नागरिकों में डिजिटल समानता लाना बेहद जरूरी

विचार। डिजिटल इंडिया केंद्र सरकार की आश्वासनात्मक योजना है। कई कम्पनियों ने इस योजना में अपनी दिलचस्पी दिखायी है। यह भी माना जा रहा है कि ई-कॉमर्स डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट को सुगम बनाने में मदद करेगा। जबकि, इसे कार्यान्वयित करने में कई चुनौतियां और कानूनी बाधायें भी आ सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश में डिजिटल इंडिया सफल तब तक नहीं हो सकता जबतक कि आवश्यक बीसीबी ई-गवर्नेंस को लागू न किया जाये। वहीं कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार बिना साइबर सुरक्षा के ई-प्रशासन और डिजिटल इंडिया व्यर्थ है। कोरोना काल से पहले भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार ने डिजिटलाइजेशन पर जोर दिया था और इसी बीच कोरेाना आ गया, जहां डिजिटलाइजेशन की बेहद जरूरत महसूस की गयी और अधिकतर लोगों से इस दौरान डिजिटल प्रक्रियाओं का पालन किया और बीमारी से यथासम्भव सुरक्षित रह पाये। कोरोना काल में डिजिटल माध्यम से पढ़ाई, पैसे का लेनदेन आदि में काफी मददगार साबित हुआ।  वहीं डिजिटाइजेशन का दूसरा पहलू यह कि जीवन के हर क्षेत्र में डिजिटल प्रक्रिया और कृत्रिम बुद्धि का ही बोलबाला हो रहा है। रोबोट बहुत सारे काम यहाँ तक कि जटिल सर्जरी आदि करने में बेहद सहायक हो रहा है, कम्प्यूटर और इंटरनेट की सहायता से धरती से चाँद तक बहुत सारे काम हो रहे हंै। बढिय़ा मोबाइल ‘आई फोन’ हो तो मानो दुनिया ही मु_ी में आ गई हो। वहीं दूसरी ओर देश में कई ऐसे नागरिक हैं, जो अनपढ़ हैं लेकिन डिजिटल मोबाइल का प्रयोग कर रहे हैं, कुछ पढ़े-लिखे लोग डिजिटल मोबाइल का प्रयोग नहीं करते। बहुत से अनपढ़ हैं वह डिजिटलाइजेशन के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं रखते, न स्मार्टफोन के बारे में सुना है और न ही दिलचस्पी है। देश में इस तरह का ‘डिजिटल डिवाइड’ मौजूदा दौर में सामाजिक-आर्थिक भेदभाव का बड़ा कारण बन रहा है। आजादी के पचहत्तर साल बीतने को है, ज्ञान की शृंखला की बेडिय़ां मजबूत हुई हैं। करीब दो साल लम्बी चली कोविड की संक्रामक महामारी के दौर में शिक्षा और तकनीक का रिश्ता तब नई ऊंचाइयों पर जा पहुंचा जब प्राथमिक से उच्च शिक्षा की सारी व्यवस्था ‘ऑनलाइन’ शिक्षा के अधीन हो गई। अध्यापन हो या परीक्षा मजबूरी में ही सही सारा का सारा काम ऑनलाइन ही होता रहा। इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की दस्तक के साथ कई तरह की भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक घटनायें वैश्विक स्तर पर फैलती नजर आ रही हैं, उनके बीच यह सवाल अहम होता जा रहा है कि जिस तरह के आदमी को रचा-गढ़ा जा रहा है वह इस अर्थ में स्वायत्त रूप से कितना सक्षम और समर्थ है ताकि वह सर्जनात्मक रूप से खुद को, अपने परिवेश को और परिवेश के समस्त जड़ चेतन रहवासियों को स्वस्थ और सुरक्षित रख सके। शिक्षा का जो ढांचा अंग्रेज छोडक़र गये और जिसे ज्यों का त्यों अपना लिया गया उसे देख कर यही लगता है कि सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ। बीते वर्ष 2020 में नयी शिक्षा नीति का मसौदा आया जिसे ‘भारतकेन्द्रित’ कहा गया। इसमें संरचना, प्रक्रिया और विषय वस्तु को लेकर बड़े गंभीर परिवर्तन के संकल्प प्रस्तुत किए गये जिनको देख कर एक लचीली और प्रतिभा को अवसर देने वाली एक उत्साहवद्र्धक व्यवस्था दी गई। इसमें मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम रखने पर भी बल दिया गया है। उस मसौदे के क्रियान्वयन की प्रक्रिया प्रगति में है। उम्मीद है कि भविष्य में शीघ्र ही शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की रूपरेखा सामने आयेगी। नागरिकों में डिजिटल समानता लाना बेहद जरूरी है, इसके लिये प्रत्येक नागरिक को शिक्षित किया जाना चाहिए।

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