पुण्य करने से बुद्धि बढ़ती है

सुभाषित—
पुण्यं प्रज्ञा वर्धयति क्रियमाणं पुन:पुन:।
वृद्ध प्रज्ञ: पुण्यमेव नित्यम् आरभते नर:॥
भावार्थ : बार-बार पुण्य करने से मनुष्य की विवेक-बुद्धि बढ़ती है और जिसकी विवेक-बुद्धि बढ़ती रहती हो, ऐसा व्यक्ति हमेशा पुण्य ही करती है। 
योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका।
आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति।।
भावार्थ : यदि चींटी चल पड़ी तो धीरे—धीरे वह एक हजार योजन भी चल सकती है। लेकिन यदि गरूड़ अपनी जगह से नहीं हिला तो वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।

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