जल्द डीजलमुक्त होंगे महाराष्ट्र के 6 जिले
समाचार : हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर, गढ़चिरौली और वर्धा जिलों को डीजलमुक्त करने की घोषणा की थी। इन जिलों के वाहनों में डीजल की जगह करंज वनस्पति के बीजों से बने बायोफ्यूल या बायोडीजल का इस्तेमाल किया जाएगा। गडकरी के मार्गदर्शन में ग्रीन क्रूड बायोफ्यूल फाउंडेशन इस पर काम कर रहा है। शुरुआत में करंज के करीब 3-4 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। इनके बीज तैयार होने पर 4 बायोफ्यूल प्लांट लगाए जाएंगे। यहां तैयार बायोफ्यूल बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा, जो डीजल की तुलना में करीब 15 से 20 रुपए सस्ता होगा। ग्रीन क्रूड बायोफ्यूल फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. हेमंत जांभेकर ने भास्कर को बताया, “हम बगैर किसी सरकारी मदद के विकास के इस मॉडल को कामयाब बनाना चाहते हैं।
बायोफ्यूल के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा तो प्रदूषण भी घटेगा। इसके अलावा रोजगार के अनगिनत अवसर निकलेंगे। इसी साल प्रोजेक्ट की शुरुआत हो रही है। इसमें हम जनसहभागिता के जरिए विभिन्न स्वयंसेवी संगठन और करीब 320 एकल विद्यालयों की मदद ले रहे हैं।” डॉ. जांभेकर बताते हैं, "यह प्रोजेक्ट करीब 5 साल का है। बायोफ्यूल बनाने के लिए करंज वनस्पति का इस्तेमाल किया जाएगा है। इसकी वजह यह है कि करंज के बीजों में 30 प्रतिशत तक तेल होता है। बायोफ्यूल की दृष्टि से भी यह तेल काफी कारगर साबित हुआ है, इसलिए इसे मनीप्लांट भी कहा जाने लगा है। कुछ मामूली प्रक्रिया के जरिए इसे बायोडीजल में बदला जाता है। इसी बायोडीजल के दम पर हम इन छह जिलों को डीजल मुक्त बनाने का सपना देख रहे हैं।” केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस फाउंडेशन के समन्वयक के तौर पर जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। शुरुआती तीन साल में 3-4 करोड़ पौधे लगाने की योजना है। इसके लिए स्वयंसेवी संगठनों के अलावा छात्रों और अभिभावकों की भी मदद ली जा रही है। उन्हें बीज या तैयार पौधे उपलब्ध करवाए जाएंगे। प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग करंज के बीज तथा पौधे मुहैया करवाएगा। खास बात यह है कि डीजल की तुलना में बायोफ्यूल करीब 20 रुपए प्रति लीटर तक सस्ता पड़ेगा। प्लांट से निर्मित बायोडीजल खुले बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा। डॉ. जांभेकर कहते हैं, "सामान्य तौर पर डीजल करीब 70 रुपए लीटर पड़ता है। अगर हम बायोडीजल 50 रुपए प्रति लीटर में उपलब्ध करवाएं, तो सस्ता भी पड़ेगा और प्रदूषण भी कम होगा। ग्रीन क्रूड बायोफ्यूल फाउंडेशन की चार जिलों में चार बायोडीजल प्लांट लगाने की योजना है। ये पेड़ लगाने की प्रक्रिया के तीन साल बाद लगाए जाएंगे। एक प्लांट बनाने में दो से ढाई महीने लगते हैं।’ बायोडीजल का इस्तेमाल सामान्य डीजल वाहनों में किया जा सकता है। इसके लिए आपको इंजन में बदलाव करने की जरूरत नहीं है। डॉ. जांभेकर बताते हैं कि बायोफ्यूल के मॉलिक्यूल मे ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी रहती है। इससे इंजन में कॉम्बिशन अच्छी तरह से होता है। इस वजह से प्रदूषण भी 5-6 फीसदी कम होता है। आगे चलकर बायोसीएनजी पर भी इसी योजना के तहत काम करने की योजना है। पूर्वी विदर्भ के ये जिले विकास की दृष्टि से अविकसित और पिछड़े माने जाते हैं, लेकिन करंज वनस्पति के लिए यहां जमीन की उपलब्धता भरपूर है। दूसरा गढ़चिरौली, चंद्रपुर और गोंदिया जिले आदिवासी बहुल हैं, लेकिन रोजगार न होने की वजह से नक्सलवाद को बढ़ावा मिला है। ऐसे में स्थानीय आदिवासियों को इस प्रोजेक्ट से जोड़कर उन्हें रोजगार देने की भी योजना है। करंज के पेड़ को मामूली देखभाल की जरूरत होती है और इसे पशु भी बिल्कुल नहीं खाते। दूसरा, ढाई से तीन साल में पेड़ बड़ा होने पर बीज मिलने लगते हैं। इनके बीज बेचने से किसानों और ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो जाएगी। इस वजह से भी ज्यादा से ज्यादा लोगों के इस प्रोजेक्ट से जुड़ने की उम्मीद है। केंद्र सरकार ने जून 2018 में गैजट में नेशनल बायोफ्यूल पॉलिसी-2018 को लेकर एक अधिसूचना जारी की थी। सरकार ने 2009 में लागू नीति में संशोधन किया है। इस नीति का उद्देश्य आने वाले दशक में देश के ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में बायोफ्यूल के उपयोग को बढ़ावा देना है। वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा 2 प्रतिशत है, जबकि डीजल में बायोडीजल की मात्रा 0.1 फीसदी से भी कम है। 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल 20 फीसदी और डीजल में बायोडीजल 5 फीसदी करने का प्रस्ताव है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 5 कदम उठाए जाएंगे। एथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता और विकास की कोशिश की जा रही है। इनमें एथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने का रस, घास, चावल, मक्का, गेहूं के पुवाल जो फिलहाल जला दिए जाते हैं, सड़ा हुआ अनाज, आलू, चुकंदर, ऐसा अनाज जो खाने योग्य नहीं है। समुद्री शैवाल आदि चीजों को बायोफ्यूल के फीडस्टॉक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
बायोडीजल के लिए : अखाद्य तिलहन, इस्तेमाल किया हुआ और खराब खाद्य तेल, पशुओं की चर्बी, एसिड ऑयल, शैवाल आदि।
उन्नत बायोफ्यूल के लिए : बायोमास, नगर निगम से निकला ठोस कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक आदि।
बायोफ्यूल के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा तो प्रदूषण भी घटेगा। इसके अलावा रोजगार के अनगिनत अवसर निकलेंगे। इसी साल प्रोजेक्ट की शुरुआत हो रही है। इसमें हम जनसहभागिता के जरिए विभिन्न स्वयंसेवी संगठन और करीब 320 एकल विद्यालयों की मदद ले रहे हैं।” डॉ. जांभेकर बताते हैं, "यह प्रोजेक्ट करीब 5 साल का है। बायोफ्यूल बनाने के लिए करंज वनस्पति का इस्तेमाल किया जाएगा है। इसकी वजह यह है कि करंज के बीजों में 30 प्रतिशत तक तेल होता है। बायोफ्यूल की दृष्टि से भी यह तेल काफी कारगर साबित हुआ है, इसलिए इसे मनीप्लांट भी कहा जाने लगा है। कुछ मामूली प्रक्रिया के जरिए इसे बायोडीजल में बदला जाता है। इसी बायोडीजल के दम पर हम इन छह जिलों को डीजल मुक्त बनाने का सपना देख रहे हैं।” केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इस फाउंडेशन के समन्वयक के तौर पर जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। शुरुआती तीन साल में 3-4 करोड़ पौधे लगाने की योजना है। इसके लिए स्वयंसेवी संगठनों के अलावा छात्रों और अभिभावकों की भी मदद ली जा रही है। उन्हें बीज या तैयार पौधे उपलब्ध करवाए जाएंगे। प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग