सत्कर्म का फल

बोधकथा : ख्यातिप्राप्त संत नामदेव वि_ल भक्त थे और सादगीपूर्ण जीवन बिता रहे थे। उनकी पत्नी श्रीजना बाई भी भजन-कीर्तन में लीन रहा करती थी। वह गोबर के उपले बनाकर बाजार में बेचकर जो मिलता, उससे घर चलाया करती थी। एक बार उन्होंने उपले अगले दिन हाट में बेचने के लिए बाहर बरामदे में रख दिए। रात को उनके पड़ोसी ने मौका ताड़कर सारे उपले चुराकर अपने घर में छिपाकर रख लिए। अगले दिन उपले न बिक पाने के कारण उन दोनों को भूखा रहना पड़ा। वह दोनों तो शांत रहे मगर सारे गांव में यह बात फैलने पर पंचायत बिठाई गई। जब पता चला कि यह काम उनके पड़ोसी का है तो एक पंच ने पूछा— माता, उपले तो सभी एक जैसे होते हैं। अगर आपके पड़ोसी ने चुराए भी हैं तो उनकी पहचान कैसे होगी। इस पर श्रीजना बाई बोली— भाइयों, मेरे बनाए उपलों में वि_ल-वि_ल की ध्वनि सुनाई पड़ती है, जिन्हें मैं उपले बनाते समय जपती रहती हूं। यही बात उन्हें अन्य उपलों से अलग करती है। यह सुनकर सभी पंच पड़ोसी के यहां पहुंचे और उपलों की जांच करने लगे। श्रीजना के उपलों में से वि_ल नाम की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। प्रभु भक्ति का यह अद्भुत चमत्कार देखकर सब दंग रह गए। उन्होंने सारे उपले नामदेव के घर भिजवाए और पड़ोसी द्वारा दोनों से क्षमा-याचना भी करवाई।

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