ब्रह्मऋषि वशिष्ठ के पास थी देवताओं की दी हुई मायावी गाय कामधेनु

कथा। ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे। राजा दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय और कामधेनु की नंदिनी नाम की बेटी थी, दोनों ही मायावी थीं। कामधेनु और नंदिनी ऋषि वशिष्ठ को सब कुछ दे सकती थीं। ऋषि वशिष्ठ शांति प्रिय, महान और परमज्ञानी थे। ऋषि वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे गुरुकुल की स्थापना की थी। गुरुकुल में हजारों राजकुमार और अन्य सामान्य छात्र गुरु वशिष्ठ से शिक्षा लेते थे, यहाँ पर महर्षि वशिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधती विद्यार्थियों को शिक्षा देते थे, विद्यार्थी गुरुकुल में ही रहते थे, ऋषि वशिष्ठ गुरुकुल के प्राचार्य थे। गुरुकुल में वे शिष्यों को 20 से अधिक कलाओं का ज्ञान देते थे, ऋषि वशिष्ठ के पास पूरे ब्रह्माण्ड और भगवानों से जुड़ा सारा ज्ञान था, उनके लिखे कई श्लोक और अध्याय वेदों में आज भी है। ब्रह्मऋषि वशिष्ठ और राजा कौशिक यानि विश्वामित्र की अद्भुत कथा आज भी प्रवलित है। महर्षि विश्वामित्र (राजा कौशिक) एक बार ब्रह्मऋषि वशिष्ठ के आश्रम आये, उन्होंने कामधेनु की माया देखी वे कामधेनु से बहुत प्रभावित हुए वे कामधेनु को पाना चाहते थे, उन्होंने कामधेनु को ज़बरदस्ती बंदी बनाना चाहा, लेकिन कामधेनु की शक्तियां कौशिक विश्वामित्र राजा से अधिक थी, राजा कामधेनु को हासिल नहीं कर पाए। ​विश्वामित्र ब्रह्मऋषि वशिष्ठ के समान संन्यासी बनने चले गए, कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद राजा कौशिक विश्वामित्र कहलाये। हालांकि विश्वामित्र कई बार बलपूर्वक ब्रह्मऋषि वशिष्ठ को ललकारा और कामधेनु को हासिल करना चाहा, लेकिन वह हमेशा नाकाम रहे और बाद में कामधेनु को हासिल करने का ख्याल अपने मन से निकाल दिया और पूर्ण ब्रह्मऋषि बनने के लिए वन चले गए, लेकिन कुछ पुराणों में वर्णन के अनुसार विश्वामित्र को महर्षि का दर्जा मिला लेकिन ब्रह्मऋषि के सदृश्य उनको स्थान दिया गया, यही कारण है कि सप्तऋषियों में गुरु वशिष्ठ के साथ विश्वामित्र को भी रखा गया है। एक समय अयोध्या में सूखा पड़ गया, राजा इक्ष्वाकू ने गुरु वशिष्ठ से कहा कि आप ही इसका कुछ उपाय निकालिए, वशिष्ठ ने विशेष यज्ञ किया और यज्ञ के सम्पन्न होते ही सरयू नदी आश्रम के कुएँ से बहने लगी, आज के समय में सरयू नदी को वाशिष्ठी और इक्श्वाकी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि आश्रम के अन्दर का कुआँ नदी से जुड़ा हुआ है, जो यात्री तीर्थ यात्रा के लिए जाते हैं वह यहाँ पर इस कुएँ को देखने के लिए भी आते हैं। महर्षि वशिष्ठ के इस आश्रम को एक सम्पन्न तीर्थ स्थल माना जाता है। ऋषि वशिष्ठ को मंडल 7 उपन्यास का सबसे प्रमुख लेखक माना जाता है। ऋषि वशिष्ठ ने वशिष्ठ संहिता ग्रन्थ की रचना भी की, वशिष्ठ संहिता में ज्योतिष विद्या और वैदिक प्रणाली का वर्णन किया गया है। ऋषि वशिष्ठ इक्ष्वाकु रियासत के राज पुरोहित थे।

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