प्रजा के कल्याण को समर्पित
बोधकथा : दो देश एक-दूसरे के पड़ोसी थे मगर दोनों में बहुत फर्क भी था। एक का राजा अपने राज्य की सीमा बढ़ाने की फिराक में रहता। इसलिए उसने फौज की वृद्धि तथा हथियारों के जमावड़े में बहुत पैसा खर्च कर दिया जबकि दूसरा राजा अपनी प्रजा के लिए भरपूर अन्न, सेहत, सुरक्षा, शिक्षा आदि पर भरपूर पैसा लगा रहा था।
एक बार दोनों में युद्ध छिड़ गया। जिसके पास फौज थी, वो हारने लगा क्योंकि दूसरे राज्य का केवल सैनिक ही नहीं बल्कि बच्चा, बूढ़ा और युवक, सब जी-जान से लडऩे लगे। भारी फौज वाला राजा हारने लगा और उसी के सामने उसकी पूरी प्रजा दूसरे राजा से शरण मांगने लगी। इतना ही नहीं, उसका साथ देकर अपने ही राजा के खिलाफ लडऩे भी लगी। फौजी ताकत वाला राजा हार गया। एक संत से पूछा गया कि आखिर उसकी प्रजा उसके खिलाफ क्यों लडऩे लगी। फकीर ने कहा कि एक राजा बस ताकत का दीवाना था जबकि दूसरा राजा प्रजा के कल्याण को समर्पित।
एक बार दोनों में युद्ध छिड़ गया। जिसके पास फौज थी, वो हारने लगा क्योंकि दूसरे राज्य का केवल सैनिक ही नहीं बल्कि बच्चा, बूढ़ा और युवक, सब जी-जान से लडऩे लगे। भारी फौज वाला राजा हारने लगा और उसी के सामने उसकी पूरी प्रजा दूसरे राजा से शरण मांगने लगी। इतना ही नहीं, उसका साथ देकर अपने ही राजा के खिलाफ लडऩे भी लगी। फौजी ताकत वाला राजा हार गया। एक संत से पूछा गया कि आखिर उसकी प्रजा उसके खिलाफ क्यों लडऩे लगी। फकीर ने कहा कि एक राजा बस ताकत का दीवाना था जबकि दूसरा राजा प्रजा के कल्याण को समर्पित।
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