शीलहीन मनुष्य मॄत के समान
सुभाषित—
वॄत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमायाति याति च |
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: ||
भावार्थ : मनुष्य को अपने शील का संरक्षण प्रयत्नपुर्वक करना चाहिये, धन कमाया जा सकता है और गंवाया भी जा सकता है। धनवान परन्तु शीलहीन मनुष्य मॄत के समान है।
जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः पुनः ।
संसार सागरे दुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ॥
भावार्थ : संसार सागर में जन्म का, बुढ़ापे का और मृत्यु का दुःख बार बार आता है, इसलिए हे मानव! जाग।
वॄत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमायाति याति च |
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत: ||
भावार्थ : मनुष्य को अपने शील का संरक्षण प्रयत्नपुर्वक करना चाहिये, धन कमाया जा सकता है और गंवाया भी जा सकता है। धनवान परन्तु शीलहीन मनुष्य मॄत के समान है।
जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः पुनः ।
संसार सागरे दुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ॥
भावार्थ : संसार सागर में जन्म का, बुढ़ापे का और मृत्यु का दुःख बार बार आता है, इसलिए हे मानव! जाग।
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