गरीबों की मदद

बोधकथा : अच्छी ख्याति प्राप्त होने बाद भी कबीरदास सादा जीवन बिताते थे। एक बार शहर के कुछ सेठ उनके पास आए और कबीरदास जी से बोले कि आप इतने बड़े व्यक्ति हैं, फिर भी आप पुराने कपड़े पहनते हैं और कपड़ा बुनने का काम भी करते हैं। आप ऐसा करना छोड़ दो। हमें ये देखकर बहुत शर्म आती है। आपको जो भी चाहिए हमें बताओ। यह सुनकर कबीरदास जी बोले आपको मुझ पर शर्म आती है लेकिन मुझे आपकी बातों व आप लोगों पर शर्म आ रही है। आप लोग इतने स्वार्थी कैसे हो? पहले मैं गरीब था तब अपने लिए कपड़ा बुनता था, अब मैं गरीबों के लिए कपड़ा बुनता हूं। यह देख और लोग भी गरीबों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। इससे गरीबों का भला तो हो रहा है। आप लोग समृद्ध हैं तो आप मेरी नहीं बल्कि उनकी मदद करिए जिन्हें वास्तव में सहायता की जरूरत है। काशी के घाट पर जाने कितने ऐसे गरीब हैं, जिन्हें भूखे पेट रात गुजारनी पड़ती है, जो शर्म की बात है। आप लोग कभी गरीबों की मदद के लिए आगे नहीं आते। कबीरदास जी की बातें सुनकर सभी सेठ शर्मिंदा हुए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने कबीरदास जी को वचन दिया कि भविष्य में वे गरीबों की हरसंभव सहायता करेंगे।

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