जीवन से मुक्ति
बोधकथा : सुख की तलाश में एक दुखियारा भटकते—भटकते जंगल में पहुंचा, प्यासा था, भूखा था, कहीं दूर—दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, तभी उसी रास्ते से विद्वान ऋषि गुजर रहे थे। ऋषि महराज से गरीब की पीड़ा देखी नहीं गयी, उन्होंने गरीब को पानी पिलाया और कुशलक्षेम पूछा। गरीब ने कहा कि महराज जीवन से मुक्ति कैसे मिलेगी। इस भटकाव से कैसे मिलेगी मुक्ति। तब ऋषि ने कहा कि जीव की 84 लाख योनियां बताई गई हैं। जीव जब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक इन्हीं 84 लाख योनियों में भटकता रहता है।नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति आदि में जीव विचरण करता है और यदि सत्कार्य करता रहे तो 84 लाख योनियों में जन्म लेने के बाद उसे मुक्ति मिल जाती है और यदि जीव दुष्कर्म करता रहा तो फिर उसे 84 लाख योनियों का भ्रमण करना पड़ेगा और इसी मोक्ष प्राप्ति के लिए सनातन धर्म कहता है। इसलिये मानव को इस जीवन में हमेशा पाप कार्यों से निवृत्त रहकर तथा धर्म एवं सद्कर्मों में प्रवृत्त रहकर मोक्ष नहीं तो कम से कम सद्गतियों अर्थात देवगति एवं मनुष्य गति में अगला जन्म हो, ऐसे कार्य करने के लिए सभी को दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।
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