न्यायप्रिय राजा दिलीप
बोधकथा : राजा दिलीप के मन में एक बार आया कि महर्षि वशिष्ठ के आश्रम जाकर ज्ञान प्राप्त करें। राजा महर्षि वशिष्ठ के पास गये। ऋषि ने उन्हें गाय चराने के लिए जंगल में भेजा। जंगल में सामने से सिंह आ गया। सिंह को देख गाय की सुरक्षा के लिए राजा आगे आए, तो सिंह ने कहा-राजा! तुम एकछत्र राज्य प्राप्त सुंदर शरीरधारी हो, इस गाय को बचाने के लिए क्यों अपने को मार रहे हो? तुम मुझे विचारमूढ़ राजा लगते हो! राजा दिलीप ने उत्तर दिया-हे परमात्मांश जीवात्मा, मैं क्षत्रिय हूं, किसी भी प्राणी के कष्टासन्न काल में उसकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। गाय के प्राणों की रक्षार्थ मैं अपने प्राणों की बलि देने को तैयार हूं। राजा के भीतर से उपजे कर्तव्य बोध को देखकर नारायण रूपी सिंह पुन: अपने नारायण भगवद् रूप में प्रकट होकर बोले-राजन! वस्तुत: राजा हो तो आप जैसा, जिसकी कर्तव्यनिष्ठता और दयामय न्यायप्रियता के समक्ष मैं भी हार गया। राजा दिलीप को ज्ञान तो हुआ ही, उसकी प्रजा कल्याण छवि को भी ख्याति मिली।
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