वेश्या को स्वर्ग, संन्यासी को नरक

प्रेरक कथा। एक संन्यासी की जिस दिन मौत हुई, उसी दिन एक वेश्या की भी मौत हो गयी, दोनों ही आमने-सामने रहते थे। देवदूत लेने आए, तो संन्यासी को नरक की तरफ ले जाने लगे और वेश्या को स्वर्ग की तरफ। संन्यासी ने देवदूतों से कहा, रुकिये, लगता है कुछ भूल हो गई मालूम होती है, मुझ संन्यासी को नरक की तरफ, वेश्या को स्वर्ग की तरफ, क्यों ? जरूर आपके संदेश में कहीं कोई भूल हो गई है। शक तो उन देवदूतों को भी हुआ। उन्होंने कहा, भूल कभी हुई तो नहीं, लेकिन मामला तो साफ दिखता है कि यह वेश्या है और तुम संन्यासी हो। वे गए लेकिन फिर ऊपर से खबर आई कि कोई भूल-चूक नहीं है, जो होना था, वही हुआ है। वेश्या को स्वर्ग में ले आओ, संन्यासी को नरक में डाल दो और अगर ज्यादा ही जिद करे, तो उसे कारण समझा देना। संन्यासी ने जिद की, तो देवदूतों यह कारण बताना पड़ा—संन्यासी रहता तो मंदिर में था, लेकिन सोचता सदा वेश्या की था, भगवान की पूजा तो करता था, आरती भी उतारता था, लेकिन मन में प्रतिमा वेश्या की होती थी और जब वेश्या के घर में रात राग-रंग होता, बाजे बजते, नाच होता, कहकहे उठते, नशे में डूब कर लोग उन्मत्त होते, तो संन्यासी को ऐसा लगता था जैसे कि मैंने अपना जीवन व्यर्थ ही गंवाया। आनंद जब वहां है तो मैं यहां क्या कर रहा हूं, इस निर्जन में बैठा, इस खाली मंदिर में, यह पत्थर की मूर्ति के सामने! पता नहीं, भगवान है भी कि नहीं उसे हमेशा यही शक पैदा होता और रात जाग कर वह करवटें बदलता और वेश्या को भोगने के सपने देखता और वेश्या की हालत ठीक इसके विपरीत कुछ ऐसी थी कि वह थी तो वेश्या, लोगों को रिझाती भी, नाचती भी पर मन उसका मंदिर में लगा था। जब-जब मंदिर की घंटियां बजतीं तो वह सदा यही सोचती कि कब मेरे इस भाग्य का उदय होगा कि मैं भी मंदिर में प्रवेश कर सकूंगी। मैं अभागी, मैंने तो अपना जीवन इस गंदगी में ही बिता दिया। हे परमात्मा! अगले जन्म में भले मुझे मंदिर की पुजारिन बना देना, मुझे मंदिर की सीढ़ियों की धूल भी बना देगा तो भी चलेगा, में उनके पैरों के नीचे पड़ी रहूं जो पूजा करने आते हैं, उतना भी बहुत है मेरे लिए।  मंदिर में जब धूप की सुगंध उठती  तो वह आनंदमग्न हो जाती। वह कहती, यह भी क्या कम सौभाग्य है कि मैं अभी भी मंदिर के निकट हूं! माना कि मैं पापिनी हूं, लेकिन जब भी पुजारी पूजा करता, तब भी वह आंख बंद करके बैठ जाती। पुजारी वेश्या की सोचता, वेश्या पूजा की सोचती। पुजारी नरक चला गया, वेश्या स्वर्ग चली गई। कहानी का निष्कर्ष यह है कि जैसा करोगे, वैसा भरोगे। हम मानव परामात्मा के अंश हैं और परमात्मा को सब ज्ञात है।

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