बांझपन की समस्या से कराह रहा देश

विचार : भारत की विशेषता है कि यहां के लोग अनुशासित जीवन व्यतीत करने में यकीन ही नहीं बल्कि विश्वास करते हैं। लेकिन काफी वर्षों की गुलामी और पश्चिमी संस्कृति अपनाने की वजह से भारतीय समाज में कई विकृतियां व्याप्त हैं, जिनसे शीघ्र ही शीघ्र छुटकारा पा लेना निहायत ही जरूरी है। कई विकृतियों में से एक है बांझपन। विशेषज्ञों का मानना है कि लड़के व लड़कियों के विवाह में देरी के साथ ही अनियमित दिनचर्या और फास्ट फूड का बढ़ता प्रचलन देश में नापुसंकता अौर बांझपन की समस्या बढ़ा रहा है। बांझपन देश में चिंता का एक बड़ा कारण बनकर उभरा है, जो पिछले एक दशक में करीब 14 फीसदी से बढ़कर 20 प्रतिशत तक हो चुका है। बढ़ती उम्र में विवाह और दंपत्ति द्वारा गर्भधारण में देरी करने के फैसले इस समस्या के अहम कारणों में एक है। इसके अलावा अनियमित दिनचर्या और खानपान भी नापुंसकता और बांझपन की बढी वजह बनकर उभरी हैं। गर्भनिरोधक का उपयोग किये बिना यदि एक साल तक गर्भधारण नहीं हो पाता है तो यह इनफर्टिलिटी यानी बांझपन का संकेत हो सकता है। इसके लिये पुरूष और महिला में से कोई भी जिम्मेदार हो सकता है। इच्छानुरूप समय पर बच्चे को जन्म देने की असमर्थता काफी तनावपूर्ण एवं व्यक्तिगत अनुभव है। ऐसे में दंपति को इस समस्या के मूल कारक को समझने और ठीक करने के लिए फर्टिलिटी उपचार का सहारा लेना चाहिए। शुक्राणु की गणना और गतिशीलता पुरूषों की इनफर्टिलिटी के सबसे सामान्य कारणों में से है जबकि महिलाओं में, एनोव्युलेशन इनफर्टिलिटी एक ऐसी स्थिति है जिसमें मासिक चक्र के दौरान अंडाशयों से ऊसाइट नहीं निकलता है, जिससे अण्डोत्सर्जन बाधित हो जाता है। चिकित्सक ने कहा कि एनोव्युलेशन के उपचार के लिए अनेक पद्धतियां उपलब्ध हैं। जीवनशैली संबंधी कुछ बदलाव जैसे शरीर का 10 प्रतिशत वजन कम करने से महिलाओं को मदद मिल सकती है। इसके गोलियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मामूली प्रभाव वाली खुराक का उपयोग छह महीने से अधिक तक नहीं किया जाना चाहिए। कुछ महिलाओं में अण्डाणु पैदा करने वाली कोशिकाओं की संख्या अत्यल्प हो सकता है या हो सकता है कि उनमें ऐसी कोशिका मौजूदा ही न हो, ऐसी स्थिति में, उपचार के लिए दाता अण्डाणुओं का उपयोग किया जा सकता है। उपचार शुरू करने से पहले गर्भाशय एवं गर्भनाल की उपयुक्तता देखने के लिये इनका आकलन किया जाना चाहिए। अण्डोत्सर्जन विकार लगभग एक-तिहाई इनफर्टिलिटी के मामले अण्डोत्सर्जन संबंधी विकारों के चलते होते हैं। यदि किसी महिला को अण्डोत्सर्जन संबंधी विकार है, तो हो सकता है कि अण्डोत्सर्जन कभी-कभार हो या फिर न के बराबर हो। पाॅलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम अण्डोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले सबसे सामान्य विकारों में से एक है। अण्डोत्सर्जन विकारों के अन्य कारणों में अण्डाशय अपर्याप्तता और हाइपोथैल्मिक एमेनोरिया शामिल हैं। वहीं आईवीएफ तकनीक की बात की जाए तो आईवीएफ की सफलता दरों में भारी सुधार हुआ है, जिसका श्रेय असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलाॅजी में हुई महत्वपूर्ण प्रगतियों को जाता है। यद्यपि आईवीएफ की सफलता की कहानियां अनेक हैं, फिर भी इस प्रक्रिया से जु़ड़े कई मिथक भी हैं। मिथकः आयु केवल महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है, पुरुषों को नहीं। पुरुषों और महिलाओं दोनों की प्रजनन दर उम्र के साथ गिरावट आती है। महिलाओं के लिए, प्रजनन क्षमता उनके मध्य 20 के दशक की शुरुआत में आ जाती है, जिसके बाद यह धीरे-धीरे कम होने लगती है। यह गिरावट 35 साल की उम्र के बाद बढ़ जाती है। पुरुषों के लिए, उम्र से सम्बन्धित प्रजनन क्षमता अधिक सूक्ष्म होती है, लेकिन होती है। पुरुष प्रजनन क्षमता आमतौर पर 40-45 वर्ष की आयु के आसपास घटने लगती है, जबकि शुक्राणु की गुणवत्ता कम हो जाती है।  एक आईवीएफ चक्र की विफलता गर्भावस्था के शून्य अवसर का संकेत नहीं देती है। वहीं ऐसा भी माना जाता रहा है कि विश्व में भारत की फर्टिलिटी दर बेहद तेज है। इसका मुख्य कारण यहां की जलवायु के साथ संयमित जीवनशैली भी माना जाता रहा है। इसलिये प्रत्येक भारतीय को अपने पूर्वजों के बारे में जानना चाहिए और उनके बताये मार्गों पर चलना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को देश के प्रति जागरुक बनना चाहिए।

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