बाढ़ के दौरान नेपाल से उपजाऊ मिट्टी लाती है गंडक
विचार। गंडक नदी अच्छी गुणवत्ता की मिट्टी नेपाल से लेकर आती है जो कि बिहार व उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था वृद्धि में अहम भूमिका है, बिहार में दियारा (एक स्थानीय शब्दावली है जो भोजपुरी भाषी क्षेत्र में नदी के बाढ़ मैदान में स्थित एक स्थलरूप के लिये इस्तेमाल होती है।) क्षेत्र में किसान गन्ने की खेती कर अर्थव्यवस्था दुरुस्त रख रहे हैं। गन्ना विशेषज्ञों ने किसानों को सिंगल बड चिप विधि से गन्ने की बुवाई करने की सलाह दी है। इस विधि से गन्ने की बुवाई करने से प्रति हेक्टेअर लागत में 16 हजार 250 रुपये की कमी आएगी। यानी बुवाई में 50 क्विंटल बीज की बचत होगी। गन्ने की मोटाई व लम्बाई अधिक होने के चलते 25 प्रतिशत ज्यादा पैदावार होगी। यह विधि गन्ना किसानों की पहली पसंद बना हुआ है। वहीं जानकारी के अभाव में किसान सिर्फ गन्ने की फसल पर ही निर्भर रहते हैं। जबकि किसान गन्ने के साथ उड़द, मूंग, धनिया, सब्जी की बुवाई कर बहुत कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि दलहनी फसलों से भूमि में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है। बाजार में दलहन की काफी कमी है, इसके दाम भी काफी अच्छे रहते हैं। किसान गन्ने के साथ कई फसल की बुवाई कर दोगुना लाभ कमा सकते हैं। वहीं गंडक परियोजना बिहार और उत्तर प्रदेश की संयुक्त नदी घाटी परियोजना है। 1959 के भारत-नेपाल समझौते के तहत इससे नेपाल को भी लाभ है। इस परियोजना के अन्तर्गत गंडक नदी पर त्रिबेनी नहर हेड रेगुलेटर के नीचे बिहार के बाल्मीकि नगर मे बैराज बनाया गया। इसी बैराज से चार नहरें निकलतीं हैं, जिसमें से दो नहरें भारत में और दो नहर नेपाल में हैं। यहाँ 15 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से की सिंचाई करतीं है। वाल्मीकि नगर का बैराज 1969-70 में बना। इसकी लम्बाई 747.37 मीटर और ऊँचाई 9.81 है। इस बैराज का आधा भाग नेपाल में है। 256.68 किमी पूर्वी नहर से बिहार के चम्पारन, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के 6.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होती है। इसी नहर से नेपाल के परसा, बाड़ा, राउतहाट जिलों के 42 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। मुख्य पश्चिमी नहर से बिहार के सारन जिले की 4.84 लाख भूमि तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर जिलों के 3.44 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। इस नहर से नेपाल के भैरवा जिले की 16 हजार से अधिक हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। बता दें कि गण्डकी हिमालय से निकलकर दक्षिण-पश्चिम बहती हुई भारत में प्रवेश करती है। त्रिवेणी पर्वत के पहले इसमें एक सहायक नदी त्रिशूलगंगा मिलती है। यह नदी काफी दूर तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों के बीच सीमा निर्धारित करती है। उत्तर प्रदेश में यह नदी महराजगंज और कुशीनगर जिलों से होकर बहती है। बिहार में यह चंपारन, सारन और मुजफ्फरपुर जिलों से होकर बहती हुई 192 मील के मार्ग के बाद पटना के संमुख गंगा में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई लगभग 1310 किलोमीटर है। गंडक नदी बाढ़ के दौरान नेपाल से उपजाऊ मिट्टी बहाकर लाती है, यह मिट्टी काँप, जलोढ़ या कछारीय मिट्टी के नाम से जाना जाता है। काँप मिट्टी भारत के करीब 40 प्रतिशत भाग में पाई जाती है। यह मिट्टी सतलुज, गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा लाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी, काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी, लाल मिट्टी, लैटराइट मिट्टी और मरु मिट्टी, पांच तरह की मिट्टी का वर्गीकरण किया गया है। जलोढ़ मिट्टी विभिन्न प्रकार के पदार्थों से मिलकर बनी होती है, जिसमें गाद (सिल्ट), मृत्तिका के महीन कण, बालू और बजरी के अपेक्षाकृत बड़े कण भी होते हैं। बिहार में दियारा क्षेत्र में लोग आज सोना उपजा रहे हैं। बिहार में गंडक नदी की सहायक नदियां झरही, खनुवा, दाहा, धनही हैं। इस वजह से भूमि उपजाऊ व खेती करने योग्य है। साथ ही यह सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। गंडक नदी यहां के लोगों के समृद्धि का मुख्य कारक है।
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