करंज के बीज तथा पौधे मुहैया करवाएगा। खास बात यह है कि डीजल की तुलना में बायोफ्यूल करीब 20 रुपए प्रति लीटर तक सस्ता पड़ेगा। प्लांट से निर्मित बायोडीजल खुले बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा। डॉ. जांभेकर कहते हैं, "सामान्य तौर पर डीजल करीब 70 रुपए लीटर पड़ता है। अगर हम बायोडीजल 50 रुपए प्रति लीटर में उपलब्ध करवाएं, तो सस्ता भी पड़ेगा और प्रदूषण भी कम होगा। ग्रीन क्रूड बायोफ्यूल फाउंडेशन की चार जिलों में चार बायोडीजल प्लांट लगाने की योजना है। ये पेड़ लगाने की प्रक्रिया के तीन साल बाद लगाए जाएंगे। एक प्लांट बनाने में दो से ढाई महीने लगते हैं।’ बायोडीजल का इस्तेमाल सामान्य डीजल वाहनों में किया जा सकता है। इसके लिए आपको इंजन में बदलाव करने की जरूरत नहीं है। डॉ. जांभेकर बताते हैं कि बायोफ्यूल के मॉलिक्यूल मे ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी रहती है। इससे इंजन में कॉम्बिशन अच्छी तरह से होता है। इस वजह से प्रदूषण भी 5-6 फीसदी कम होता है। आगे चलकर बायोसीएनजी पर भी इसी योजना के तहत काम करने की योजना है। पूर्वी विदर्भ के ये जिले विकास की दृष्टि से अविकसित और पिछड़े माने जाते हैं, लेकिन करंज वनस्पति के लिए यहां जमीन की उपलब्धता भरपूर है। दूसरा गढ़चिरौली, चंद्रपुर और गोंदिया जिले आदिवासी बहुल हैं, लेकिन रोजगार न होने की वजह से नक्सलवाद को बढ़ावा मिला है। ऐसे में स्थानीय आदिवासियों को इस प्रोजेक्ट से जोड़कर उन्हें रोजगार देने की भी योजना है। करंज के पेड़ को मामूली देखभाल की जरूरत होती है और इसे पशु भी बिल्कुल नहीं खाते। दूसरा, ढाई से तीन साल में पेड़ बड़ा होने पर बीज मिलने लगते हैं। इनके बीज बेचने से किसानों और ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो जाएगी। इस वजह से भी ज्यादा से ज्यादा लोगों के इस प्रोजेक्ट से जुड़ने की उम्मीद है। केंद्र सरकार ने जून 2018 में गैजट में नेशनल बायोफ्यूल पॉलिसी-2018 को लेकर एक अधिसूचना जारी की थी। सरकार ने 2009 में लागू नीति में संशोधन किया है। इस नीति का उद्देश्य आने वाले दशक में देश के ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में बायोफ्यूल के उपयोग को बढ़ावा देना है। वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा 2 प्रतिशत है, जबकि डीजल में बायोडीजल की मात्रा 0.1 फीसदी से भी कम है। 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल 20 फीसदी और डीजल में बायोडीजल 5 फीसदी करने का प्रस्ताव है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 5 कदम उठाए जाएंगे। एथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता और विकास की कोशिश की जा रही है। इनमें एथेनॉल उत्पादन के लिए गन्ने का रस, घास, चावल, मक्का, गेहूं के पुवाल जो फिलहाल जला दिए जाते हैं, सड़ा हुआ अनाज, आलू, चुकंदर, ऐसा अनाज जो खाने योग्य नहीं है। समुद्री शैवाल आदि चीजों को बायोफ्यूल के फीडस्टॉक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
बायोडीजल के लिए : अखाद्य तिलहन, इस्तेमाल किया हुआ और खराब खाद्य तेल, पशुओं की चर्बी, एसिड ऑयल, शैवाल आदि।
उन्नत बायोफ्यूल के लिए : बायोमास, नगर निगम से निकला ठोस कचरा, औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक आदि।
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