टाले नहीं टलती मौत
बोधकथा : महाभारत युद्ध करीब—करीब समाप्त हो चुका था, पांडवों को सिर्फ दुर्योधन की तलाश थी।क्योंकि जब तक दुर्योधन की मौत न हो जाती तब तक महायुद्ध का निर्णायक अंत नहीं कहा जा सकता था। पांडवों ने दुर्योधन को बहुत ढूंढा, लेकिन दुर्योधन का पता नहीं चल पाया। अंतत: एक व्यक्ति ने पांडवों को बताया कि दुर्योधन को मैंने जलाशय में जाते देखा था। पांडवों उस जलाशय के पास पहुंचे, जो बहुत ही बड़ा और गहरा था। काफी बुलाने, चिल्लाने के बाद दुर्योधन बाहर नहीं निकला, तब पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने कहा कि हे दुर्योधन! तुम बाहर निकलों और हम पांचों में से जिससे मन करे तुम युद्ध करो, यदि तुम युद्ध में जीत गये तो हम युद्ध हारा हुआ मान लेंगे। युधिष्ठिर की यह बात सुनकर दुर्योधन को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी हो और इधर श्रीकृष्ण और पांडवों के चारों भाइयों के माथे पर चिंता की साफ लकीरें दिखनें लगीं। सभी ने एक साथ पूछा कि बड़े भइया यह आपने क्या कह दिया, दुर्योधन को सिर्फ और सिर्फ भीम भइया ही हरा सकते हैं। और यदि दुर्योधन भीम से नहीं लड़ा तो युद्ध तो हम लोग हार ही जाएंगे।
फिलहाल दुर्योधन हंसता, मुस्कुराता जलाशय से बाहर निकला और उसने भीम से लड़ने की बात कही। दुर्योधन और भीम का युद्ध शुरू हुआ, दुर्योधन ने भीम को खूब गदा मारे, भीम को काफी चोटें आईं। चूंकि दुर्योधन का सारा शरीर जांघ छोड़कर पत्थर का था, भीम दुर्योधन को गदा मारते तो उस पर असर ही नहीं करता। तब श्रीकृष्ण ने इशारों—इशारों में भीम को कहा कि जांघ पर गदे से हमला करो, तब भीम ने ऐसा ही किया और दुर्योधन की जांघ पर गदे से प्रहार करके जांघ तोड़ दिया और जख्मी हालत में दुर्योधन को वहीं छोड़कर पांडवों समेत श्रीकृष्ण वहां से चले गये। पुराणों में कई जगह उल्लेख है कि दुर्योधन को जिंदा ही गिद्ध और मांस खाने वाले पक्षी नोंचकर खा गये थे। दुर्योधन चाहता तो भीम को छोड़कर बाकी किसी पांडवों भाइयों से लड़कर युद्ध आसानी से जीत सकता था, लेकिन वह भीम से बहुत ही बैर रखता था, भीम की जान लेने का प्रयास दुर्योधन बचपन से कई बार कर चुका था, लेकिन भाग्यवश भीम बचते रहे। और अंतत: यही तथ्य सामने आता है कि मौत टाले नहीं टलती, दुर्योधन ने भीम को अपनी मौत के रूप में चुना।
फिलहाल दुर्योधन हंसता, मुस्कुराता जलाशय से बाहर निकला और उसने भीम से लड़ने की बात कही। दुर्योधन और भीम का युद्ध शुरू हुआ, दुर्योधन ने भीम को खूब गदा मारे, भीम को काफी चोटें आईं। चूंकि दुर्योधन का सारा शरीर जांघ छोड़कर पत्थर का था, भीम दुर्योधन को गदा मारते तो उस पर असर ही नहीं करता। तब श्रीकृष्ण ने इशारों—इशारों में भीम को कहा कि जांघ पर गदे से हमला करो, तब भीम ने ऐसा ही किया और दुर्योधन की जांघ पर गदे से प्रहार करके जांघ तोड़ दिया और जख्मी हालत में दुर्योधन को वहीं छोड़कर पांडवों समेत श्रीकृष्ण वहां से चले गये। पुराणों में कई जगह उल्लेख है कि दुर्योधन को जिंदा ही गिद्ध और मांस खाने वाले पक्षी नोंचकर खा गये थे। दुर्योधन चाहता तो भीम को छोड़कर बाकी किसी पांडवों भाइयों से लड़कर युद्ध आसानी से जीत सकता था, लेकिन वह भीम से बहुत ही बैर रखता था, भीम की जान लेने का प्रयास दुर्योधन बचपन से कई बार कर चुका था, लेकिन भाग्यवश भीम बचते रहे। और अंतत: यही तथ्य सामने आता है कि मौत टाले नहीं टलती, दुर्योधन ने भीम को अपनी मौत के रूप में चुना।
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