श्रावण पुत्रदा एकादशी के व्रत से संतान प्राप्ति
ज्योतिष : सनतान धर्म में एकादशी का खास महत्व है। एकादशी का व्रत करने से जातक का मन चंचल नहीं होता है बल्कि शांत रहता है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है एक है श्रावण एकादशी तथा दूसरी है पौष एकादशी। सावन महीने में आने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति तथा संतान की समस्याओं के निवारण के लिए किया जाता है। सावन की पुत्रदा एकादशी को विशेष फलदायी माना जाता है। इस व्रत को करने से संतान संबंधी हर चिंता और समस्या का अंत हो जाता है। इस वर्ष श्रावण पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त को है। वैसे तो पुत्रदा एकादशी धूमधाम पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन उत्तर भारत में पौष शुक्ल पक्ष एकादशी का खास महत्व है। लेकिन दक्षिण भारत में श्रावण पुत्रदा एकादशी की महत्ता अधिक है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु उपरांत मोक्ष मिलता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यही नहीं पुत्रदा एकादशी के व्रत से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। यदि पूर्णमनोयोग से नि:संतान दंपति इस व्रत को करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलता है। पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ने और सुनने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। श्री पद्मपुराण में कहा गया है कि द्वापर युग में महिष्मतीपुरी के राजा महीजित शांतिप्रिय तथा धर्मनिष्ठ थे। लेकिन वह निःसंतान थे। राजा को महामुनि लोमेश को बताया कि यह उनके पूर्व जन्म के कर्मों के कारण हो रहा है।
लोमेश ने कहा कि राजा पिछले जन्म में अत्याचारी तथा धनहीन वैश्य थे। पुत्रदा एकादशी को दोपहर में वह प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर गए वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और खुद पानी पीने लगे। राजा का यह कार्य धार्मिक रूप से नितांत अनुचित है। अपने पूर्व जन्म के पुण्यों से इस जन्म में राजा तो बने, लेकिन पाप के कारण संतान विहीन हैं। महामुनि ने कहा कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, उन्हें अवश्य ही संतान रत्न की प्राप्ति होगी। इस प्रकार प्रजा के साथ-साथ जब राजा भी यह व्रत किए उसके बाद रानी ने एक तेजस्वी संतान को जन्म दिया। उसके बाद इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त एकादशी का कठोर व्रत रखते हैं। लेकिन एकादशी का व्रत निर्जला भी रखा जाता है जो बहुत कठोर होता है । इसके अलावा एकादशी का व्रत जल के साथ भी किया जाता है। इसके अलावा एकादशी का व्रत संयमित तरीके से फलाहार के साथ भी किया जाता है। एकादशी व्रत में व्रती को दशमी के दिन से ही सात्विक आहार खाना चाहिए। यही नहीं ब्रह्मचर्य के नियमों का भी पालन करें। व्रत के दिन सुबह नहा कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें। रात में कीर्तन करते हुए जगे रहें। उसके बाद द्वादशी के दिन के सूर्योदय के बाद पूजा होनी चाहिए। इसके बाद पारण में किसी भूखे या पात्र ब्राह्मण को भोजन कराएं।
लोमेश ने कहा कि राजा पिछले जन्म में अत्याचारी तथा धनहीन वैश्य थे। पुत्रदा एकादशी को दोपहर में वह प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर गए वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और खुद पानी पीने लगे। राजा का यह कार्य धार्मिक रूप से नितांत अनुचित है। अपने पूर्व जन्म के पुण्यों से इस जन्म में राजा तो बने, लेकिन पाप के कारण संतान विहीन हैं। महामुनि ने कहा कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, उन्हें अवश्य ही संतान रत्न की प्राप्ति होगी। इस प्रकार प्रजा के साथ-साथ जब राजा भी यह व्रत किए उसके बाद रानी ने एक तेजस्वी संतान को जन्म दिया। उसके बाद इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त एकादशी का कठोर व्रत रखते हैं। लेकिन एकादशी का व्रत निर्जला भी रखा जाता है जो बहुत कठोर होता है । इसके अलावा एकादशी का व्रत जल के साथ भी किया जाता है। इसके अलावा एकादशी का व्रत संयमित तरीके से फलाहार के साथ भी किया जाता है। एकादशी व्रत में व्रती को दशमी के दिन से ही सात्विक आहार खाना चाहिए। यही नहीं ब्रह्मचर्य के नियमों का भी पालन करें। व्रत के दिन सुबह नहा कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें। रात में कीर्तन करते हुए जगे रहें। उसके बाद द्वादशी के दिन के सूर्योदय के बाद पूजा होनी चाहिए। इसके बाद पारण में किसी भूखे या पात्र ब्राह्मण को भोजन कराएं।
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