मुनाफे का दो फीसदी सामाजिक विकास पर खर्च करें कम्पनियां

विश्लेषण : सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) योजना का मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है। भारत दुनिया का अकेला देश है जहां कंपनियों के लिए टैक्स के बाद अर्जित मुनाफे का दो फीसदी सामाजिक विकास पर खर्च करने का कानून बना हुआ है लेकिन इस कानून के बावजूद कई कंपनियां इससे कतराकर निकल जा रही हैं। जिनकी भागीदारी है, उनका रवैया भी सुचिंतित नहीं है जिससे पिछड़े इलाकों में सीएसआर का कोई दखल ही नहीं हो पा रहा है। 
पिछले साल 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम (एडीपी) की शुरुआत की थी ताकि पिछड़े रह गए इलाकों का विकास हो सके। इसके कई पैमाने भी तय किए थे- स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, वित्तीय समावेशन और बुनियादी संरचना लेकिन इसके नतीजों की जांच के लिए कॉर्पोरेट मामलों के सचिव इंजेती श्रीनिवास की अध्यक्षता में गठित समिति का निष्कर्ष यह है कि सीएसआर का ज्यादातर फायदा सिर्फ छह विकसित राज्यों को ही मिल रहा है। 2014-15 से 2017-18 के बीच कंपनियों ने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और दिल्ली में ही सीएसआर फंड के 52,208 करोड़ खर्च कर दिए। बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में स्थित 55 प्रतिशत ऐस्पिरेशनल जिलों तक इस कोष का केवल 9 फीसदी पहुंचा। ऐसा नीतियों की असंगति के चलते हुआ जो औद्योगिक राज्यों के पक्ष में झुकी हुई है। इसमें एक प्रावधान स्थानीय क्षेत्र को प्राथमिकता देने पर है। कानून कहता है कि कंपनी लोकल एरिया को प्राथमिकता दे यानी पैसा वहां लगाए, जहां वह कार्य करती है। कमिटी की सिफारिश है कि सरकार कंपनियों को लोकल एरिया और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाने के लिए कहे। समिति की रिपोर्ट कहती है कि कंपनियों को 2014-15 और 2017-18 में 72,222.67 करोड़ रुपये खर्च करने थे लेकिन उन्होंने इसमें कोताही की जिससे खर्च में 25,014.37 करोड़ रुपयों की कटौती हो गई। नीति आयोग का भी साफ कहना है कि समावेशी विकास के लिए सीएसआर फंड खासतौर पर उन इलाकों में खर्च हो जहां वित्त की कमी है। बहरहाल, कुछ समय पहले सरकार ने कंपनी संशोधन विधेयक, 2019 पास किया है जिसके तहत सीएसआर मानदंड का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर 50,000 रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है और संबंधित अधिकारी को तीन साल की कैद भी हो सकती है। समिति की सिफारिश है कि सीएसआर के मामले को सिविल ही रखा जाए, आपराधिक न बनाया जाए।

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