पोस्ते की फसल से तैयार होता है अफीम, हेरोइन व मार्फीन

विचार। देश में पोस्ते की फसल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यत: बोई जाती है। पोस्त की खेती व व्यापार के लिये सरकार के आबकारी विभाग से अनुमति लेना जरूरी है। पोस्ते के पौधे से अहिफेन यानि अफीम निकलती है, जो नशीली होती है। आयुर्वेद में दस्त बन्द करने वाली सभी दवाओं में अफीम का मिश्रण होता है। कर्पूर रस अहिफेन युक्त अफीम से बनने वाली दवा है। सेक्स के कुछ उत्पाद भी अफीम युक्त होते हैं, लेकिन इनसे तत्कालिक लाभ ही मिलता है। हेरोइन में मार्फिन भी होता है, जो मेडिकल क्षेत्र में पेनकिलर दवा के रूप में काम में लिया जाता है। अफीम और एसिटिक मिलाकर हेरोइन तैयार की जाती है। इसका केमिकल फार्मूला है डाई एसिटिल। हेरोइन शारीरिक और मानसिक क्षमता को कम कर देती है। भारत में अफीम की पैदावार का प्रयोग दूसरे देशों में होने वाले व्यापार के लिए जमकर किया जाता था। अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए नशे की खेती कराई और अफीम के जरिए अपनी एकाधिकार कायम किया। मौजूदा दौर में भारत सरकार अपनी अफीम नीति के तहत लाइसेंस देती है। इसके लिए लाइसेंस के लिए कोई आवेदन नहीं करना पड़ता है बल्कि पहले से मौजूद रिकॉर्ड के आधार पर ही लाइसेंस दिया जाता है। इसके लिए यह भी देखा जाता है कि जो किसान इसकी खेती कर रहा है उसके ऊपर स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम-1985 का कोई आरोप तो नहीं है। केंद्र सरकार ने 1 अक्टूबर 2021 को शुरू होकर 30 सितम्बर 2022 को समाप्त होने वाले अफीम फसल वर्ष के दौरान अफीम पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसों की मंजूरी के लिए सामान्य शर्तों का नोटिफिकेशन जारी किया है। नोटिफिकेशन के मुताबिक खेती करने के स्थान किसी भी ऐसे भूखंड में पोस्त की खेती के लिए लाइसेंस दिया जा सकता है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा इस बारे में अधिसूचित किया जाये। किसी भी किसान को तब तक लाइसेंस मंजूर नहीं किया जाएगा जब तक वह फसल वर्ष 2020-21 के दौरान पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसशुदा वास्तविक क्षेत्र से 5 फीसदी क्षम्य क्षेत्र से अधिक क्षेत्र में खेती न की हो, उसने कभी भी अफीम पोस्त की अवैध खेती न की हो, नारकोटिक औषधि तथा मन:प्रभावी द्रव्य पदार्थ अधिनियम, 1985 और उसके अंतर्गत बनाये गये नियमों के अंतर्गत उस पर किसी अपराध के लिए किसी सक्षम न्यायालय में आरोप नहीं सिद्ध किया गया हो। वहीं बात करें झारखंड की तो वहां उगाई जाने वाली अफीम उत्तर प्रदेश और कोलकाता की मंडियों में पहुंचाई जाती है। परदे के पीछे बड़े करोबारी होते हैं लेकिन तस्करी के लिए स्थानीय दलालों को लगाया जाता है। अफीम निकलना शुरू होते ही दलाल खुद खेतों तक पहुंच जाते हैं। इन दलालों का काम अफीम को यहां से यूपी और कोलकाता की मंडियों तक पहुंचाने का होता है। इसके बाद बड़े सौदागर इसे चेन्नई और बांग्लादेश पहुंचाते हैं। खबरों के अनुसार बनारस और गोरखपुर के व्यापारी इससे अधिक जुड़े हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में दूसरी बार मन की बात कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का जिक्र चिया सीड को लेकर किया था, जो कभी अफीम के लिये कुख्यात रहे बाराबंकी जिले को चर्चा में ला दिया था। काला सोना यानि अफीम की खेती के लिए कभी बाराबंकी का अच्छा खासा नाम था लेकिन, इधर कुछ वर्षों से किसानों का पोस्ते की खेती से मोहभंग होता जा रहा है। खेती में हाई रिस्क और मौसम के साथ न देने से उपज की कमी ने किसानों को निराश किया है। 

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