आलोचना के बाद सुधारें गल्तियां

बोधकथा : एक बार की बात है, काउंट प्रिसले रूस के शासक थे। प्रजा प्रशासन से संतुष्ट नहीं थी। अत: कुछ लोग सदैव प्रधानमंत्री के खिलाफ़ इधर-उधर लिखकर, बोलकर दुष्प्रचार करते रहते थे। प्रिसले को भी यह बात पता थी। एक दिन उन्होंने अपने सचिव को बुलाकर कहा-देखो, हमारा प्रशासन सुचारु रूप से चल सके, इसके लिए हमें सबकी राय की आवश्यकता है। तुम उन लोगों की एक सूची तैयार करो, जिन्होंने अखबारों और पत्रिकाओं में मेरे खिलाफ़ कुछ भी लिखा हो या मेरे प्रति कुछ अलग धारणा रखते हों। कुछ दिनों बाद सचिव लगभग एक हज़ार लोगों की सूची ले आया। प्रधानमंत्री उसे देखकर बोले- इनमें से सबसे तेज़ और तीखी टिप्पणियां मुझे छांटकर दीजिए। सचिव ने ऐसे लोगों के नाम भी निकालकर दे दिए और पूछा-क्या इनके नाम पुलिस में दे दिए जाएं ताकि उन पर पर उचित कार्रवाई की जा सके। इस पर प्रिसले ने जवाब दिया-नहीं, मैं तो इन सबमें से अपना कट्टर विरोधी चुनकर उसे अपने अख़बार का संपादक बनाना चाहता हूं ताकि वह अपनी लेखनी द्वारा मेरी कमियां मुझे बता सकें और मैं जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप अपने को ढाल सकूं।