भाजपा की वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन

विश्लेषण : लम्बे समय से डायबिटीज और फिर किडनी की बीमारी से जूझ रही 67 वर्षीय सुषमा को मंगलवार की देर शाम दिल का दौरा पडऩे पर दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था। बीमारी के कारण ही उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। मंगलवार को ही लोकसभा ने जम्मू-कश्मीर को संविधान की धारा 370 के तहत मिला विशेष दर्जा समाप्त करने का संकल्प पारित किया था। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए एक ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा, 'मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।' किसी को मालूम न था कि यह उनका अंतिम ट्वीट साबित होगा। अपनी मृत्यु से महज कुछ घंटे पहले ही किया उनका यह ट्वीट भी यादगार बन गया। वास्तव में सुषमा ने एक शानदार राजनीतिक पारी खेलकर इस संसार को अलविदा कहा। 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के पलवल में जन्मीं सुषमा स्वराज का बचपन अंबाला में बीता। मां के निधन के कारण सुषमा स्वराज को मामा व नाना-नानी के पास अंबाला आना पड़ा। नाना-नानी ने ही उनका पालन-पोषण किया था। प्रखर वक्ता एवं तेजतर्रार नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाली सुषमा स्वराज ने हर क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी। विदेश मंत्रालय से पहले स्वास्थ्य तथा सूचना-प्रसारण मंत्रालय समेत जिस भी मंत्रालय की कमान उन्होंने संभाली, उनके कामकाज को लोग आज भी याद करते हैं। सुषमा स्वराज जैसे प्रखर वक्ता अब राजनीति में कम नजर आते हैं। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सुषमा को ही बेहतर वक्ता माना जाता था। भाजपा के पितामह कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार संसद में प्रसंगवश सुषमा स्वराज की प्रशंसा करते हुए कहा था कि उन्हें कई बार जलन होती है कि वह अटल जी और सुषमा जी जैसे कुशल वक्ता नहीं बन पाए। सुषमा स्वराज को दूसरी पीढ़ी के नेताओं में गिना जाता था। एक बार खुद सुषमा ने कहा था कि आडवाणी जी ने भाजपा की नयी पीढ़ी के लिए जिन 5 नेताओं को चुना, उनमें वह भी शामिल थीं। बाकी 4 में आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रमोद महाजन, अरुण जेटली व अनंत कुमार थे। भारतीय राजनीति में कई कीर्तिमान बनाने वाली सुषमा 1977 में 25 साल की उम्र में हरियाणा की चौधरी देवीलाल सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। 
इसके बाद 27 साल की उम्र में 1979 में वह हरियाणा प्रदेश जनता पार्टी की अध्यक्ष बनी थीं। किसी राष्ट्रीय पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता भी बनीं। वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री एवं लोकसभा में विपक्ष की पहली महिला नेता बनीं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद वह ऐसी महिला थीं, जिन्होंने विदेशमंत्री का पद संभाला। वह 7 बार सांसद तथा 3 बार विधायक रहीं। विदेशमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल को विशेष तौर पर याद किया जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी खासतौर पर ट्विटर का सदुपयोग कर उन्होंने इस मंत्रालय को आम लोगों से जोड़ दिया था। विदेश मंत्रालय से जुड़े मामलों के लिए उन्हें बस एक ट्वीट करना होता था। इसी के जरिए उन्होंने विदेशों में फंसे भारतीयों की मदद की थी। मूक-बधिर गीता तथा जेल में बंद हामिद अंसारी की पाकिस्तान से वापसी के लिए बतौर विदेशमंत्री उन्होंने मदद की। संतोष भारद्वाज को समुद्री डाकुओं से छुड़ाया। यमन संकट के समय ऑपरेशन राहत उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। ऐसे अनगिनत उदारहण याद किए जा सकते हैं। उनसे पहले विदेश मंत्रालय की छवि विदेशी नेताओं के संवाद करने तक सीमित समझी जाती थी। उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के अवार्ड से भी नवाजा गया।
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