अभी तक क्यों नहीं दरका। प्रश्न यह भी है कि अली और बजरंग बली पर चुप्पी देर से क्यों टूटी। आरोपों के इन्हीं घनघोर घटाओं के बीच खाकी रंग के अधोवस्त्र पर शायद आयोग के महामानव समझ नहीं पा रहे हैं कि जिस खाकी का जिक्र माननीय, बतोलेबाज, फिसलती जुबान के मसीहा और तुनुकमिजाज आजम खां ने किया था, उस खाकी का रंग गहरा है या हलके रंग की खाकी थी। सरकारी तर्ज पर जांच और उसके बाद कार्रवाई का यह छोटी से बेढब सच्चाई है, जो फिलहाल दिल्ली में आयोग के बंद कमरों में परवान चढ़ रही होगी, लेकिन सवाल उठता है कि समाजवादी पार्टी के भीष्म पितामह मुलायम सिंह की खामोशी का राज क्या है। इसी के साथ उनके युवा पुत्र अखिलेश यादव भी फिलहाल चुप्पी तोड़ते हुए नजर नहीं आये या यूं कहें उन्हें आजम की यह शैली, महिलाओं के अधोवस्त्र पर अश्लील टिप्पणी करना अच्छा लगा होगा। बेशर्म व्यवस्था के नायकों से सवाल है कि क्या राजनीतिक कटाक्ष असीमित दायरों के बीच अश्लीलता के दामन में सामने वाले को भरे बज्म नंगा कर देगा और सियासत के उन्मादी चेहरे राजनीतिक फायदे के लिए जुबान पर ताला डाले बैठे रहेंगे। कुछ तो हिम्मत करो, वरना लोकतंत्र का यह महापर्व असीमित गालियों, अश्लील टिप्पणियों और सिद्घांतहीन संवेदनाओं का खुरदरा हाईवे बनकर आने वाले कल की हिंदुस्तान की बुनियाद को घुन की तरह खोखला कर देगा। वहीं यह सवाल समाजवादी पार्टी से इतर विपक्ष के उन महानुभावों से भी है, जो मोदी को सामने रखकर अनवरत गालियों की फुलझडिय़ों के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं, आदर्श और शुचिता के दावों को अपनी काली जुबान से हर रोज पेशान करते हैं, वह आजम की अश्लील टिप्पणियों पर चुप क्यो हैं? कांगे्रस के शहजादे जो खबरों का एक अंश पकड़कर सार्वजनिक मंच से उसे आरोपों के रूप में पेश करने के आदी हो चुके हैं, जिनकी बहन प्रियंका यूपी में प्रचार की दुदुम्भी लिये घूम रही हैं, वह भी इस संदर्भ में मुंह खोलने का साहस क्यों नहीं बटोर पा रही हैं। राजनीतिक विद्वेष मायने रखता है, लेकिन सीमाओं को समझते हुए, बुनियादी वसूलों को ध्यान में लाते हुए आरोपों की बौछार करो, लेकिन किसी महिला को भरे बज्म में अपमानित करने का दुस्साहस मत करो। सपा नेता आजम खान अपने बयानों से विवादों में घिर गये हैं। भाजपा ने आजम पर हमकर हमला बोला, लेकिन ऐसे हमले का इन ढीठ नेताओं पर किसी तरह का कोई असर नहीं होने वाला।
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