सच्ची प्रार्थना
बोधकथा : फ़ारसी भाषा के बहुत बड़े विद्वान थे ईरान के रहने वाले शेख सादी। धार्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ वह शायर भी थे। उन्हें विभिन्न जगहों से दावतनामे मिलते रहते थे। एक बार नगर के हाकिम ने उन्हें दावत पर आमंत्रित किया। बातचीत के बाद जैसे ही वे दावत खाने बैठे, तभी उनकी नमाज़ का वक्त हो गया। शेख सादी सभी से माफ़ी मांगते हुए नमाज़ के लिए उठ खड़े हुए। नमाज़ अता करने के बाद शेख साहब घर आए और हाथ-मुंह धोते हुए बेग़म से खाना सजाने के लिए कहा। बेग़म अचरज से बोली- आप तो दावत से ही आ रहे हैं ना। क्या वहां खाने को कुछ नहीं मिला या कोई अन्य बात है। शेख सादी पूरी घटना बताते हुए बोले- बेग़म साहिबा, ठीक दावत के वक्त नमाज़ का समय हो गया। अगर मैं नमाज़ के लिए न उठता तो हाकिम और सब लोग मेरे बारे में क्या सोचते। यह सुनकर बेग़म खाना लगाते हुए बोलीं-फिर तो आप खाना जरूर खाइए, मैं लगाए देती हूं। मगर मेहरबानी करके एक बार नमाज़ फिर से पढ़ आइए क्योंकि आपकी नमाज़ भी भीतर से कहां अता हुई है। यह सुनकर शेख साहब लज्जित होकर, सिर झुकाकर फिर से नमाज़ पढऩे के लिए चले गए। यानि कि सच्ची प्रार्थना मन में और मन से होनी चाहिए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें