आतंकवादियों का फिर वही खूनी खेल
विचार : आतंकवादियों द्वारा विस्फोट करना, नागरिकों की जान लेना आम बात हो गयी है। आतंकियों के पास न तो संवेदनाएं हैं और न ही मानवता। पशुओं से भी बदतर है ये आतंकी। यदि आतंकियों को इस तरह के कृत्यों से रोकना है तो पूरे विश्व समुदया को आतंक के खिलाफ एक होना पड़ेगा, जिसमें अमेरिका को अहम भागीदारी निभानी होगी। सबसे बड़ा सवाल है कि आतंकियों को हथियार और विस्फोटक सामग्री आखिर कौन मुहैया कराता है। सर्वविदित है कि अमेरिका सबसे बड़ा हथियार उत्पादक देश है और उस पर आरोप भी लगते रहे हैं कि कई देशों में उन्होंने आतंकियों को शह दिया है। यह भी भूलने लायक नहीं है कि अमेरिका ने किस तरह पाकिस्तान को धन मुहैया कराता रहा, जो पाकिस्तान उस धन का आतंक को बढ़ावा देने में लगा रहा। केवल आलोचना और निंदा से काम नहीं चलने वाला। सभी जानते हैं कि इस तरह आतंकियों के कृत्य को पूरे विश्व समुदाय को अपनी अक्षमता की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। गौर करने वाली बात है कि विश्व में जितनी भी आतंकी घटनाएं होती हैं, उसमें सिर्फ और सिर्फ इस्लाम धर्म के लोग ही संलिप्त पाये जाते हैं, अपवाद छोड़ दिया जाए तो। वहीं श्रीलंका में रविवार को ईस्टर के मौके पर विभिन्न गिरजाघरों और होटलों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों ने पूरी दुनिया को दहला दिया। श्रीलंका ने 30 साल तक गृहयुद्ध और आतंकवाद झेला है। साल 2009 में गृहयुद्ध के खात्मे के बाद से वहां कोई बड़ी घटना नहीं घटी थी। इसलिए इन विस्फोटों से सवाल उठ रहा है कि क्या श्रीलंका में फिर से दहशतगर्दी का दौर शुरू हो रहा है? अभी तक इस हमले की जवाबदेही किसी संगठन ने नहीं ली है लेकिन जिस तरह की तैयारी के साथ हमले किए गए, उससे इनके पीछे अंतरराष्ट्रीय संपर्कों वाले किसी बड़े संगठन का हाथ होने की आशंका लग रही है। आतंकी संगठन आईएसआई पर शक की सूई जा रही है। वैसे तो ग्लोबल टेररिज्म की धुरी समझे जाने वाले दोनों संगठनों आईएस और अलकायदा की कमर तोड़ी जा चुकी है, लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अलावा दक्षिण एशिया के कुछ और देशों में इनके अवशेष आज भी बने हुए हैं। भारत में भी कई लोग आईएसआईएस से जुड़े कई लोगो को गिरफ्तार किया जा चुका है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि अल-कायदा इन इंडियन सबकांटिनेंट यानी भारतीय महाद्वीप में अल-कायदा नामक आतंकी गुट किसी न किसी रूप में यहां सक्रिय है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अल कायदा प्रतिबंध समिति को सौंपी गई विश्लेषणात्मक सहयोग एवं प्रतिबंध निगरानी दल की 22वीं रिपोर्ट में कहा गया था कि यह संगठन भारत और बांग्लादेश के दूर-दराज के इलाकों से अपने रंगरूट भर्ती कर रहा है। भारत खासतौर से उसके निशाने पर है। संभव है कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के कारण भारत में वह कोई बड़ा हमला न कर पा रहा हो लिहाजा श्रीलंका के रूप में दक्षिण एशिया की सबसे सुरक्षित जगह पर इस कायराना हरकत को अंजाम दिया हो। श्रीलंका की इस विस्फोट श्रृंखला में एक स्थानीय चरमपंथी संगठन नैशनल तौहीद जमात का नाम भी आ रहा है। यह संगठन साल 2014 में वहां भगवान बुद्ध की मूर्तियां तोड़कर चर्चा में आया था। इसका एक धड़ा तमिलनाडु में भी सक्रिय है, जिस पर ईसाई समुदाय के कुछ लोगों को जबरन इस्लाम में धर्मांतरित करने का आरोप लगा था और अक्टूबर 2017 में इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। कहा जा रहा है कि एक विदेशी खुफिया एजेंसी ने श्रीलंका को इस हमले को लेकर सतर्क किया था। उसकी चेतावनी में बड़े चर्चों के साथ-साथ भारतीय उच्चायोग को निशाना बनाने की बात भी थी। मुमकिन है, गिरजाघरों और होटलों में हमले के पीछे विदेशी नागरिकों को निशाना बनाने का उद्देश्य रहा हो ताकि यह एक अंतरराष्ट्रीय मामला बने और आतंकियों को फिर से चर्चा में आने का मौका मिले। बिना किसी बहाने के, किसी भी सुरक्षित जगह पर अपनी कार्रवाई को अंजाम देने की यह नई आतंकी रणनीति वाकई पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। इस चिंता से निपटने के लिए आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी है और यह तभी सम्भव है जब सभी देश आतंक के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ें।
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