भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर राजनीति
विचार। भारत में पेट्रोल व डीजल महंगा होने से ही महंगाई है। जीवन मेें उपयोग होने वाली अधिकतर चीजों को वाहनों से ही एक से दूसरे जगह पहुंचाया जाता है। इन वाहनों को आनेजाने में ईंधन खर्च होता है और ईंधन महंगा है, तो जाहिर सी बात है महंगाई रहेगी, चाहे जिस किसी भी दल की सरकार हो। महंगाई पर काबू करने के लिये पेट्रोल व डीजल की कीमतों पर लगाम लगानी होगी। बीते दीपावली की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कमी की घोषणा की थी। पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क क्रमशः 5 रुपए और 10 रुपए कम किया गया। पेट्रोल पर अभी तक एक्साइड ड्यूटी 32.90 पैसे थी, जो घटकर 27.90 पैसे हो गई। वहीं डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 31.80 पैसे थी, जो घटकर 21.80 पैसे हो गई। वहीं वित्त मंत्रालय ने कहा था कि भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में क्रमशः 5 रुपए और 10 रुपए की कमी करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। राज्यों से उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए पेट्रोल और डीजल पर वैट कम करने का भी आग्रह किया गया है। एक्साइज ड्यूटी में कमी होने से भारत को 60 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा मुद्रास्फीति बढ़ेगी और मुद्रास्फीति बढ़ने से आर्थिक समस्या जटिल हो जाती है। मौजूदा केंद्र की मोदी सरकार ने सक्रियता से व्यावहारिक पहल करते हुए रणनीतिक तेल भंडारण की व्यवस्था की। यदि पहले से ही ऐसा नहीं किया जाता, तो भारत के पास महंगा तेल आयात करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता। कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से भी इस सम्बन्ध में भारत तेल उत्पादक और तेल आयातक देशों से बेहतर तालमेल बैठा पाने की स्थिति में है। अमेरिका, भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के एक साथ आने और अपने रणनीतिक भंडार से आपूर्ति करने के निर्णय से निश्चित ही उत्पादक देशों पर दबाव बढ़ेगा। ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वे जल्द ही आपूर्ति बढ़ाकर कीमतों को नीचे लाने में योगदान करेंगे। रणनीतिक भंडार होने से हमें कुछ दिनों का समय मिल गया है कि बढ़े हुए दाम को एक हद तक नीचे लाया जा सके। तेल पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण जब आयात का खर्च बढ़ता है, तब केवल कीमतें ही प्रभावित नहीं होती हैं, बल्कि सरकार के लिए कल्याणकारी और विकास योजनाओं पर खर्च करना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। भारत का स्पष्ट तौर पर मानना है कि पेट्रोलियम ईंधन की क़ीमत का निर्धारण उचित ढंग से, ज़िम्मेदारी के साथ बाजार की ताक़तें करें, मांग की तुलना में तेल उत्पादक देश कम आपूर्ति कर रहे हैं, इसको लेकर भारत ने लगातार चिंता जताई है। इससे तेल की कीमतें बढ़ेंगी और नकारात्मक असर देखने को मिलेगा। वहीं भारत के राजनीतिक दलों की बात करें तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होने से राजनीतिक दल भाजपा सरकार को हर जगह पटकने की नाकाम कोशिश में हैं, विपक्षियों को यह समझना होगा कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महंगाई आसमान छुए हुए है, खासकर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि, तो भारत इससे अछूता कैसे रह सकता है। सभी विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ अनाप-शनाप बातेें करते आ रहे हैं, चुनाव होता है तो छोटे-बड़े सभी दल देखादेखी में सत्तारूढ़ दल के साथ अभद्रता करके चुनाव जीतना चाहते हैं, जबकि जनता अपनी सुविधाएं देखकर मतदान करती है। यानि कि राजनीतिक दलों को गाली और आलोचना से मत नहीं मिलेगा बल्कि मतदाताओं के बीच जाना होगा, एक-एक मतदाता से स्वयं प्रत्याशी को मिलना होगा, उनके उन्नत मार्ग की बाधाएं दूर करनी होगी।
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